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अरे छाती कूटा म्हारा जीव लियां बिना थने चैन नी पड़े ? ओ की थारो बाप ढोली चाय ?
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अरे छाती कूटा म्हारा जीव लियां बिना थने चैन नी पड़े ? ओ की थारो बाप ढोली चाय ?

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अरे छाती कूटा म्हारा जीव लियां बिना थने चैन नी पड़े ? ओ की थारो बाप ढोली चाय ?
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गाँव के भोले लोग, शहर में एक शादी के रिसेप्शन में गए,

अंदर गये तो इतने सारे सलाद की आइटम देख कर बाहर आ गये,
बाहर आकर एक बोला…

अभी तो सब्जी भी नहीं बनी है…!!! कटी धरी है !!


अध्यापक –
टेबल पर चाय किसने गिराई? इसे अपनी मातृभाषा मे बोलो ।

छात्र –
मातृभाषा मतलब मम्मी की भाषा में ?

अध्यापक – हां ।

छात्र – अरे छाती कूटा म्हारा जीव लियां बिना थने चैन नी पड़े ? ओ की थारो बाप ढोली चाय ?

अध्यापक बेहोश !…


स्कूल का निरीक्षण चल रहा था।

निरीक्षक लड़कों से- ‘सावधान’।

कोई हिला तक नहीं।

निरीक्षक- ‘विश्राम’।

सब वैसे ही खड़े रहे।

निरीक्षक-(हेड मास्टर से)
क्या है ये.. इनको इतना भी नहीं आता।

हेडमास्टर- ऐसा नहीं है सर, मैं करवाता हूँ।

हेड मास्टर- ‘सूधा ……सट्ट ।
सब सावधान हो गए।

हेड मास्टर : ‘ढिलो …..धस्स ।
सब विश्राम हो गए।

हेड मास्टर( निरीक्षक से) –
यो राजस्थान छ भाया। तोहार दिल्ली नाही।

निरीक्षक बेहोश। 😀