
मेवाड़ | यहाँ की रम्य रज जहाँ गर्मी में अत्यधिक तप्त होकर आग उगलती हैं वही चांदनी रात में शीतल कोमल एवं रमणीय हो कर अम्रत रस बरसाती हैं। धरती की मूल तासीर ही उसके सपूतों में आती हैं, और यही तासीर इस भूमि को विश्व विश्रुत बनाती हैं। यु तो वीरभूमि राजस्थान एक-एक अंग वीरत्व की अनगिनत उदाहरण की साक्षी हैं, पर उसका मेवाड़ क्षेत्र तो अपनी वीरता, धीरता, मातृभूमि प्रेम, शरणागत वात्सल्य एवं अडिगता में अपना कोई सानी नही रखता।
बाप्पा रावल, पद्मिनी, मीराबाई, महाराणा हम्मीर, महाराणा कुम्भा, महाराणा सांगा, महाराणा प्रताप, महाराणा राजसिंह, हाड़ी रानी तथा पन्नाधाय जैसे अनेक महनीय नाम इस पावन धरा से जुड़े हुए हैं, जिनके तेजस्वी जीवन ने समाज को प्रेरणा दी। महाराणा सांगा के जयेष्ट पुत्र भोजराज का विवाह भक्त शिरोमणि मीरांबाई के साथ हुआ था तथा सांग के महारानी कर्मवती के दो छोटे पुत्र कुवर विक्रमादित्य एवं उदयसिंह थे, दासी पुत्र बनवीर ने विक्रमादित्य की हत्या कर दी अब वह उदयसिंह को मारने का षड्यंत्र करने लगा।
धाय माँ पन्ना ने उदयसिंह को सुरक्षित स्थान पर भेज दिया तथा उसके पलंग पर अपने पन्द्रह वर्षीय पुत्र चन्दन को सुला दिया, बनवीर ने उसे उदयसिंह समझ कर उसकी हत्या कर दी। छाती पर पत्थर रखकर, उस महिमामयी माँ ने अपने कलेजे के टुकड़े चन्दन का दाह संस्कार किया। मातृभूमि के लिए एक माँ ने अपने पुत्र का बलिदान कर उदयसिंह का जीवन बचाते हुए राष्ट्र धर्म का अनूठा उदाहरण पेश किया।