सिरोही। राहुल गांधी के आईडिया ऑफ इंडिया में सबको समान अधिकार के दावे को माउंट आबू के उपखण्ड अधिकारी और नगर पालिका किस तरह से जमीदोज करने में लगी है इसका उदाहरण भी लिमबड़ी कोठी में नजर आ जाएगा।
शांति धारीवाल विधायक संयम लोढ़ा के विधानसभा के ध्यानाकर्षण प्रस्ताव पर बोले थे कि अधिकारियों को ज्यादा अधिकार देने पर वो इसका गलत इस्तेमाल करते हैं। वे माउंट आबू उपखण्ड अधिकारियों के संदर्भ में ही विधानसभा में बोले थे और कई उपखण्ड अधिकारी ये लगातार करते आ रहे हैं।
समानता का दावा करने वाले राहुल गांधी के दावों के विपरीत अशोक गहलोत सरकार से अधिकर प्राप्त माउंट आबू के कई उपखण्ड अधिकारी राजस्थान के कश्मीर में ‘एक शहर दो विधान’ चलाते आ रहे हैं। ठीक देश के कश्मीर की तरह। यहां कथित रूप से सत्ताधारी दल के जोधपुर मूल के दो नेताओ के पुत्रों के व्यावसायिक हित साधने के लिए उपखण्ड अधिकारी के अलग विधान है और माउंट आबू में कई पीढ़ियों से रह रहे लोगों की परिवारिक जरूरतों को तरसाने के लिए अलग विधान।
टूटे पतरो की जगह आरसीसी की अनुमति में आनाकानी
माउंट आबू में पट्टे शुदा और नगर पालिका से स्वीकृत मकानों पर टूटे पतरे बदलने की अनुमति उपखण्ड अधिकारी मोनिटरिंग कमिटी की पहली बैठक के बाद से ही जबरदस्त आनाकानी करते आ रहे हैं। जबकि ऐसी कोई रोक जोनल मास्टर प्लान में नहीं है। लेकिन, लिमबड़ी कोठी की सेवा में उपखण्ड अधिकारी कार्यालय और नगर पालिका इस कदर लगी है कि वहां के ऊपरी माले पर हजारो स्क्वायर फीट पर से पतरे हटाकर आरसीसी डाल दी गई लेकिन, एक के बाद एक उपखण्ड अधिकारी और नगर पालिका आयुक्त आंखें बंद किए हुए ये सब देखते रहे।
जबकि लिमबड़ी कोठी एक कॉमर्शियल प्रोजेक्ट है। सम्पत्ति मालिक को इससे कमाई करनी है। वहीं यहां के आम आदमी को टूटे पतरे की जगह आरसीसी डालने की जरूरत इसलिए है कि उसका परिवार बढ़ रहा है तो बारिश में पतरे से रिसकर आता पानी उनके परिवार को रात भर बाल्टी से पानी बाहर फेंकने के काम में व्यस्त नहीं कर देवे।
माउंट आबू उपखण्ड अधिकारी कार्यालय और नगर परिषद कार्यालय सत्ता दल के दो राजकुमारों के कथित प्रभाव में लिमबड़ी कोठी के मालिकों के व्यावसायिक हित साधने और लोकतंत्र में जिन लोगों के अधिकारों के संरक्षण के लिए संविधान के तहत इन्हें अधिकार युक्त बनाया गया है उनके हक के दोहन के केंद्र बन गए हैं।
लटकाते हैं पतरो की जगह पतरो की भी अनुमति
सबगुरु न्यूज के सामने कुछ मामले ऐसे भी आए जिसमें पट्टे शुदा और नगर पालिका द्वारा पास मकानों के टूटेआ और जर्जर पतरो की जगह छत पर नए पतरे लगाने की अनुमति में कई महीने लगा दे रहे हैं। जबकि लीगल होने पर ये उनका न्यूनतम मानवाधिकार है। इस मानवीय आवश्यकता को भी उपखण्ड अधिकारी कार्यालय द्वारा महीनों अटकाए रखने की परम्परा बनाये हुए हैं।
जबकि ये मानवीय आवश्यकता थी और ईको सेंसेटिव जोन के तहत जारी नोटिफिकेशन, सुप्रीम कोर्ट, एनजीटी, जोनल मास्टर प्लान के तहत सम्पूर्ण मापदंड पूर्ण कर भी रहे थे। लिमबड़ी कोठी के ऊपरी माले पर डली आरसीसी बता रही है कि उक्त कई मापदण्डो के उल्लंघन के बाद भी उपखण्ड अधिकारियों ने व्यवसायिक हितों को साधने के लिए पतरो की जगह आरसीसी डालने की मौन अनुमति दे दी है। जो सुप्रीम कोर्ट की मंशा के अनुसार बनाए गए जोनल मास्टर प्लान के भी विपरीत है और वो कैसे इसकी बात अगली कड़ी में करेंगे।