अजमेर। आज ‘सूचना का अधिकार कानून- 2005’ की 16वीं वर्षगांठ है। कम लोग ही जानते होंगे कि इस अधिकार की मांग के लिये राजस्थान में अजमेर जिले के ब्यावर में आंदोलन शुरु किया गया जो बाद में जनांदोलन बन गया।
सरकारी कामों में पारदर्शिता तथा जवाबदेही की जानकारी आम आदमी को मिले, इसको लेकर ब्यावर के चांगगेट चौराहे पर मजदूर किसान शक्ति संगठन ने 40 दिन तक धरना देकर अलख जगाने का काम शुरू किया और फिर सामाजिक कार्यकर्ता अरूणा राय ने 6 अप्रैल 1996 को इस जन आंदोलन की शुरुआत की।
संघर्ष की कहानी लम्बी चली और अन्तत: लम्बे संघर्ष के बाद कानून लागू करवाने में सफलता मिली थी। 15 वर्ष पहले 12 अक्टूबर 2005 को यह कानून लागू किया गया था। चांगगेट पर मौजूद ‘सूचना स्तम्भ’ संघर्ष की कहानी बयां कर रहा है। इसका शिलान्यास भारत के प्रथम सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्ला ने 13 अक्टूबर को किया था।
दुर्भाग्य यह है कि जिस मकसद से कानून लागू करवाया गया, वह अब भी सरकारी अफसरों और महकमों की मिली भगत से पूरा नहीं हो पा रहा। सरकारी विभागों से गुमराह करने वाली जानकारी मुहैया कराई जा रही हैं। यह इस बात की दरकार करती है कि कानून को और ज्यादा सशक्त और प्रभावी बनाने की जरुरत है।