नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने निर्भया के दोषियों को मेडिकल रिसर्च के लिए अंगदान का विकल्प दिये जाने संबंधी याचिका सोमवार को खारिज कर दी।
न्यायमूर्ति आर भानुमति और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की खंडपीठ ने बॉम्बे उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश एम एफ सलदान्हा की अर्जी पर न्यायालय ने सुनवाई से इनकार कर दिया।
न्यायालय ने कहा कि अंगदान का फैसला स्वेच्छा से होता है और इस तरह के फांसी की सजा वाले मामलों में न्यायालय ऐसा कोई निर्देश नहीं दे सकता है। अगर दोषी चाहें तो खुद स्वेच्छा से अंगदान कर सकते हैं।
न्यायमूर्ति भानुमति की पीठ ने कहा, किसी व्यक्ति को मौत करना परिवार के लिए सबसे दुखद हिस्सा है। आप (याचिकाकर्ता) चाहते हैं कि उनका शरीर टुकड़ों में कट जाए। कुछ मानवीय दृष्टिकोण दिखाइए। अंगदान को स्वैच्छिक होना चाहिए।
न्यायमूर्ति सलदान्हा ने अपनी अर्जी में कहा था कि दोषियों को फांसी दिए जाने के बाद इनके शव को मेडिकल रिसर्च के लिए दे दिया जाए।
इस अर्जी को खारिज करते हुए न्यायमूर्ति भानुमति ने कहा, हम किसी पर दबाव डालकर उसे नहीं बोल सकते हैं कि वह अंगदान करें। यह पूरी तरह से निजी फैसला है। इस तरह के केस में हम कोई फैसला नहीं दे सकते हैं।