सिरोही। सिरोही जिले के पर्वतीय पर्यटन स्थल माउंट आबू के उपखण्ड अधिकारियों और आयुक्तों ने नेता पुत्रों की मेहरबानी पाने को अवैधानिक रूप से लिमबड़ी कोठी का नक्शा तक बदल डाला। यहां पहले गुरुशिखर स्कूल की प्राथमिक शाखा चला करती थी। तो यहां पर समुदायिक शौचालय ही थे।
कक्षा कक्ष होने के कारण हर कमरों में शौचालय नहीं था। लेकिन, माउंट आबू के उपखण्ड अधिकारियों और आयुक्तों ने इसका नक्शा बदलवा दिया, जिसका कि अधिकार सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार निकाले गए जून 2009 के ईको सेंसेटिव ज़ोन के नोटिफिकेशन के अनुसार मॉनिटरिंग कमेटी और जोनल मास्टर प्लान लागू होने पर बिल्डिंग बायलॉज पास होने के बाद नगर परिषद की भवन निर्माण समिति के पास था।
बिल्डिंग बायलॉज को गौरव सैनी से लेकर कनिष्क कटारिया तक के उपखण्ड अधिकारियों ने आयुक्त के पद पर रहते हुए अड़ंगे डालते रहे। गहलोत सरकार में मॉनिटरिंग कमेटी पुनर्गठित नहीं की गई। ऐसे में उपखण्ड अधिकारी या आयुक्त अकेले किसी भवन का नक्शा बदलने को अधिकृत नहीं हैं। इसके बावजूद भी उपखंड अधिकारियों व आयुक्तों ने नक्शे के विपरीत बेतहाशा निर्माण सामग्री लिमबड़ी कोठी को जारी कर दी।
फ्लोर भी बढ़ा दिए
माउंट आबू में राज्य सरकार ने उपखण्ड अधिकरी को बिल्डिंग मटेरियल जारी करने के लिए अधिकृत किया है। इसके लिए वैध निर्माण और मरम्मत के लिए पात्र व्यक्ति को नगर पालिका में आवेदन करना होता है। यहां से आवेदक की पत्रावली नगर पालिका की भूमि शाखा में जाती है। यहां सम्बंधित सम्पत्ति की जमीन का टाइटल और निर्मित भवन की वैधता की जांच की जाती है।
सबकुछ सही होता है तो पत्रावली निर्माण शाखा में जाती है। यहां से तकनीकी अधिकारी मौका मुआयना करके मरम्मत के लिए आवश्यक निर्माण सामग्री की मात्रा तय करता था। इसके बाद पूरी पत्रावली उपखण्ड अधिकारी कार्यालय चली जाती थी। वहां से निर्माण सामग्री का टोकन जारी होता है जिसके लिए उपखण्ड अधिकारी को राज्य सरकार ने अधिकृत कर रखा था।
अब गौरव सैनी, आशुतोष आचार्य, जितेंद व्यास, रामकिशोर और कनिष्क कटारिया के आयुक्त रहते हुए नगर पालिका में लिमबड़ी कोठी की मरम्मत की पत्रावली जमा करने से लेकर उपखण्ड अधिकारी कार्यालय से निर्माण सामग्री निकलने तक इन अधिकारियों ने जमकर लिमबड़ी कोठी पर या तो मेहरबानी बरसाई या फिर बिना नक्शा स्वीकृति के निर्माण करने की अनदेखी की।
एकमात्र अभिषेक सुराणा थे जिनके पास आयुक्त का चार्ज नहीं था। लेकिन इनके कार्यकाल में भी लिमबड़ी कोठी में प्रति अनदेखी जारी रही। इन अधिकारियों के कार्यकाल में ग्राउंड प्लस दो फ्लोर की लिमबड़ी कोठी को ग्राउंड प्लस थ्री बना दिया गया। लेकिन, इन प्रशासन ने हथौड़ा उन मकान पर चलवाया जो जी प्लस थ्री फ्लोर और 13 मीटर की ऊंचाई के लिए अधिकृत क्षेत्र में होने के बावजूद सिर्फ ग्राउंड फ्लोर बना रहे थे और थोड़ी ऊंचाई बढाई थी। लिमबड़ी कोठी पर नहीं।
आश्चर्य की बात और मैच फिक्सिंग ऐसी कि लिमबड़ी कोठी के जिस मामले में कई अधिकारी फंसने के चांस थे उस प्रकरण को कथित रूप से माउंट आबू के आधा दर्जन लोगों की शह पर एनजीटी में लगे ताजा मामले में शामिल ही नहीं किया गया।
रखनी थी स्लेंटेड रूफ
अगर कोई जागा तो देर सवेर लिमबड़ी कोठी के निर्माण में जिन जिन अधिकारियों ने भूमिका निभाई है उसे उच्चतम न्यायालय या एनजीटी में तलब किया जाना ही है। इसके पीछे की वजह वो दस्तावेज है जो जिसे कि ईएसजेड का संविधान कहा जाता है। जोनल मास्टर प्लान में अव्वल तो इस क्षेत्र को नो कंस्ट्रक्शन जोन में शामिल किया हुआ है।
वैसे उदयपुर के वर्धा ग्रुप बनाम राज्य सरकार के निर्णय के अनुसार नो कंस्ट्रक्शन जोन में एक्जिस्टिंग बिल्डिंग को राहत दी जा सकती है, लेकिन बायलॉज के तहत। जिसे गौरव सैनी और कनिष्क कटारिया ने कार्यवाहक आयुक्त रहते हुए अटकाया। जोनल मास्टर प्लान के अनुसार सिर्फ और सिर्फ सदर बाजार में ही जी प्लस थ्री विथ स्लेंटेड रूफ भवन की अनुमति है।
लेकिन, सदर बाजार में नहीं होते हुए भी माउंट आबू के उपखंड अधिकारियों और आयुक्तों ने सुप्रीम कोर्ट की अवमानना करते हुए लिमबड़ी कोठी को अनधिकृत रूप से दूसरे माले पर स्लेंटेड रूफ की जगह आरसीसी से फ्लेट रूफ डलवा दी और लोगों की आंखों में धूल झोंकने के लिए तीसरे माले को पतरे से स्लेंटेड करवाकर भवन को जी प्लस थ्री में परिवर्तित करवा दिया।
ऐसे में राहुल गांधी के सबको समान अवसर देने और समान व्यवहार करने के कांग्रेस के आईडिया ऑफ इंडिया के दावे के तहत माउंट आबू के उपखंड अधिकारी को लिमबड़ी कोठी के ऊपरी माले और हर कमरे में अटैच करके बनाए गए टॉयलेट को तुड़वाना चाहिए या फिर माउंट आबू के आम आदमी को सत्त्ता धारी दल के दो नेताओं के पुत्रों की मेंटरशिप में बनने वाली लिमबड़ी कोठी की तरह न सही, लेकिन जोनल मास्टर प्लान के तहत दिए गए अधिकारों के तहत उनके रहवासी और व्यवसायिक निर्माणों की मरम्मत, रिनोवेेेशन और पुनर्निर्माण की अनुमति देनी चाहिए।
अन्यथा जिस सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी का छद्म डर से सरकार और उपखण्ड अधिकारी माउंट आबू के आम लोगों को हक़ से वंचित कर रही है, उससे क्षुब्ध लोग लिमबड़ी कोठी में अवैध निर्माण करवाने वाले इन अधिकारियों को भी उन्हीं न्यायालयों में चुनौती दे सकते हैं जिसके डर से उन्हें हक से वंचित किया जा रहा है।