-परीक्षित मिश्रा
सिरोही। खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास का शुक्रवार को सिरोही प्रवास था। इस दौरान हुई पत्रकार वार्ता में उन्होंने दो शब्दों का इस्तेमाल किया। एक ‘जवाबदेही’ और दूसरा ‘रामराज्य’। उनका कहना था कि भाजपा को ‘जवाबदेही’ और ‘रामराज्य’ देखना है तो सिरोही देखें। इससे पहले वो यहां खड़े हो रहे ढांचों का जिक्र करते हैं। तो अब सवाल ये है कि उनके इन दावों कितना दम है।
खाचरियावास ने इससे पहले कहा था कि रास्ते में मुझे मेडिकल कॉलेज दिखा। बालिका आवासीय छात्रावास दिखा। सड़क बनती हुई दिखी। तो क्या खाचरियावास का रामराज्य और जवाबदेही गोस्वामी तुलसीदास और महात्मा गांधी के परिकल्पना वाले रामराज्य से अलग है। तुलसीदास और महात्मा गांधी के रामराज्य में कहीं ढांचागत विकास से रामराज्य को परिभाषित नहीं किया गया है।
उनके रामराज्य में जनता को दैहिक, दैविक और राजकीय वेदना से मुक्ति की परिकल्पना की गई है। महात्मा गांधी के मई 1921 में गुजराती नवजीवन में लिखे आलेख के विचारों को माने तो वो जातिवाद और स्त्री शिक्षा को भी रामराज का हिस्सा मानते हैं। लेकिन, फिलहाल इतने ऊँचे आदर्श की बात नहीं करते हुए गोस्वामी तुलसीदास और गांधी के रामराज्य की परिभाषा की कसौटी पर कसें तो भी क्या सिरोही ‘जवाबदेही’ और ‘रामराज’ की कसौटी पर खरा उतरता है।
रामचरितमानस मानस के उत्तर कांड में गोस्वामी तुलसी दास जिस रामराज्य की बात करते हैं उसमें उनका तातपर्य वेलफेयर स्टेट के रूप में कई जाती है। शिक्षा, चिकित्सा, जैसी सुविधाओं के अलावा इसका जो सबसे बड़ा आधार बताया गया है वो है सुराज। दिल्ली में रामराज को लेकर हुए एक चिंतन शिविर में स्वराज और सुराज पर चर्चा के दौरान अधिकतर मतावलंबी इस बात पर सहमत हुए कि सुराज और स्वराज एक ही बात है।
स्वराज की चाह इंसान सुराज के लिए ही करता है।
महात्मा गांधी भी 1930 में हिंदी नवजीवन में सुराज को ही स्वराज और रामराज मानते हैं। अब्राहम लिंकन के अनुसार लोकतंत्र जनता का, जनता के द्वारा तथा जनता के लिए शासन है। लेकिन, जनता के लिए, जनता द्वारा चुने गए और नियुक्त किये गए नेता और अधिकारी जनता की बजाय खुदके लिए जनता पर शासन कर रहे हैं। गांधी और तुलसीदास दोनो ही कर्तव्यों का ईमानदारी पूर्ण पालन करने को ही सुराज, स्वराज और रामराज मानते हैं।
तो क्या सिरोही में सुराज है? क्या वाकई कांग्रेस ने सिरोही विधानसभा या सिरोही जिले में ये स्थिति ला दी है कि जनता की सुनवाई बिना किसी भेदभाव के हो जा रही है? क्या यहां लगे अधिकारी जनता के हित को स्वहित मानकर खुदके और राजनीतिज्ञों के हितों से ऊपर मानकर काम कर रहे हैं? तो जवाब है नहीं।
क्योंकि ऐसा होता तो सिरोही के विधायक या सांसद के यहां जनता की अर्जियों की तादात शून्य हो जाती। यदि ऐसा होता तो सिरोही में गवर्नेंस देने का वायदा करके सिरोही नगर परिषद में काबिज होने का बाद जवाबदेही से भागने वाले अधिकारी नहीं बैठाये जाते जो जनसुनवाई तक बन्द कर देंवें। यदि ऐसा होता तो सिरोही नगर परिषद में एक सेक्शन में कोई आम आदमी आसानी से घुस ना जाए इसके लिये प्लास्टिक की रस्सी बांधकर दरवाजे को बाधित नहीं किया जाता। यदि ऐसा होता तो सिर्फ जोनल प्लान लागू नहीं हो पाने के कारण बीसियों लोग रोजगार के लिए भवन निर्माण से वंचित नहीं रह जाते।
यदि सुराज होता तो जिले में नेताओं के व्यावसायिक हित आम आदमी के मानवाधिकार से ऊपर रखकर प्रभावशाली लोगों के व्यावसायिक निर्माणों को नियम विरुद्ध करवाकर आम आदमी के मकान के निर्माण में नियमो की बाधाएं नहीं अटकाई जाती। यदि सुराज होता तो जिला चिकित्सालय में चिकित्सकों के नम्बर बढ़ने के साथ मिसमैनेजमेंट बढ़ने से लोगों को परेशान नहीं होना होता। यदि सुराज होता तो चार साल बाद भी वो नलियां भरी नहीं होती जिनमें 4 साल पहले डंडी डालकर कीचड़ की मोटाई नापी गई थी।
सुराज होता तो कांग्रेस की पार्षद पद प्रत्याशी को उनके बेटे के रोजगार के अस्थाई साधन को जबरन हटाने की शिकायत विधायक के पास नहीं ले जानी पड़ती। यदि सुराज होता तो राजस्थान सम्पर्क पर की गई शिकायतों में सिरोही से असंतुष्ट लोगों की संख्या कम हो जाती। यदि सुराज होता तो खुद खाचरियावास, कांग्रेस विधायक दिव्या मदेरणा और उनसे भी पहले सिरोही के विधायक संयम लोढ़ा को बेहाल ब्यूरोक्रेसी को लेकर चीफ सेकेट्री पर निशाना नहीं साधना पड़ता।