सबगुरु न्यूज। आद्याशक्ति के सात रूपों को एक सामूहिक शक्ति के रूप में पूजा जाता है। जल के किनारों पर इन्हें अच्छे स्वास्थ्य पारिवारिक सुख शांति और समृद्धि व विकास के लिए आदि काल से पूजा जाता है।
देश विदेश और हर स्थान पर इनके उपासना स्थल है जहां भाषा, रीति रिवाज और अपनी मान्यताओं के कारण इनके अलग अलग नाम पड़ गए हैं तो कहीं पर स्थान विशेष और कहीं पर व्यक्ति विशेष के कारण उन्हीं के नामों से जाना जाता है।
इन सातों शक्तियों को एक सामूहिक शक्ति के रूप में पूजा जाता हैं इसलिए कहीं यह सातू बहनें कहलाती हैं। सात शक्तियां के क्षेत्र सप्त धातुओं- अन्न रस, रूधिर, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा व वीर्य आदि में होता है और यह जगत के जीवों को इन्हीं सात धातुओं से पोषण कर स्वस्थ सुखी और दीर्घायु बनाती है।
काल भेद, स्थान भेद, भाषा भेद से यह अलग अलग नामों से पुजने लगीं। बाया सा महाराज, सातु बहना, बिजासन माता, महामाई, मावडलिया, जोगमाया, जोगणिया, आदि कई नामो से इन देवियों को चमत्कारिक देवी के रूप मे आज भी गांव, डाणी, मजरो, शहरों में इन्हें पूजा जाता है।
किसी भी शुभ कार्य में मेहंदी, काजल, कुकू व पीठी की सात सात टिकिया दीवारों पर लगाई जाती है। शादी के अवसर पर भी बिजासन माता की उजली मैली पातडी विवाह में लाई जाती है।
इन्हें सांवली व उजली दो रूप में पूजा जाता है तथा चावल लापसी पताशे मोली काजल टीकी मेहंदी कुमकुम सात भात की मिठाई लकड़ी का पालना पीली ओढनी आदि अर्पण किए जाते हैं।
ऐसी मान्यता है कि बच्चों के अच्छे स्वास्थ्य के लिए तथा पति की लम्बी उम्र के लिए तथा घर में अन्न धन लक्ष्मी सदा बरसती रहे के लिए भी इन्हें पूजा जाता है। सप्तमी ओर चतुर्दशी इनकी पूजा के लिए विशेष दिन माने जाते हैं।
ऐसी मान्यता है कि आज भी तीनों संध्याओं में सातु बहना का पालना आकाश मार्ग से सृष्टि में भ्रमण करता है। ईमली, बोरडी, गूंदी, बड इन पेड़ों में इनकी उपस्थिति मानी जाती है। कभी कभार किसी ने किसी को तीनों सन्ध्या में इनके पालने से घुंघरू की आवाज सुनाई देती है।
जिनके संतान नहीं हो या बाहरी बीमारी हो या धन की कमी हो तो इनकी पूजा से तुरंत चमत्कार मिलते है। यह सब धार्मिक मान्यताएं हैं। देवी भागवत महापुराण के द्वादश स्कंध के मणि दीप अध्याय में सात शक्तियों का उल्लेख मिलता है।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर