नई दिल्ली। सुप्रीमकोर्ट रजिस्ट्री ने केरल के सबरीमला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश के आदेश के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर करने वालों से चार सेट पेपरबुक दाखिल करने का शनिवार को निर्देश जारी किया।
सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री की ओर से आज जारी नोटिस में सभी संबद्ध पक्षों को पेपरबुक के चार सम्पूर्ण सेट उसे उपलब्ध कराने का निर्देश दिया गया है। उच्चतम न्यायालय के सहायक रजिस्ट्रार की ओर से जारी नोटिस में कहा गया है, ज्ञात हो कि सभी पुनरीक्षण याचिकाएं जनवरी 2020 में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किए जाने की संभावना है।
नोटिस में कहा गया है कि चूंकि न्यायालय के 14 दिसम्बर 2019 के आदेशानुसार, ये पुनर्विचार याचिकाएं वृहद पीठ के सुपुर्द कर दी गई है, इसलिए सभी (याचिकाकर्ताओं) से संबंधित याचिकाओं के पेपरबुक के चार सम्पूर्ण सेट यथाशीघ्र दाखिल किए जाने का आग्रह किया जाता है।
गौरतलब है कि गत 14 नवम्बर को उच्चतम न्यायालय ने मंदिरों, मस्जिदों और अन्य धार्मिक स्थलों में महिलाओं के प्रवेश सहित विभिन्न संवैधानिक बिंदुओं को वृहद पीठ को सुपुर्द करने का निर्णय लिया था।
तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति रोहिंगटन फली नरीमन, न्यायमूर्ति एएम खानविलकर, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा की संविधान पीठ ने 3:2 के बहुमत का फैसला सुनाते हुए धार्मिक स्थलों में महिलाओं के प्रवेश जैसे व्यापक मसले को सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ के सुपुर्द कर दिया। इस बीच पीठ ने कहा था कि सबरीमाला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश के संबंध में पूर्व का उसका फैसला वृहद पीठ का अंतिम निर्णय आने तक बरकरार रहेगा।
इस मामले में न्यायमूर्ति नरीमन और न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने फैसले से असहमति जताई थी और अलग से अपना फैसला सुनाया था। बहुमत का फैसला सुनाते हुए न्यायमूर्ति गोगोई ने कहा था कि परंपराएं धर्म के सर्वमान्य नियमों के मुताबिक हों और आगे सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ इस बारे में अपना फैसला सुनाएगी।
महिलाओं के मंदिर, मस्जिद और अन्य धार्मिक स्थलों में प्रवेश के मुद्दे को वृहद पीठ को भेजने को लेकर न्यायाधीशों की राय बंटी नजर आई। न्यायमूर्ति नरीमन और न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ पुनर्विचार याचिकाओं को खारिज करने के पक्ष में थे। उनका मानना था कि शीर्ष अदालत का फैसला मानने के लिए सभी बाध्य हैं और इसका कोई विकल्प नहीं है। दोनों न्यायाधीशों की राय थी कि संवैधानिक मूल्यों के आधार पर फैसला दिया गया है और सरकार को इसके लिए उचित कदम उठाने चाहिए।
बहुमत के फैसले में न्यायमूर्ति गोगोई ने कहा था कि इस केस का असर सिर्फ सबरीमला मंदिर ही नहीं, बल्कि मस्जिदों में मुस्लिम महिलाओं के प्रवेश और अग्यारी में पारसी महिलाओं के प्रवेश पर भी पड़ेगा।
संविधान पीठ ने अपने फैसले में कहा था कि परंपराएं धर्म के सर्वोच्च सर्वमान्य नियमों के मुताबिक होनी चाहिए। अब बड़ी पीठ में जाने के बाद मुस्लिम महिलाओं के दरगाह-मस्जिदों में प्रवेश पर भी सुनवाई की जाएगी और ऐसी सभी तरह की पाबंदियों को दायरे में रखकर समग्र रूप से फैसला लिया जाएगा।
शीर्ष अदालत ने गत वर्ष 4:1 के बहुमत के फैसले से सबरीमला में सभी उम्र की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति दी थी। उससे पहले मंदिर में 10 से 50 वर्ष की महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी थी।