नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि चुनाव लड़ने का अधिकार न तो मौलिक और न ही सामान्य कानूनी अधिकार है।
न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने एक विशेष अनुमति याचिका खारिज करते हुए कहा कि कोई व्यक्ति यह दावा नहीं कर सकता कि उसे चुनाव लड़ने का अधिकार है और उक्त शर्त उसके मौलिक अधिकार का उल्लंघन करती है, इसलिए बिना किसी प्रस्तावक के अपना नामांकन दाखिल करना जैसा कि अधिनियम के तहत आवश्यक है।
पीठ ने राजबाला बनाम हरियाणा राज्य (2016) के फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि इस अदालत ने माना था कि संसद के दोनों सदनों में किसी एक सीट के लिए चुनाव लड़ने का अधिकार कुछ संवैधानिक प्रतिबंधों के अधीन है और इसे केवल एक कानून द्वारा ही प्रतिबंधित किया जा सकता है।
शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता पर अदालत का समय बर्बाद करने के एवज में एक लाख रुपए शीर्ष अदालत की कानूनी सहायता समिति को चार सप्ताह के भीतर जमा करने का आदेश देते हुए उसकी याचिका खारिज कर दी।
याचिकाकर्ता विश्वनाथ प्रताप सिंह ने 21 जून 2022 से एक अगस्त 2022 तक सेवानिवृत्त होने वाले सदस्यों की सीटों को भरने के लिए 12 मई 2022 को जारी राज्यसभा के चुनाव की अधिसूचना के संबंध में दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष एक रिट याचिका दायर की थी। अधिसूचना के मुताबिक नामांकन जमा करने की अंतिम तिथि 31 मई 2022 थी।
अदालत ने नौ सितंबर को अपने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता का रुख यह है कि उसने नामांकन फॉर्म एकत्र किया था, लेकिन उसके नाम का प्रस्ताव करने वाले उचित प्रस्तावक के बिना नामांकन दाखिल करने की अनुमति नहीं थी। याचिकाकर्ता ने बिना प्रस्तावक के उम्मीदवारी की मांग की जिसे स्वीकार नहीं किया गया। इसलिए उनका दावा है कि उनके भाषण और अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन किया गया है।
पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता को संसद द्वारा बनाए गए कानून के अनुसार राज्यसभा का चुनाव लड़ने का कोई अधिकार नहीं था। जनप्रतिनिधित्व कानून, 1950 के साथ चुनाव आचरण नियम, 1961 में नामांकन फॉर्म भरते समय प्रस्तावित उम्मीदवार के नाम पर विचार किया गया है।
शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि हम पाते हैं कि उच्च न्यायालय के समक्ष रिट याचिका पूरी तरह से गलत थी और शीर्ष अदालत के समक्ष वर्तमान विशेष अनुमति याचिका भी अनुचित है।