सबगुरु न्यूज। तपती और जलती धरा को तृप्त करती वर्षा ऋतु उसे जल से परिपूर्ण कर देती हैं और समस्त धरा हरितिमा की चादर ओढ़कर मनभावन बन जाती है। वन, उपवन, बाग़, बगीचे, खेत और खलियान सभी हरा लिबास पहनकर समूचि धरती को महका देते हैं।
हरियाली की इसी धारा की अगवानी में श्रावण मास काली घटा और चमकती बिजली के बीच बदलियों से झिरमिर झिरमिर जल बरसाता हुआ जीव और जगत को आनंद की अनुभूति देता तथा वन उपवनों में भ्रमण के लिए आकर्षित करता है।
हरियाली की चादर ओढ़े धरा पर श्रावण मास में फिर मिलन के मेले शुरू हो जाते हैं और वन, उपवन, बाग़ बगीचों में आनंद छा जाता है। श्रावण मास चूंकि वर्षा ऋतु की अगवानी करता है इसलिए तपती गर्मी से पहली बार धरा व जीव व जगत को ठंडक मिलती है।
इसी कारण जन मानस आनंदित होकर वन, उपवन, बाग, बगीचे, खेत और खलियान में विहार करने लग जाता है तथा प्रकृति के आनंद योग में खो जाता है। उस आनंद योग से प्रकृति में परमात्मा के साक्षात रूप को देखता है, जहां हर तरह के पेड़, पौधे, लता, बेल, फल, फूल गवाह के रूप में अपना प्रमाण देते हैं।
धार्मिक मान्यताओं में यह मास जगत के कल्याणकर्ता शिव का परम प्रिय मास है। इस मास में शिव अति आनंदित होकर अपनी सिर की जटाओं को खोल गंगा को मुक्त कर देते हैं और मस्तक पर धारण चन्द्रमा को हटा देते हैं तथा अपनी भुजाओं में लिपटे सर्पों को स्वतंत्र विचरण के लिए छोड़ देते हैं। गले में पहनी मुंड माला को निकाल देते हैं और पार्वती के साथ वन उपवन में विहार के लिए निकल कर आनंद योग में खो जाते हैं।
स्वतंत्र प्रकृति की रचना में फिर वनों, उपवनो, बाग, बगीचे, खेत और खलियान में चन्द्रमा अमृत बरसाकर हरियाली को जीवंत बनाए रखता है, गंगा अपने वेग का ऊफान लेती हुई धरा को जल से भर देती है और सर्प अपनी जहरीली करामात से सर्वत्र अपने वंश की वृद्धि करने लग जाता है। मुंडी की माला सर्वत्र बाधा रूपी भूत और बीमारियों को फैलाने में लग जाती है क्योंकि अब तक यह सब व्यवस्था महाकाल महादेव शिव के नियंत्रण में थी और शिव के वनों, उपवनों में विहार करने से यह स्वतंत्र हो अपनी मनमानी पर उतारू हो जाती है।
व्यवस्था को सुचारू बनाने के लिए जन मानस शिव और पार्वती को मनाने में लग जाता है। शक्ति के परम दिन चन्द्रमा के सोमवार को जन मानस शिव और पार्वती को पूजने के लिए वनों, उपवनों मे निकल जाते हैं तथा प्रकृति के रूप में जीवंत शिव शक्ति के दर्शन पाकर मंत्र मुग्ध हो जाते हैं। यहीं से शिव के वन सोमवार को मनाता जन मानस धर्म को स्थापित कर देता है।
संत जन कहते हैं कि हे मानव इस मास में प्रकृति जल को बरसाकर स्वयं शिव का रूप धारण करती है ओर भूमि शक्ति का रूप धारण कर अपने गर्भ से हरियाली, फल, फूल और खाद्यान्न को उत्पन्न कर पार्वती के अन्नपूर्णा रूप में प्रकट होती है। जगत के कल्याण के लिए यही शिव और पार्वती का रूप पूजनीय हो जाता है।
इसलिए, हे मानव श्रावण मास की इस शुभ बेला में ठंडक देती प्रकृति की पावन बेला में मन, वचन और कर्म से सेवा कार्य में लग जा। यही चतुर्मास की सेवाएं जन कल्याण के लिए आनंद योग बना कर फल को देने वालीं बनेंगी।
सौजन्य : भंवरलाल