अलवर | राजस्थान में सरिस्का के बफर एरिया में बाला किला जंगल में राष्ट्रीय पक्षी मोर मरने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है।सरिस्का प्रशासन ना तो बाघों को संभाल पा रहा है न ही राष्ट्रीय पक्षी मोर को संभाल पा रहा है। ऐसे में इनकी सुरक्षा व्यवस्था को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं।
पिछले 15 दिन से सरिस्का बाघ परियोजना की बफर जोन में आने वाले बाला किला जंगल में कई मोरों की मौत हो गई है और वहां बड़ी संख्या में मृत मोरो के शव पड़े हुए हैं। मोरो के मौत के कारणों की पुष्टि नहीं हो पा रही है लेकिन पशु चिकित्सक ओलावृष्टि से प्रभावित होना बता रहे हैं।
पोस्टमार्टम में कुछ मोरो में लीवर संक्रमण की शिकायत मिली है ऐसे में माना यह जा रहा है कि लोगों द्वारा डाले जाने वाला चुग्गा इनकी मौत का कारण हो सकता है। हालत यह है कि अंधेरी और बाला किला के जंगल में मोर तड़प तड़प कर अपनी जान दे रहे हैं मोरों को चलने फिरने और उड़ने में काफी परेशानी हो रही है हालात यहां तक पहुंच गए हैं कि वह अपनी गर्दनों को भी नहीं संभाल पा रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि बाला किला के इस इलाके में सिर्फ राष्ट्रीय पक्षी मोर ही प्रभावित हो रहा है और किसी पक्षी या वन्यजीवों पर कोई असर नहीं है। इससे ऐसा लगता है कि साजिश के तहत राष्ट्रीय पक्षी मोर को या तो निशाना बनाया जा रहा है या फिर उन्हें किसी तरह की बीमारी फैली है हालांकि कुछ बीमार मोरों को वन चौकी पर लाकर इलाज के बाद उनको जंगल में छोड़ा गया।पर्यावरण प्रेमी लोकेश खंडेलवाल ने बताया कि मोरों की सुरक्षा के यहां किसी भी तरह के बंदोबस्त नहीं है और मोरों की मौतों से पर्यावरण को ही नुकसान पहुंचता है।