सबगुरु न्यूज। राजस्थान की रेगिस्तानी धरा पर जहां बरसात भी आने में झिझकती है। वहां बालू मिट्टी खुलकर हवाओं के साथ अपना खेल का खेलती है और लाखों टन बालू मिट्टी के धोरे क्षण भर में एक स्थान से दूसरे स्थान चले जाते हैं। कोसों मील तक जहां पानी नजर नहीं आता उसी धोरों की धरती पर जैसलमेर की पोकरण तहसील के ग्राम रूणीचे में बाबा रामदेव ने अपने चमत्कार और समाज सुधारक के रूप में अपने नाम की पताका फहरा दी।
बाबा रामदेव जी को लोक देवता मानना एक भूल ही होगी क्योंकि यदि उस छह सौ साल पुराने कालखंड के इतिहास को यदि उसी चश्मे से देखा जाए तो स्थिति स्पष्ट हो जाती हैं कि उस युग में राज्य कई होते थे और उनका स्वतंत्र शासन होता था। उस युग में भी बाबा रामदेव जी के नाम का झंडा कई राज्यों में एक चमत्कारी और समाज सुधारक संत के रूप में पूजा जाता था।
मक्का मदीना से पीरों का आना और बाबा रामदेव जी के चमत्कारों की भूरि भूरि प्रशंसा करना भी इस बात का प्रमाण है कि बाबा रामदेव जी की ख्याति देशी राज्यों तक ही नहीं बल्कि विदेशों तक मानी गई है।
कहा जाता है कि बाबा रामदेव जी ने भादवे की शुक्ल पक्ष की दूज पर अवतार लिया और बाल्य काल से जीवनभर उन्होंने समाज मे व्यापत कुरीतियों का अंत किया। धर्म, जाति, वर्ग के भेद भाव को दूर करने के लिए अपना जीवन लगा दिया और वे स्वयं उन छोटी कही जाने वाली जातियों के साथ ही रहते थे और उनके उत्थान में लगे रहे। उच्च वर्ग भले ही उन्हें हीन भावना देखते रहे पर बाबा रामदेव जी ने अपने चमत्कारों से उन्हें अपना बना लिया।
अथक प्रयासों के बाद वे अल्प आयु में ही समाज का सुधार कर इस दुनिया को अलविदा कह गए। भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की दशमी के दिन जीते जी सभी के सामने समाधि ले ली। इस घटनाक्रम के बाद उस समाधि पर आस्था और श्रद्धा के मेले लग गए और जमीनी हकीकत में लाखों लोग उनके चमत्कार के आशीर्वाद लेने लगे।
बाबा रामदेव जी की समाधि पर सदा ही रहमत बरसती है और अनेकानेक धर्म, जाति के लोग आस्था के उस देवरे पर अपना शीश झुकाते हैं। प्रति वर्ष करोडों लोग बाबा रामदेव जी की समाधि के दर्शन को जाते हैं और मात्र भादवा मास में पचास लाख से भी अधिक श्रद्धालु जन बाबा की समाधि के दर्शन करते हैं। राम सा पीर को कोटि कोटि प्रणाम।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर