सबगुरु न्यूज। भगवान गणेश को विघ्नहर्ता माना जाता है। भक्तों पर आने वाले सभी संकट का निवारण गणपति सहजता से करते हैं।
आज गुरुवार दिनांक 24 जनवरी को माघ कृष्ण चतुर्थी के उपलक्ष्य में संकष्टी चतुर्थी है। अगर आज भगवान गणेश की विशेष पूजा करेंगे तो सभी संकट दूर होकर जीवन में आनन्द की प्राप्ति होगी।
हिन्दू कैलेण्डर में प्रत्येक चन्द्र मास में दो चतुर्थी होती हैं। पूर्णिमा के बाद आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं और अमावस्या के बाद आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते हैं।
हालाँकि संकष्टी चतुर्थी का व्रत हर महीने में होता है लेकिन सबसे मुख्य संकष्टी चतुर्थी पुर्णिमांत पञ्चाङ्ग के अनुसार माघ के महीने में पड़ती है और अमांत पञ्चाङ्ग के अनुसार पौष के महीने में पड़ती है।
संकष्टी चतुर्थी का महत्व
संकष्टी चतुर्थी का अर्थ है संकट को हरने वाली चतुर्थी. इस दिन सभी दुखों को खत्म करने वाले गणेश जी का पूजन और व्रत किया जाता है. मान्यता है कि जो कोई भी पूरे विधि-विधान से पूजा-पाठ करता है उसके सभी दुख दूर हो जाते हैं.
संकष्टी चतुर्थी की पूजा विधि
– संकष्टी चतुर्थी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान कर लें।
– अब उत्तर दिशा की ओर मुंह कर भगवान गणेश की पूजा करें और उन्हें जल अर्पित करें।
– जल में तिल मिलाकर ही अर्घ्य दें।
– दिन भर व्रत रखें।
– शाम के समय विधिवत् गणेश जी की पूजा करें।
– गणेश जी को दुर्वा या दूब अर्पित करें. मान्यता है कि ऐसा करने से धन-सम्मान में वृद्धि होती है।
– गणेश जी को तुलसी कदापि नहीं चढ़ाए। कहा जाता है कि ऐसा करने से वह नाराज हो जाते हैं, मान्यता है कि तुलसी ने गणेश जी को शाप दिया था।
– अब उन्हें शमी का पत्ता और बेलपत्र अर्पित करें।
– तिल के लड्डुओं का भोग लगाकर भगवान गणेश की आरती उतारें।
– अब पानी में गुड़ और तिल मिलाकर चांद को अर्घ्य दें।
– अब तिल के लड्डू या तिल खाकर अपना व्रत खोलें।
– इस दिन तिल का दान करना चाहिए।
– इस दिन जमीन के अंदर होने वाले कंद-मूल का सेवन नहीं करना चाहिए, यानी कि मूली, प्याज, गाजर और चुकंदर न खाएं।
यह है मान्यता
पौराणिक मतानुसार कालांतर में संकटों से घिरे देवगण साहयता हेतु महेश्वर के पास गए। इस पर महेश्वर ने कार्तिकेय व गणेश की श्रेष्ठता के आधार पर किसी एक को देवताओं के संकट हरने को कहा तथा साथ ही अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने हेतु सर्वप्रथम पृथ्वी की परिक्रमा करने का आधार रखा। कार्तिकेय मोर पर बैठकर पृथ्वी की परिक्रमा हेतु निकल गए।
परंतु गणेश जी की सवारी मूषक थी जिससे वो जीत नहीं सकते थे। इसी कारण गणेश जी ने अपने माता-पिता अर्थात शिव-पार्वती की सप्त परिक्रमा करके यह विजय प्राप्त की व देवगणों के संकट दूर किए।
महेश्वर ने गणेश को आशीर्वाद दिया की चतुर्थी पर जो व्यक्ति गणेश पूजन कर चंद्रमा को अर्घ्य देगा, उसके तीनों ताप अर्थात दैहिक, दैविक व भौतिक ताप दूर होंगे। संकष्टी चतुर्थी के विशेष व्रत, पूजन व उपाय से घर-परिवार में आ रही विपदाएं दूर होती है। रुके हुए मांगलिक कार्य संपन्न होते हैं तथा भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है।