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केजी बोपैया की नियुक्ति पर सुप्रीमकोर्ट से कांग्रेस को करारा झटका
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केजी बोपैया की नियुक्ति पर सुप्रीमकोर्ट से कांग्रेस को करारा झटका

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केजी बोपैया की नियुक्ति पर सुप्रीमकोर्ट से कांग्रेस को करारा झटका
SC Dismisses Plea Against Bopaiah as Pro Tem Speaker, Orders Live Telecast of Karnataka Floor Test
SC Dismisses Plea Against Bopaiah as Pro Tem Speaker, Orders Live Telecast of Karnataka Floor Test

नई दिल्ली। सुप्रीमकोर्ट ने कांग्रेस-जनता दल (एस) गठबंधन को आज करारा झटका देते हुए केजी बोपैया को कर्नाटक विधानसभा का अस्थायी अध्यक्ष नियुक्त किए जाने के खिलाफ उसकी याचिका ठुकरा दी।

न्यायाधीश अर्जन कुमार सिकरी, न्यायाधीश एसए बोबडे और न्यायाधीश अशोक भूषण की पीठ ने अस्थायी अध्यक्ष की नियुक्ति के खिलाफ कांग्रेस-जद (एस) की याचिका को आगे की सुनवाई के लिए स्वीकार करने से इन्कार कर दिया।

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने बोपैया के पुराने इतिहास का हवाला देते हुए उनकी नियुक्ति पर सवाल खड़े किए।

राज्यपाल वजूभाई वाला की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि शक्ति परीक्षण की पूरी प्रक्रिया की सीधे प्रसारण की व्यवस्था की गई है इसलिए किसी प्रकार की गड़बड़ी की कोई आशंका नहीं है।

इस पर न्यायालय ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि मेहता ने उनकी समस्या हल कर दी है। सभी क्षेत्रीय समाचार चैनलों से इसका सीधा प्रसारण किया जायेगा और न्यायालय का एक मात्र उद्देश्य निष्पक्ष शक्ति परीक्षण कराना है।

इससे पहले सुनवाई शुरू होते ही  सिब्बल ने दलील दी कि सदन के वरिष्ठतम सदस्य को अस्थायी अध्यक्ष नियुक्त किये जाने की पुरानी परम्परा रही है, ऐसे में अस्थायी अध्यक्ष के तौर पर श्री के जी बोपैया की नियुक्ति संदेह पैदा करता है।

सिब्बल ने राज्यपाल के विशेषाधिकार को लेकर भी नबल रेबिया मामले में शीर्ष अदालत के उस फैसले का जिक्र किया, जिसमें कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद 163 के तहत राज्यपाल के विशेषाधिकार सीमित एवं एक दायरे में सिमटे हुए हैं।

इस पर न्यायाधीश बोबडे ने कहा कि ऐसे कई उदाहरण हैं जब सदन के वरिष्ठ सदस्य को अस्थायी अध्यक्ष नहीं बनाया गया था। प्रदेश भाजपा की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता एवं पूर्व एटर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने उनकी इस टिप्पणी का समर्थन किया।

इसके बाद सिब्बल ने बोपैया के पिछले इतिहास का उल्लेख करना शुरू किया। उन्होंने कहा कि बोपैया का इतिहास ठीक नहीं है। उन्होंने 2010 में कुछ सदस्यों को अयोग्य ठहराया था, जिसे इसी अदालत ने अवैध एवं असंवैधानिक ठहराया था।

सिब्बल ने कहा कि इससे पहले भी बोपैया ने बीएस येदियुरप्पा के विश्वास मत के दौरान पक्षपात किया था। इस पर न्यायाधीश बोबडे ने पूछा कि क्या आप बोपैया की नियुक्ति की न्यायिक समीक्षा चाहते हैं? ऐसी स्थिति में हमें उन्हें नोटिस जारी करना होगा और आज का शक्ति परीक्षण टालना होगा।

इस पर सिब्बल ने कहा कि अस्थायी अध्यक्ष को शपथ दिलाने दीजिए, लेकिन विश्वास मत के मामले में न्यायालय को अनुच्छेद 142 के तहत आदेश जारी करे। इस पर अदालत कक्ष में ठहाके गूंज उठे।

न्यायमूर्ति सिकरी ने कहा कि ऐसा कोई कानून नहीं है जिसके तहत हम राज्यपाल को वरिष्ठतम सदस्य को अस्थायी अध्यक्ष नियुक्त करने का आदेश दे सकते हैं। इसके बाद राज्यपाल की ओर से पेश मेहता ने कहा कि विश्वास मत का सीधा प्रसारण स्थानीय चैनलों द्वारा भी किया जाएगा, इससे ज्यादा ये (याचिकाकर्ता) किस तरह की पारदर्शिता चाहते हैं।

इसके बाद न्यायाधीश सिकरी ने याचिका में हस्तक्षेप करने से यह कहते हुए इन्कार कर दिया कि इस समस्या का समाधान हो गया है। न्यायालय ने कहा कि सभी चैनलों को सीधे प्रसारण की अनुमति दी जाए।

गौरतलब है कि बोपैया को कर्नाटक विधानसभा में अस्थायी अध्यक्ष नियुक्त किए जाने के खिलाफ कांग्रेस-जनता दल (एस) गठबंधन ने कल देर रात सुप्रीमकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जिसकी त्वरित सुनवाई के लिए आज सुबह साढे दस बजे का समय निर्धारित किया गया था।

कांग्रेस-जद(एस) की ओर से वकीलों के एक समूह ने न्यायालय के रजिस्ट्रार कार्यालय पहुंचकर याचिका दायर की थी। कांग्रेस-जद(एस) बोपैया की नियुक्ति का यह कहकर विरोध कर रहे थे कि संसदीय परम्परा के अनुसार अस्थायी अध्यक्ष वरिष्ठतम विधायक को नियुक्त किया जाता है और ऐसा विधायक कांग्रेस में है, न कि बोपैया।

याचिकाकर्ताओं का आरोप था कि विश्वास प्रस्ताव से संबंधित मतदान में गड़बड़ी करने के इरादे से ही बोपैया को अस्थायी अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। गठबंधन ने शक्ति परीक्षण के लिए होने वाले मतदान की वीडियो रिकॉर्डिंग कराने का अनुरोध भी नई याचिका में किया था।

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