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अजमेर : RSS की श्रीराम शाखा के वार्षिकोत्सव में गूंजे गगनभेदी जयकारे - Sabguru News
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अजमेर : RSS की श्रीराम शाखा के वार्षिकोत्सव में गूंजे गगनभेदी जयकारे

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अजमेर : RSS की श्रीराम शाखा के वार्षिकोत्सव में गूंजे गगनभेदी जयकारे


अजमेर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अजमेर की ओर से विवेकानंद नगर 5 में संचालित श्रीराम तरुण व्यवसायी शाखा को शास्त्री नगर पोल्ट्री फार्म के समीप रविवार सुबह आयोजित एक समारोह में ध्वज प्रदान किया गया साथ ही वार्षिकोत्सव मनाया।

सुबह 9:15 बजे शाखा के स्वयसेवकों का एकत्रीकरण हुआ। समारोह में क्षेत्रवासी तथा गणमान्यजन भी बडी संख्या में शामिल हुए। लाडली घर के संस्थापक राष्ट्रसंत डा कृष्णानंद गुरुदेव, संघ के विभाग प्रचारक धर्मराज तथा नगर संघचालक ब्रिजेश मिश्रा की मौजूदगी में शाखा को ध्वज प्रदान किया।

शाखा को ध्वज मिलने से उत्साहित स्वयंसेवकों ने प्रदक्षिणा संचलन, सूर्यनमस्कार, समता प्रयोग, नियुद्ध, दंड, साहसिक खेलों के जरिए उपस्थित दर्शकों को अचंभित कर दिया। राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत तथा अनुशासन से परिपूर्ण स्वयंसेवकों का सभी ने उत्साहवर्धन किया।

सुभाषित, अमृत वचन, गीत के जरिए भारत माता और देश पर मर मिटने वाले शहीदों, महापुरुषों को याद किया गया। देशभक्ति से परिपूर्ण गगनभेदी जयकारों से समूचा क्षेत्र गूंज उठा।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि विभाग प्रचारक धर्मराज ने इस मौके पर कहा कि जो कार्य महापुरुष करते आए हैं वहीं कार्य अब संघ कर रहा है। हमारी संस्कृति श्रेष्ठतम है, इसमें सभी को समाहीत करने की क्षमता तथा सम्मान देने के संस्कार हैं। उन्होंने आजाद भारत से पहले का उदाहण देते हुए कहा कि कुछ कालखंड में बाहरी आतंककायियों ने यहां शासन किया। इस दौरान यहां की सभ्यता व संस्कृति को नष्ट करने के प्रयास हुए।

अंग्रजों ने तो स्पष्ट मान रखा था कि इस देश की परंपरागत संस्कृति को समूल नष्ट नहीं किया गया तो लंबे समय तक शासन करना मुश्किल होगा। इसी कारण शिक्षा व्यवस्था से लेकर रहन सहन के तौर तरीकों पर भी प्रहार किया गया। यहीं वह समय था जब नागपुर में डाक्टर केशवराव बलिराम हेडगेवार ने जन्म लिया। वे देश की पराधिनता से काफी दुखी होते थे। चिंतन करतेे थे कि देश पराधीन क्यों हुआ। उन्होंने पराधीनता के कारणों पर काफी मनन किया।

ऐेसा नहीं था कि तब भारत के लोग वीर, सक्षम अथवा बलशाली न होते हों, लेकिन मैं अकेला क्या करूंगा। मैं, मेरा परिवार तक सीमित रहने वाली सोच ने पराधीनता को पैर पसारने का मौका दिया। स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में संघ का कार्य निरन्तर बढ रहा था। लेकिन हेडगेवार का मानना था कि अंग्रेजों की गुलामी से तो मुक्ति मिल जाएगी लेकिन सही मायने में स्वतंत्रता कब हासिल होगी।

इस देश को परम वैभवशाली बनने के लिए दासता के दिनों में घर कर गई मानसिक गुलामी से भी मुक्त होना होगा। इसी लक्ष्य को लेकर उन्होंने संघ रूपी बीज बोया जो आज वटवृक्ष की भांति विशाल रूप ले चुका है। संघ स्थान पर संस्कारवान कार्यकर्ता तैयार होते हैं। देश समाज पर जब भी विपदा की स्थिति आई तब संघ का स्वयंसेवक ढाल बनकर अग्रिम पंक्ति में खडा नजर आया है। ऐसे ही कार्यकर्ताओं के समर्पणभाव से विभिन्न क्षेत्रों में संघ से जुडे 45 संगठन सक्रियता से काम कर रहे हैं। दुनिया के करीब 42 देशों में यह काम हिन्दू सेवक संघ के बैनर तले होता है।

समारोह के अध्यक्ष लाडली घर के संस्थापक राष्ट्रसंत डा कृष्णानंद गुरुदेेव ने भी संबोधित करते हुए संघ के स्वयंसेवकों को भारत माता का सच्चा सपूत बताया। उन्होंने कहा कि हेडगेवार जानते थे कि मानव सिर्फ मानव रहेगा तो मातृ भूमि की रक्षा कैसे होगी, इसीलिए उन्होंने महामानव की परिकल्पना की और संघ स्थान उनके महामानव के निर्माण का स्थल बना।

समारोह में श्रीराम नाम धन संग्रह बैंक के संस्थापक बीके पुरोहित, रामबाबू शर्मा, श्रवण माली, सम्मान सिंह, चंद्रप्रकाश, विजय सिंह मौर्य, बबीता टांक समेत बडी संख्या में गणमान्यजन उपस्थित रहे।