अजमेर/पुष्कर। राष्ट्रीय स्वयं सेवक सीमा सुरक्षा, पर्यावरण संरक्षण, महिला सशक्तिकरण के मुद्दों को जनअभियान बनाएगा। अब तक शाखा स्तर पर चल रहे राष्ट्रहित के कार्यों का जनसहभागिता से व्यापक स्तर पर प्रसार किया जाएगा। संघ का मानना है कि देशहित से जुड़े अतिमहत्वपूर्ण निर्णयों को केवल सरकार के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता।
तीर्थराज पुष्कर में आरएसएस की तीन दिवसीय राष्ट्रीय समन्वय बैठक पर देश भर की निगाहें टिकी हुई थीं। राम मंदिर मसले पर सुप्रीमकोर्ट में चल रही सुनवाई और कश्मीर में अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद संघ की यह पहली राष्ट्रीय बैठक थी जिसमे संघ के विविध क्षेत्रों में काम करने वाले 35 संगठनों के 195 प्रमुख प्रतिनिधि शामिल हुए।
सोमवार को बैठक के समापन पर पत्रकार वार्ता को संबोधित करते हुए संघ के सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने एक सवाल के जवाब में एक बार फिर कहा कि आरक्षण के विषय पर संघ का स्पष्ट मत है कि जब तक दलित व वंचित वर्ग को आरक्षण की जरूरत है तब तक आरक्षण जारी रहना चाहिए। शमशान, पनघट व् मंदिर पर भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए। जब तक असमानता व छुआछूत समाज में व्याप्त है तब तक आरक्षण की जरूरत बनी रहेगी।
केन्द्र सरकार द्वारा जम्मू एवं कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने को लेकर उन्होंने कहा कि इससे पूरे देश में खुशी है। संघ समेत अन्य राष्ट्रवादी संगठन बरसों से एक राष्ट्र, एक संविधान, एक निशान की मांग करते रहे हैं। कश्मीर और लद्दाख में संघ द्वारा किए जा रहे सेवा कार्यों ने वहां राष्ट्रवाद को मजबूत किया है। घाटी में संघ के कार्यकर्ता पहले से ही काम कर रहे है और अब ज्यादा सक्रिय रहेंगे। धारा 370 की समाप्ति के बाद घाटी से लगती सीमा पर आतंकवाद व विदेशी घुसपैठ जैसी परिस्थितियों पर लगाम कसेगी।
कश्मीर में कुछ राजनेताओं की गिरफ्तारियां के सवाल पर उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने जानकारी जुटाने के बाद ही उन्हें नजरबंद किया जिसके क़ई कारण रहे। सरकार कश्मीर में शान्ति बहाल करना चाहती है। नजरबंद और आपातकाल का विश्लेषण करते हुए दत्तात्रेय ने स्पष्ट किया कि आपातकाल तो सत्ता बचाने के लिए लगाई गई थी और जयप्रकाश नारायण जैसे विचारक को भी जेल में डाल दिया गया था।
देश में मोब्लिंचिंग की बढ रही घटनाओं पर पूछे गए सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि संघ किसी भी हिंसात्मक प्रतिक्रिया का समर्थन नहीं करता है। संघ संवाद के माध्यम से समस्या समाधान का पक्षधर रहा है।
होसबोले ने बताया कि तीन दिवसीय बैठक में राष्ट्र और समाज से जुडे विभिन्न विषयों पर मंथन हुआ। समाज जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में समन्वय तथा एक दूसरे के अनुभवों को साझा करने के लिए हर साल इस प्रकार की बैठक आयोजित की जाती है। इस बैठक में किसी तरह का कोई प्रस्ताव पारित नहीं किया गया।
उन्होंने कहा कि संघ से जुडे संगठन सामाजिक, जनजाति, सीमा क्षेत्र में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद तथा आमजन में जागृति लाने के प्रयास में जुटे हैं। समाज का हर वर्ग अपनी जिम्मेदारी समझे इस बात की जरूरत बताई गई। गुलामी के कारण आए दोषों से मुक्त स्वाभिमानी राष्ट्र खडा हो इस पर मंथन हुआ। सीमावर्ती क्षेत्रों में सभी संगठनों के द्वारा राष्ट्रभाव जागरण के साथ वहां का समाज सुखी, स्वावलंबी हो, ऐसा प्रयास किया जाएगा।
बैठक में देश को शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ाने के लिए उसे नया रूप देने पर मंथन किया गया जिसके तहत राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर अभी तक दो लाख लोगों ने मत व्यक्त किए है। आने वाले समय में शिक्षाविदों, अध्यापकों तथा विद्यार्थियों के साथ आधुनिक काल के अनुरूप नया प्रयोग करने की आवश्यकता है। मातृ भाषा, चरित्र निर्माण की महत्ता तथा आधुनिकता के अनुरूप गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की जरूरत बताई गई।
सांस्कृतिक जीवन मूल्यों में आ रही गिरावट, पश्चिमी संस्कृति के बढते प्रभाव, महिलाओं में बढ रही असुरक्षा की भावना विषय पर भी चर्चा हुई। महिलाओं में बढ़ रहे असुरक्षा के भाव को खत्म कर पुनः महिलाओं के सम्मान लौटाने अथवा बनाए रखने पर भी मंथन हुआ। उन्होंने बताया कि 700 महिला कार्यकर्ताओं द्वारा 29 राज्यों, 5 केन्द्र शासित प्रदेशों के 464 जिलों में अनुसूचित जाति, जनजाति, कामकाजी, घरेलू, 18 साल से कम आयु की महिलाओं पर किए गए व्यापक सर्वेक्षण पर चर्चा हुई। इस रिपोर्ट का लोकार्पण 24 सितंबर को दिल्ली में होगा।
पर्यावरण संरक्षण ज्वलंत विषय है, संघ इस संबंध में भी चिंतित रहा है। अब तक शाखा स्तर पर पेड लगाओ, प्लास्टिक रोको, जल बचाओ सरीखे प्रयास किए जा रहे थे जिस अब समाज को साथ लेकर जन अभियान बनाने का प्रयत्न किया जाएगा। आगरा व पुणे में पर्यावरण के संबंध में कार्यशालाओं का आयोजन प्रस्तावित है।
देश की सीमाओं पर काम कर रहे सीमा जागरण मंच एवं अन्य संगठनों ने सीमा क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य, विकास, इन्फ्रास्ट्रक्चर की जरूरत बताई। सीमा क्षेत्रों में राष्ट्र विरोधी गतिविधियों, तस्करी, नशा, जाली नोट, मतांतरण समस्या पर भी चिंता व्यक्त की गई। देश की सीमाओं के प्रति संवेदनशीलता बढाने के लिए पिछले बरसों में सरहद को प्रणाम कार्यक्रम प्रभावी रहे। सीमा क्षेत्र में काम कर रहे संगठन स्थानीय संगठनों को साथ लेकर सीमा सुरक्षा के प्रयत्न बढाएंगे।
उन्होंने बताया कि बैठक में देश के जनजाति क्षेत्रों के विकास को लेकर चिंता व्यक्त की गई और कहा गया कि विश्व में सबसे ज्यादा जनजाति क्षेत्र की आबादी भारत में है और इस दृष्टि से यहां के विकास पर भी काम करने का निर्णय लिया गया। बैठक में कहा गया कि जनजाति समाज भी सामान्य समाज का अंग है जिनके साथ सामानता का व्यवहार होना चाहिए।
स्वदेशी उत्पादों को लेकर स्वदेशी जागरण मंच द्वारा चलाए गए आंदोलनों के परिणाम स्वरूप चीनी माल की बिक्री में गिरावट देखी जा रही है। स्वदेशी की यह भावना केवल अभियानों तक सीमित नहीं रहनी चाहिए। बैठक में जनजाति क्षेत्र पर संयुक्त प्रयास की वकालत के साथ शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वावलंबन के अधिकार, पानी, सिंचाई, कृषि के कामों को विस्तारित करने पर चर्चा की गई।