सबगुरु न्यूज-सिरोही। माउण्ट आबू के प्रकरण में विधायक समाराम गरासिया को उनके अपनी ही पार्टी की माउण्ट आबू विषय पर राय देने वाले सलाहकार घिरवा रहे हैं।
मॉनीटरिंग कमिटी में उनके, सांसद और जिला प्रमुख के शामिल होने पर माउण्ट आबू की समस्या का कपूर की तरह गायब करने के दावे पर वह पहले ही घिर गए थे। अब उनकी पाटी के लोगों ने माउण्ट आबू में निर्माण सामग्री को टोकन के माध्यम से मंगवाने में भ्रष्टाचार व एकाधिकार होने का आरोप लगाया है। जबकि उनकी सदस्यता वाली मॉनीटिरिंग कमेटी ने ही टोकन व्यवस्था बंद यथावत रखकर माउण्ट आबू के लोगों को उपखण्ड अधिकारी कार्यालय के हवाले किया था।
सांसद और उनकी मौजूदगी में हुई दो मॉनीटरिंग कमेटियों की बैठक की प्रोसिडिंग बता रही है कि गौरव सैनी, अभिषक सुराणा और सबसे बड़े शोषक कनिष्क कटारिया ने माउण्ट आबू के लोगों के साथ जो दोयम दर्जे को व्यवहार किया उसके दोषी वर्तमान मॉनीटरिंग कमेटी की बजाय पूर्व मॉनीटरिंग कमेटी में विशेष आमंत्रित सदस्य के रूप में जगह पाए यह दो जनप्रतिनिधि ज्यादा हैं।
-ये है इन दो प्रोसिडिंगों ने खोली पोल
सबगुरु न्यूज ने आरटीआई से मॉनीटरिंग कमेटी के सचिव कार्यालय के मॉनीटरिंग कमेटी की प्रोसिडिंग की जो प्रतिलिपियां हासिल की उनमें से दो में लिए निर्णय माउण्ट आबू को ये बताने के लिए काफी है कि माउण्ट आबू में निर्माण सामग्री की टोकन व्यवस्था खुद सांसद देवजी पटेल और विधायक समाराम गरासिया की मौजूदगी में वाली मॉनीटरिंग कमेटी की देन है। इस समय माउण्ट आबू में सुरेश थिंगर की अध्यक्षता वाला भाजपा का ही बोर्ड था।
यूं ये निर्णय 3 सितम्बर 2015 की मॉनीटरिंग कमेटी की बैठक में लिया गया, इस समय भी सांसद देवजी पटेल केन्द्र की मोदी सरकार के सांसद और समाराम गरासिया राजस्थान की वसुंधरा राजे सरकार में विधायक थे। लेकिन, 29 दिसम्बर, 2016 की मॉनीटरिंग कमेटी की बैठक का प्रथम बिंदु संभागीय आयुक्त द्वारा माउण्ट आबू में निर्माण सामग्री का टोकन ऑनलाइन किए जाने का निर्णय लिया गया। इस निर्णय पर चर्चा के दौरान ही सांसद और विधायक ने इसका विरोध करके तत्कालीन वसुधरा राजे वाली राज्य सरकार द्वारा इस व्यवस्था को बंद करवाने का दबाव नहीं दिया।
इसी बैठक का पांचवा प्रस्ताव अतिक्रमण और अवैध निर्माण को रोकने के लिए सरकारी भूमियों पर कब्जेधारियों को नगर पालिका से एनओसी जारी नहीं करने का निर्णय किया गया। इस निर्णय को भी दोनों जनप्रतिनिधि तत्कालीन वसुंधरा राजे और केन्द्र की मोदी सरकार से हटवाने का दबाव स्थानीय अधिकारियों पर नहीं डलवा पाए।
-एकाधिकार के विरोध में नहीं उठाई आवाज
मॉनीटरिंग कमेटी की 3 सितम्बर 2015 की बैठक में ही माउण्ट आबू में निर्माण मरम्मत की स्वीकृति देने के लिए मॉनीटरिंग कमेटी नियमित बैठक नही
हो पाने के कारण माउण्ट आबू के उपखण्ड अधिकारी की अध्यक्षता में सब कमेटी गठित करने का निर्णय किया गया था। इतना ही नहीं उक्त बैठक के अलावा देवजी पटेल और समाराम गरासिया की मौजूदगी में ये चर्चा भी हुई कि माउण्ट आबू में उपखण्ड अधिकारी की अध्यक्षता में बनी समिति निर्माण/मरम्मत की स्वीकृतियां देगी।
समिति नाम आते ही यह स्पष्ट है कि इसमें उपखण्ड अधिकारी के अलावा अन्य सदस्य भी थे। लेकिन, कांग्रेस शासन में कनिष्क कटारिया और उनके पूर्व के उपखण्ड अधिकारी इस समिति पर एकाधिकार बनाते हुए बिना दूसरे सदस्यों के साथ बैठक लेकर लीम्बड़ी कोठी को अनाप शनाप निर्माण सामग्री जारी करते रहे। इस पर विरोध जताने की बजाय भाजपा जिलाध्यक्ष और उनके मौन पर सांसद ये कहते कैमरे में कैद हो गए कि हमारे कार्यकर्ताओं को भी माउण्ट आबू में काम करना होता है इसलिए विरोध नहीं जता पा रहे हैं।
जबकि भाजपा राज में माउण्ट आबू में लगे उपखण्ड अधिकारियों ने सब कमेटी के सदस्यों की मौजूदगी में निर्णय किए थे। नवगठित मॉनीटरिंग कमेटी ने पूर्व मॉनीटरिंग कमेटियों के बाध्यकारी निर्णयों में शिथिलता दी और वर्तमान उपखण्ड अधिकारी ने भी लोगों पर पिछले चार साल से लादी गई आधिकारिक तानाशाही हटा दी तो अब विधायक मॉनीटरिंग कमेटी को भंग करने और माउण्ट आबू में लोगों को राहत देने वाले अधिकारियों को हतोत्साहित करने में लगे हैं।
-पूर्व में भी घिरवा चुके हैं विधायक को
माउण्ट आबू में विधायक समाराम गरासिया को एडवाइज देने वाले उनके करीबी पहली बार उन्हें अपने विधानसभा क्षेत्र में कठघरे में घिरवा रहे हैं ऐसा नहीं है। इससे पहले गत बजट सत्र में भी उन्होंने माउण्ट आबू के आम लोगों की प्रमुख समस्या एसटू जोन के सीमांकन का मुद्दा उठाने की बजाय वहां का एक निजी मामला उठाया।
ये तो साधुवाद है सिरोही विधायक संयम लोढ़ा का कि उन्होंने विधानसभा के अंतिम दिन में माउण्ट आबू में एसटू जोन का सीमांकन लम्बे समय से जयपुर में अटकाने का मुद्दा उठाया और एसटू जोन का सीमांकन जारी हो सका। इसके बाद भी माउण्ट आबू नगर पालिका में कार्यवाहक आयुक्त कनिष्क कटारिया और उनके बाद के आयुक्त इसे अटकाए रखे। इस प्रकरण को भी समाराम गरासिया ने विधानसभा या किसी भी राजनीति मंच और सोशल मीडिया पर नहीं उठाया। विधायक ने माउण्ट आबू के विषय में राय देने वाले अपनी ही पार्टी के दूसरे एडवाइजर नहीं ढूंढ़े तो लोगों के बीच में शर्मींदगी उठान का उनका क्रम लगातार जारी रहने वाला है।