सफला एकादशी | हिंदू शास्त्रों के अनुसार एकादशी उपवास से विष्णु भगवान अपने भक्तों पर प्रसन्न होकर उन पर अपनी कृपा बनाए रखते हैं। कहते हैं सब व्रतों में श्रेष्ठ एकादशी का व्रत होता है। एकादशी एक माह में दो बार आती है पहली कृष्ण पक्ष में और दूसरी शुक्ल पक्ष में ।प्रत्येक वर्ष में 24 एकादशी होती हैं और जब मलमास आता है तो 26 एकादशी हो जाती हैं।
हिंदू पंचांग की 11वीं तिथि को एकादशी कहते हैं, महीने में दो बार यह तिथि आती है पूरे वर्ष जो एकादशी का व्रत करता है विष्णु भगवान उस पर अपनी कृपा बरसाते हैं।
हम आपको पूरे वर्ष आने वाली एकादशियों के बारे में क्रमवार बताएंगे इनका व्रत करने से अनेक दिव्य फलों की प्राप्ति होती है।
इस व्रत हेतु दशमी के दिन से ही कुछ नियम पालन करना शुरू कर देना चाहिए । इस उपवास को रखने से आपको हर कार्य में सफलता मिलती है इसीलिए इसे सफला एकादशी कहते हैं ।
सफला की व्रत कथा
कहा जाता है चंपावती नगर में राजा महिष्मान राज करते थे राजा के 4 पुत्र थे राजा का सबसे बड़ा पुत्र लुम्पक व्यसनों का शिकार हो गया , वह धन फिजूल खर्ची करता था और श्रेष्ठ जनों का अनादर करता था। राजा ने पुत्र को राज्य से बाहर कर दिया। लुम्पक अपने ही राज्य में चोरी करता और निवासियों को कष्ट देता। सैनिक उसे राजा का पुत्र मान छोड़ देते थे।
वन में लुम्पक पीपल के पेड़ के नीचे रहता था और जानवर खाता था एक बार कृष्ण पक्ष की दशमी के दिन वस्त्रहीन होने के कारण लुम्पक सो नहीं पाया प्रातःकाल वह मूर्छित हो गया। दोपहर में उसकी मूर्छा टूटी तो वह भोजन की खोज में निकला किंतु शक्तिहीन होने के कारण पेड़ों के नीचे से फल उठाकर ही वापस आ गया, वापिस आने तक सूर्यास्त हो चुका था तो उसने वह फल वृक्ष के नीचे ही रख दिए उस रात्रि दुःख के कारण उसे नींद नहीं आई उसके उपवास व जागरण से भगवान ने प्रसन्न होकर लुम्पक के सारे पाप नष्ट कर दिए और आकाशवाणी हुई कि अपने पिता के पास जाकर राज्य प्राप्त करो।
अब लुंम्पक सदाचारी राजा बनकर शासन करने लगा। परम भक्त होने के बाद वृद्धावस्था में अपने पुत्र को राज्य सौंप वन में तपस्या करने चला गया।
कहते हैं 5000 वर्ष तक तपस्या करने से जो फल मिलता है उतना ही सफला एकादशी के व्रत करने से फल प्राप्त होता है।