सबगुरु न्यूज। 22 दिसम्बर 2019 को 9 बजकर 46 मिनट पर सायन मत में सूर्य की मकर संक्रांति के साथ राष्ट्रीय पौष मास तथा शिशिर ऋतु शुरू हो गई।
पाश्चात्य देशों में सूर्य का सायन मत सिद्वान्त माना जाता है और इस कारण सायन मकर संक्रांति आज से शुरू होंगी जबकि भारतीय मत में सूर्य की मकर संक्रांति इस वर्ष 15 जनवरी को प्रातः ही शुरू हो जाएगी जो अब तक 14 जनवरी को होती थी। ऐसा इसलिए हो रहा है कि सम्पात बिन्दु पिछड रहा है ओर जो अयनांश एक जगह था अब शनैः शनैः खिसकता जा रहा है। आज से ही सूर्य का रूख उतरायन की ओर होगा।
सूर्य की सायन व निरयन संक्रान्तियां
सायन संक्रान्तिओं के लगभग 23 व 24 दिन बाद निरयन संक्रान्तियां आती है। भारत में सूर्य की निरयन संक्रांति का मत माना जाता है और पाश्चात्य देशों में सायन सूर्य को ही माना जाता है।
निरयन व सायन सिद्धांत
निरयन सिद्धांत के अन्तर्गत पृथ्वी की परिक्रमा मे 360° पूर्ण होने के कारण भारत में निरयन सिद्धांत माना जाता है, जबकि पाश्चात्य देशों में सम्पात बिन्दु के पिछडने के कारण ही सूर्य के सायन सिद्धात को माना जाता है। हजारों साल पहले दोनों अयनांश एक ही स्थान पर थे ओर अयनांश शून्य था लेकिन प्रतिवर्ष सम्पात बिन्दु पिछडने के कारण लगभग दोनों में 23° 44′ का अंतर आ गया। अतः सायन के सूर्य के अंश निरयन सूर्य की अपेक्षा 23°44′ अधिक है। पाश्चात्य देशों ने इस कारण सम्पात बिन्दु को मध्य नजर रख सूर्य के सायन मत को माना है और भारत में निरयन मत ही माना जाता है।
21 जून से 22 दिसम्बर तक सूर्य की यात्रा उतर से दक्षिण की ओर रहनें के कारण दक्षिणायन कहलाता है और 22 दिसम्बर से 21 जून तक सूर्य की यात्रा दक्षिण से उतर की ओर होती है इसे उतरायन सूर्य कहा जाता है। निरयन सिद्धांत के अन्तर्गत वर्तमान में सूर्य धनु राशि में भ्रमण कर रहे जब कि सायन सिंद्धात में सूर्य आज दिनांक 22 दिसम्बर 2019 को मकर राशि में प्रवेश कर चुके हैं।
आज यदि किसी का जन्म होता है तो सायन सिद्धांत मानने वालों की कुंडली में सूर्य मकर राशि में होगा तथा निरयन सिद्धांत मनाने वालों का सूर्य धनु राशि में लिखा जाएगा।
फलित ज्योतिष शास्त्र मे प्राचीन ऋषि मुनियों ने अपनें वर्षो के अनुभव व लगातार शोध व अन्वेषण से फलित ज्योतिष सिद्धांत को अंजाम दिया और गर्ग ऋषि, लोमेश ऋषि, पाराशर ऋषि आदि के फलित ज्योतिष सिद्धांत में काफी विरोधाभास रहा है। लगभग सभी पुराणों में ज्योतिष शास्त्र, वास्तु शास्त्र, तंत्र शास्त्र आदि में इन विषयों पर लिखा है।
वराहमिहिर ने सभी पुराणों से ज्योतिष शास्त्र वास्तु शास्त्र तंत्र शास्त्र आदि की जानकारी को विधिवत रूप से एकत्र कर अपने अनुभव के साथ शोध कार्य कर एक ग्रंथ वृहत् संहिता लिखा। इस ग्रंथ पर प्रसिद्ध प्राचीन ज्योतिषाचार्य कल्याण वर्मा के टीका कर ज्योतिष ग्रंथ सारावली लिखा। इसके बाद के सभी ज्योति शास्त्र के साहित्य कई नई पुरानी जानकारियों के साथ लिखे जाने लगे।
फलित ज्योतिष शास्त्र के विद्वानों में शुरू ही सिद्धांत व परिणामों को लेकर मतभेद रहे हैं फिर भी बाद के साहित्यों में “मांगलिक कुंडली” व राहू काल सर्प योग जैसे विषयों को अपने ही शोध कार्य से ज्योतिष शास्त्र में स्थान दिलवाया।
ज्योतिष शास्त्र में इन्हीं मान्यताओं के कारण भविष्यवाणी में अंतर आ जाते हैं। इसलिए यह आवश्यक है कि अब आकाश में ग्रहों की वास्तविक स्थिति कहां है और वे क्या फल वर्तमान में दे रहे हैं के विशद अध्ययन करने की दिशा में ज्योतिष सम्मेलनों में तथा अलग से अनुसंधान संस्थान में अब इन पर शोध करने की आवश्यकता है तथा हठधर्मी तरीकों को छोड़ कर वास्तविकता के धरातल पर आना आवश्यक है क्योंकि खगोल शास्त्र अब तक हजारों ग्रहों की खोज कर चुका है और उनका भी प्रभाव किसी ना किसी रूप में की गई भविष्यवाणियों को प्रभावित करता है।
संतजन कहते हैं कि हे मानव, जो भी हो अब शीत ऋतु अपने पूर्ण यौवन पर आ चुकी है और इस ऋतु के मृत्यु तुल्य कष्टों से बचना ही आवश्यक है। शीत ऋतु का कहर अब बढता जा रहा है क्योंकि इस काल में इसकी ही प्रधानता है यह कुछ भी कर सकती है।
इसलिए हे मानव, इस शीत ऋतु के प्रकोप से सावधानी बरत तथा इससे बचने के लिए अपनी आन्तरिक ऊर्जा हर संभव बढा तथा इसके प्रतिरोध के लिए गर्म कपडे शरीर की आवश्यकता के अनुसार पहन तथा ऋतुओं से बचाए रखने के भोजन कर। गरीबों के लिए अभिशाप बनती इस ऋतु से उन्हें बचाने के लिए आग के अलाव रेन बसेरे व हो सके तो गर्म कपड़े व भोजन व्यवस्था भी यथासंभव कर ओर कराने के प्रयास कर।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर