नई दिल्ली। विपक्षी सदस्यों ने नागरिकता संशोधन विधेयक का एक स्वर में विरोध करते हुए इसे भारतीय गणतंत्र पर हमला और संविधान की आत्मा को ठेस पहुंचाने वाला बताया है जबकि सत्ता पक्ष ने इसे देशहित में बताते हुए कहा है कि इससे अल्पसंख्यकों विशेषरूप से मुसलमानों को चिंता करने की जरूरत नहीं है।
गृह मंत्री अमित शाह द्वारा आज राज्यसभा में पेश नागरिकता संशोधन विधेयक पर चर्चा में हिस्सा लेते हुए सदन में कांग्रेस के उप नेता आनंद शर्मा , तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओ ब्रायन, समाजवादी पार्टी के जावेद अली खान, माकपा के टी के रंगराजन और द्रमुक के तिरूचि शिवा समेत अनेक विपक्षी नेताओं ने इसका कड़ा विरोध किया जबकि भाजपा के जगत प्रकाश नड्डा, जनता दल यू के रामचन्द्र प्रसाद सिंह और अन्नाद्रमुक के एस आर बाला सुब्रमण्यम सहित कई नेताओं ने इसका समर्थन किया।
शाह ने विधेयक को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि दशकों से जो करोड़ों लोग प्रताड़ना का जीवन जी रहे थे उनके जीवन में इससे आशा की किरण दिखेगी और वे सम्मान का जीवन जी सकेंगे। वे मकान ले सकेगें, रोजगार हासिल कर सकेंगे और उन पर चल रहे मुकदमें समाप्त हो जायेंगे।
उन्होंने कहा कि सरकार पूर्वोत्तर क्षेत्र के राज्यों की भाषा, संस्कृति और सामाजिक सुरक्षा के लिए भी प्रतिबद्ध है। यह भ्रम फैलाया जा रहा है कि यह विधेयक अल्पसंख्यक खास कर मुसलमानों के खिलाफ है लेकिन वह आश्वस्त करना चाहते हैं कि मुसलमान देश के नागरिक हैं और रहेंगे।
शर्मा ने विधेयक का पुरजोर विरोध करते हुए भाजपा के इस आरोप को बेबुनियाद बताया कि देश के विभाजन के लिए कांग्रेस जिम्मेदार है बल्कि द्विराष्ट्र का सिद्धांत सबसे पहले हिन्दू महासभा और मुस्लिम लीग ने दिया था और इसमें ब्रिटिश सरकार की भी भूमिका थी।
उन्होंने कहा कि कांग्रेस विधेयक का केवल राजनीतिक रूप से विरोध नहीं कर रही है बल्कि इसके खिलाफ है क्योंकि यह संविधान की मूल भावना के विरुद्ध है और उसकी आत्मा को ठेस पहुंचाने वाला है तथा भारतीय गणतंत्र पर हमला करता है।
भाजपा के जगत प्रकाश नड्डा ने विधेयक को राष्ट्रहित में बताते हुए कहा कि इसका किसी पर प्रतिकूल असर नहीं पड़ेगा और न ही किसी के अधिकारों का हनन होगा। उन्होंने कहा कि 2003 में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने धर्म के आधार पर अत्याचार झेलकर आये प्रवासियों को नागरिकता देने की वकालत की थी। मोदी सरकार उनकी इस भावना को ध्यान में रखते हुए यह विधेयक लेकर आयी है। उन्होंने कहा कि यह किसी दल या क्षेत्र का मामला नहीं है यह मानवता से जुड़ा विषय है।
अफगानिस्तान में भारतीय मूल के अल्पसंख्यकों पर अत्याचार से संबंधित विदेशी मीडिया की रिपोर्टों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि इन लोगों का जीवन वहां दूभर हो गया था। उन्होंने कहा कि यदि अत्याचार धर्म के आधार पर हुआ तो इसका उत्तर भी इसी आधार पर दिया जाना चाहिए। विधेयक में पूर्वोत्तर की पहचान बरकरार रखने के प्रावधानों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि सभी दलों को राजनीति छोड़कर देश हित का ध्यान रखना चाहिए।
समाजवादी पार्टी के जावेद अली खान ने कहा कि इस विधेयक का कोई भी विरोध नहीं करता यदि इसमें तीनों देशों के नाम के स्थान पर पड़ोसी देश और छह धर्मों के स्थान पर धार्मिक अल्पसंख्यक शब्द जोड़ दिया जाता। उन्होंने कहा कि इस विधेयक के पारित होने से मोहम्मद अली जिन्ना का ख्वाब पूरा हो जायेगा क्योंकि वह हिन्दू मुक्त पाकिस्तान और मुस्लिम मुक्त भारत की वकालत करते थे।
मुसलमानों के साथ दोयम दर्जे के नागरिक जैसा व्यवहार करने का आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि विधेयक में संविधान के साथ खिलवाड़ किया गया है। उन्होंने कहा कि जब यह कहा जा रहा है कि धर्म शासित देशों में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार किये जा रहे हैं तो यह विधेयक धर्म के आधार पर क्यों लाया गया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक रहे एम एस गोलवलकर की पुस्तक का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि वर्ष 1939 में ही उन्होंने लिख दिया था कि इस देश में सभी धर्मों को एक मुख्य धर्म में ही शामिल होना पड़ेगा। इसी विचार को आगे बढाया जा रहा है।
जद यू के राम चंद्र प्रसाद सिंह ने विधेयक का समर्थन करते हुये कहा कि इस को लेकर उनके दल की विचारधारा पर सवाल उठाये गये हैं। उन्होंने कहा कि इसमें पड़ोसी देशों में रह रहे अल्पसंख्यकों को नागरिकता दिये जाने का प्रावधान किया जा रहा है और देश में रह रहे अल्पसंख्यकों का इसमें कोई उल्लेख ही नहीं है। यह गणतंत्र है और राजनीतिक दलों को देशवासियों में इसको लेकर भय पैदा नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि एनआरसी की बात हो रही है जबकि अब एनआरसी नहीं एनआरडी (नेशनल रिजस्टर ऑफ डेवलपमेंट) का मौका है। उन्होंने कहा कि इस देश में अल्पसंख्यकों को समानता का अधिकार मिला हुआ है जिसके कारण ही वे प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति बन सके हैं जबकि पड़ाेसी देशों में ऐसा कभी नहीं हुअा है। उन्होंने जोर देकर कहा कि उनका दल इस देश में धर्म के आधार पर किसी के साथ अन्याय नहीं होने देगा।
तेलंगना राष्ट्र समिति के के केशव राव ने विधेयक का विरोध करते हुये कहा कि संविधान को नहीं तोड़ा जाना चाहिए। यह सरकार मात्र 40 प्रतिशत मत से चुनकर आयी है और यह 130 करोड़ देशवासियों के लिए निर्णय ले रही है जो पूरी तरह से असंवैधानिक निर्णय है। उन्हाेंने कहा कि भारतीयता हमारी पहचान है।
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के टी के रंगराजन ने कहा कि उनकी पार्टी इसका पुरजोर विरोध करती है। मुसलमान को दोयम दर्जे का माना जायेगा जो पूरी तरह से गलत है। उन्होंने इस विधेयक को पूरी तरह से असंवैधानिक बताते हुये कहा कि यह विनाशकाले विपरीत बुुद्धि वाला निर्णय है।
द्रमुक के तिरूची शिवा ने भी इसका विरोध करते हुये कहा कि इसमें श्रीलंका के हिन्दुओं और भूटान के ईसाइयों को क्यों शामिल नहीं किया गया है।
मनोनीत स्वपन दासगुप्ता ने विधेयक को बहुत ही महत्वपूर्ण बताते हुये कहा कि प्रवासी और शरणार्थी में अंतर होता है। पूर्वी पाकिस्तान से आये हिन्दुओं की पहचान समाप्त की जा रही है। शरणार्थी को लेकर जिनेवा संधि में विशेष उल्लेख है।
बीपीएफ के विश्वजीत दाइमित्री ने कहा कि विधेयक को लेकर पूर्वाेत्तर के लोगों में बहुत भय था लेकिन गृह मंत्री ने आज सदन में जो बयान दिया है उससे उनकी आशंकायें अब समाप्त हो गयी है। उन्होंने कहा कि पूर्वाेत्तर के लोगों का महाभारत काल का इतिहास है।
असम गण परिषद के वीरेन्द्र प्रसाद वैश्य ने कहा कि असमी लोग इस विधेयक काे लेकर भय में है। उनकी संस्कृति और भाषा पर खतरा मंडरा रहा है। उनकी भाषा समाप्त होने वाली है क्योंकि बंगाली और दूसरी भाषाओं के लोग अधिक हो गये हैं।
भाजपा के के जे अल्फांसो ने कहा कि दुनिया में धर्म के आधार पर कही भी किसी के भी साथ उत्पीड़न हाेता है तो भारत उनके साथ हैं। इस विधेयक से करोड़ों लोगों को सम्मान और गरिमा के साथ जीने का मौका मिलेगा। उन्होंने कहा कि इसमें किसी को निशाना नहीं बनाया गया है बल्कि किसी को राहत दी गयी है। अन्नाद्रमुक की विजिला सत्यानाथन ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि श्रीलंका के तमिलों को दोहरी नागरिकता दी जानी चाहिए। इसके अलावा भारत में रह रहे श्रीलंकाई तमिलों को भारतीय नागरिकता दी जानी चाहिए।
शिवसेना के संजय राउत ने कहा कि विधेयक का समर्थन नहीं करना देशद्रोह नहीं है। सभी सदस्यों को जनता ने चुना है और उनकी देशभक्ति पर संदेह करने का अधिकार किसी को नहीं है। उन्होंने विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि नागरिकता लेने वाले लोगों को 25 से 30 साल तक वोटिंग अधिकार नहीं देना चाहिए। बसपा के सतीश मिश्रा ने विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि 31 दिसंबर 2014 के बाद भारत आने वाले लोगों के बारे में यह कुछ नहीं कहता है। इस विधेयक से भारतीय संविधान का धर्मनिरपेक्ष स्वरुप खतरें में पड़ जाएगा।
राष्ट्रीय जनता दल के मनोज कुमार झा ने कहा कि सरकार को यह विधेयक वापस लेना चाहिए । यह सैद्धांतिक, ऐतिहासिक और सामाजिक रुप से गलत है। इसकी संवैधानिकता संदेहास्पद है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रफुल्ल पटेल ने कहा कि यह विधेयक महत्वपूर्ण है और इस पर गंभीर और विस्तृत चर्चा के लिए इसे प्रवर समिति में भेजा जाना चाहिए।
सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट के हिशे लाचुंगपा ने कहा कि सिक्कित समेत पूरे पूर्वोत्तर क्षेत्र की अखंडता की रक्षा की जानी चाहिए। इस क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान बनी रहनी चाहिए। उन्होंने कहा कि मणिपुर की तर्ज पर सिक्किम में भी इनर परमिट लाइन प्रणाली लागू करनी चाहिए। आईयूएमएल के अब्दुल वहाब ने कहा कि यह विधेयक संविधान की मूल भावना के खिलाफ है। यह धर्म, नस्ल, रंग और जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव करता है।
पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट के मीर मोहम्मद फैज ने विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि सरकार एक ही समुदाय को निशाना बना रही है। अकाली दल के बलविंदर सिंह भूल्लर ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि इसे 50 साल पहले आ जाना चाहिए था।
भाजपा की सरोज पांडे ने विधेयक के ऐतिहासिक करार देते हुए कहा कि यह भारत को आगे बढ़ाने वाला है। लोगों को नागरिकता देने का मामला लंबे से लंबित था लेकिन यह राजनीति की भेंट चढ़ता रहा। पड़ोसी देशों से अल्पसंख्यकों के संबंध में आये आंकड़ें भयावह है और इसमें किसी को राजनीति नहीं करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि नेहरु लियाकत समझाैता असफल रहा जिससे कारण यह विधेयक लाना पड़ रहा है।