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Sake of environment, electricity consumers may have to loose pockets - पर्यावरण की खातिर विद्युत उपभोक्ताओं को ढीली करनी पड सकती है जेब - Sabguru News
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पर्यावरण की खातिर विद्युत उपभोक्ताओं को ढीली करनी पड सकती है जेब

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पर्यावरण की खातिर विद्युत उपभोक्ताओं को ढीली करनी पड सकती है जेब
Sake of environment, electricity consumers may have to loose pockets
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Sake of environment, electricity consumers may have to loose pockets

लखनऊ । देश में कोयला आधारित उत्पादन गृहों की गीली राख को डिस्पोज कर प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए बिजली उपभोक्ताओं पर बड़े भार डालने की तैयारी की जा रही है।

दरअसल, पर्यावरण नियंत्रण की दिशा में द्वारा वर्ष 2016 और अब अगस्त, 2018 में बनाये गये कानून के तहत देश के कोयला आधारित बिजली उत्पादन गृहों द्वारा बिजली पैदा करने के लिए कोयले का उपयोग करने के बाद जो गीली राख तालाब में एकत्र होती है उसे डिस्पोज करना जरूरी होता है, जिससे प्रदूषण न फैले।

अक्सर इसका उपयोग भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) द्वारा नये एक्सप्रेस वे बनाने में उपयोग किया जाता था, लेकिन अब सरकार ने जो कानून बनाया है उसके तहत देश के बिजली उत्पादन गृहों को अपनी गीली राख एनएचएआई को फ्री में तो देना ही होगा, उल्टे उसे 300 किमी रेडियस तक ट्रक का भाड़ा भी देना होगा।

उत्तर प्रदेश विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश वर्मा ने बताया कि मौजूदा समय में 200 किमी तक एक टन गीली राख का किराया करीब 1700 रूपये लेने की बात हो रही है। राज्य उत्पादन निगम के सभी उत्पादन गृहों में वर्तमान में लगभग 754 लाख टन राख पाण्ड में एकत्र है। यदि उसे भविष्य में खाली कराया जायेगा तो उसे अपनी राख तो फ्री में देना ही होगा बल्कि उसे ले जाने के लिए करीब 12 हजार 818 करोड़ भाड़े पर खर्च करने होगे।

उन्होने कहा कि इस खर्च का भार प्रदेश के विद्युत उपभोक्ताओं की बिजली दरों में पड़ेगा। एनएचएआई या राज्य सरकार द्वारा कोई भी हाईवे बनाया जाता है तो उस पर प्रदेश की जनता चलने पर टोल टैक्स जमा करती है ऐसे में यहाँ तो प्रदेश के विद्युत उपभोक्ताओं को दोहरी मार झेलनी पड़ेगी। पहले बिजली दर में भुगते और जब हाईवे पर चले तो टोल टैक्स भरे।

वर्मा ने मांग की कि राख को फ्री में भले ही ले जाया जाये लेकिन उसको ले जाने का भाड़ा देश के उत्पादन गृहों से एनएचएआई द्वारा न वसूला जाये बल्कि इसके एवज में विभाग को कुछ पैसा भी दिया जाना चाहिए। यह विधिक तौर पर भी सही है, क्योंकि हाईवे अपनी प्रोजेक्ट कास्ट में सभी रकम जोड़ लेगा।