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Satyagrah starts against basic human rights violation of citizen of mount abu - Sabguru News
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माउंट आबू में आम आदमी में बढ़ रहा आक्रोश, व्यक्तिगत सत्याग्रह में 3 दिवसीय अनशन शुरू

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माउंट आबू में आम आदमी में बढ़ रहा आक्रोश, व्यक्तिगत सत्याग्रह में 3 दिवसीय अनशन शुरू
माउंट आबू में अपने हक के लिए तीन दिवसीय अनशन पर बैठे गौरव असरसा।
माउंट आबू में अपने हक के लिए तीन दिवसीय अनशन पर बैठे गौरव असरसा।
माउंट आबू में अपने हक के लिए तीन दिवसीय अनशन पर बैठे गौरव असरसा।

सबगुरु न्यूज-सिरोही। 35 सालों से माउंट आबू को अपनी पकड़ से बाहर नहीं निकलने देने के अधिकारियों, नेताओं और मुट्ठी भर व्यापारियों के गठबंधन के खिलाफ धीरे धीरे आक्रोश फूटने लगा है।

अबकि बार आक्रोश किसी सन्गठन के बैनर के तले नहीं व्यक्तिगत हो रहा है। यानी कि लोग अब समझ गए हैं कि उनके हक की लड़ाई को अधिकारियों, स्थानीय नेताओं और अधिकारियों और नेताओं को मुट्ठी में दबाए चंद स्थानीय व्यापारियों से अलग होकर खुद अपने हक की मांग करनी होगी।

इसी के चलते माउंट आबू के आधा दर्जन लोग मकान निर्माण और टूटे मकानों के पुनर्निर्माण की अनुमति नहीं मिलने के कारण हाइकोर्ट के दरवाजे पर गए थे। अब अपने रोजगार और जीवन सुरक्षा के व्यक्तिगत अधिकार की रक्षा नहीं कर पाने वाले अधिकारियों से क्षुब्ध होकर गौरव असरसा तीन दिवसीय अनशन पर बैठे हैं।
– भ्रष्ट व्यवस्था ने मारा स्थानीय लोगों का हक
व्यक्तिगत सत्याग्रह के तहत अनशन पर बैठे गौरव असरसा का आरोप है कि माउंट आबू के मूल निवासी पिछले 35 सालों से अपने जर्जर मकानों को दुरुस्त करने के लिए संघर्षरत हैं। वे भी इन्हीं लोगों में शुमार हैं। उनके घर में बारिश में हर जगह से पानी गिरता है।

लगातार अनुरोध के बाद भी जिम्मेदार लोग सुनवाई नहीं कर रहे हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि माउंट आबू में स्थानीय लोगों के हितों को दरकिनार करके प्रभाव शाली लोगों का विकास किया जा रहा है। आम आदमी की कोई सुनवाई नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि पिछले 35 सालों से लोगों ने अनगिनत ज्ञापन दिए लेकिन, पूरी व्यवस्था ऐसी बना दी है कि फ़ाइल में व्हील यानी पैसे नहीं रखने पर किसी का काम नहीं होगा। अब आम आदमी के पास इसके अलावा कोई चारा नहीं है कि वो सत्याग्रह करे।
-18 महीने हिलने नहीं दी फ़ाइल
माउंट आबू से लेकर जयपुर तक के अधिकारियों और नेताओं ने अपने निहित स्वार्थ के लिए माउंट आबू के स्थानीय लोगों के हकों का जबरदस्त दोहन किया। माउंट आबू के लोगों के न्याय के लिए कुछ समितियों बनी कुछ सन्गठन बने।  लेकिन, इन सबकी बागडोर स्थानीय नेताओं के हाथ में होने से एकाध बड़े प्रयासों के बाद ये व्यवस्था की कठपुतली ज्यादा बने रहे। माउंट आबू के जोनल मास्टर प्लान के पारित होने और बायलॉज बन जाने के बाद भवन निर्माण के लिए बैठक होनी थी।

लेकिन उस समय कार्यवाहक आयुक्त के रूप में बैठे उपखंड अधिकारी गौरव सैनी ने इसमें अड़ंगा लगाकर एक पत्र कुछ मार्गदर्शन के लिए जयपुर भेजा। उसके बाद उसे फ़ॉलोअप नहीं दिया। पत्र में 3 में से दो मार्गदर्शन मिल गए। लेकिन एस 2 जोन के निर्धारण के लिए सीमा ज्ञान को माउंट आबू नगर पालिका से भेजा गया प्रस्ताव जयपुर में 18 महीने तक अटका कर रखा गया। स्थानीय बोर्ड के पदाधिकारियों और कांग्रेस के नेताओं के कई चक्करों के बाद भी किसी ना किसी नोटिंग के लिए इसे अटकाते रहे।

फिर स्थानीय लोगों के अनुरोध पर सिरोही विधायक संयम लोढ़ा ने 19 मार्च को इस मुद्दे को विधानसभा में उठाया। विधानसभा अंतिम दिन था। तारांकित, अतारांकित, ध्यानाकर्षण प्रस्ताव लग नहीं सकते थे तो लोढ़ा ने माउंट आबू की समस्या उठाने के लिए  राजास्थान विनियोग विधेयक 2022 एंव वित्त विधेयक 2022 के पारण के दौरान ही इसे उठाने का निर्णय किया। 20 मार्च की रात करीब दस बजे तक उन्हें ये पूरी समस्या भेजी गई और अगले दिन पूरी तैयारी के साथ ये मुद्दा विधानसभा में उठा।

स्थानीय पीड़ितों के अनुरोध पर उन्होंने 2 अप्रैल को जयपुर में स्वायत्त शासन मंत्री और सीटीपी को फोन करके एस 2 जोन के निर्धारण पर निर्णय का अनुरोध किया। इसके बाद  भी आदेश नहीं निकलने पर 18, 19, 20 और अप्रैल को लगातार संयम लोढ़ा ने स्वायत्त शासन मंत्रालय, डीएलबी डायरेक्टर और सीटीपी से टेलीफोन ओर बात की तो जयपुर में चर्चाओं का दौर चला। 18 महीने से मंत्री के हस्ताक्षर के लिए अटकी फ़ाइल 19 अप्रैल की शाम को हस्ताक्षर होकर फिर डीएलबी पहुंच गई।

स्थानीय बोर्ड और रतन देवासी 25 अप्रैल को इस आदेश को लिखवाकर जयपुर से डिस्पेच भी करवा लाये, लेकिन फिर भी लोगों को राहत दूर लग रही है। अब इस आदेश को गजट करवाने के नाम पर भवन निर्माण समिति की बैठक कॉल नहीं की गई। नगर परिषद चाहती तो 25 अप्रैल को ही इसे गजट के लिए दे सकती थी। लेकिन ऐसा नहीं किया। स्थानीय अधिकारियों के प्रति अविश्वास के भाव अब माउंट आबू के आम आदमी में हावी हो चुके हैं।

पर्यावरण सुरक्षा के लिए सरकार ने जिन अधिकारियों को रेगुलेशन के लिए बैठाया उन्होंने आम आदमी की सुविधाओं को रेस्ट्रिक्ट करके उन्हें मिले अधिकारों से नो कंस्ट्रक्शन जोन में बड़े नेताओं और व्यापारियों के बहुमंजिले बंगले और होटलें रिकन्सट्रक्ट करवाने में लग गए हैं । जिन्हें करवाने के लिए उन्हें सुप्रीम कोर्ट, एनजीटी आदि याद नहीं आते।

व्यक्तिगत सत्याग्रह के तहत ये अनशन की राह अधिकारियों द्वारा आम माउंट आबू वासियों को मिले अधिकारों से कद्दावर लोगों को लाभान्वित करने और आम आदमी को प्रताड़ित करने की कुनीति की परिणीति है। गहलोत सरकार में माउंट आबू से जयपुर तक बैठे अधिकारियों की गुड गवर्नेन्स की बजाय कॉमन मैन एक्सप्लॉइटेशन देने से ये विरोध अब बढ़ना ही है।