विजयलक्ष्मी सिंह
सबकी नजरें टीवी स्क्रीन पर थी, 1000 मीटर रोलर स्केटिंग की स्पर्धा का रिजल्ट घोषित होना था। वर्ल्ड समर गेम्स 2015 लास एंजलिस में ज्यों ही गोल्ड मैडल के लिए 14 वर्षीय कुशल रेशम का नाम लिया गया तो केशव सेवा साधना में सारे लोग खुशी से उछल पड़े।
गोवा के डिचोली में गतिमंद बच्चों के लिए संघ के सहयोग से चल रहे इस स्पेशल स्कूल के सेवाभावी कार्यकर्ताओं के लिए कुशल का गोल्ड मैडल एक कठिन लड़ाई का सुकूनभरा अंत था।
संस्था के सचिव व संघ के विभाग संघचालक नानाजी बेहरे की मानें तो, जब बच्चे यहां आए थे तो इनके माता-पिता चोट न लगे इस डर से इन्हें खेलने देने तक को तैयार नहीं थे। स्केटिंग जैसी खतरनाक स्पर्धा के लिए कोच से ट्रनिंग दिलाना, फिर विदेश खेलने भेजने के लिए उन्हें मनाना खासा मुश्किल था।
कुशल की जीत का सफर यहीं नहीं रुका, इस प्रतिभाशाली बालक ने इसके बाद इन्हीं समर गेम्स में 200×2 मीटर(रिले) में भी गोल्ड व 300 मीटर में ब्रांज मैडल जीता। इसी स्कूल से 13 वर्षीय रिया गावड़े ने 1000 मीटर एवं 300 मीटर की रिंक व रिले रेस में सिल्वर, 100×2 मीटर (रिले) में कांस्य पदक जीता।
इसके साथ ही स्कूल की एक और बालिका उर्मिला परब ने 300 मीटर रोलर स्केटिंग में ब्रांज मैडल जीता । इस जीत व इसके बाद की खुशी पर जितना हक बच्चों के माता-पिता का था उतना ही इनके कोच प्रेमानंद नाईक व संस्था के उन समर्पित कार्यकर्ताओं का था जिन्होंने इन बच्चों का मनोबल बढ़ाने व इनका आत्मविश्वास जगाने के लिए रात-दिन मेहनत की थी।
संस्था ने गोवा में सेवाकार्यों की शुरूआत सुदूरवर्ती इलाकों में रह रहे, गरीब बच्चों को हॉस्टल में रखकर पढ़ाने से की थी पर 2004 में संस्था के नियमित सर्वे में पता चला कि सिर्फ डिचोली में 300 मेंटली रिटार्टेड बच्चे हैं व इन बच्चों के लिए कोई स्कूल नहीं है। तब इनके माता-पिता के अनुरोध पर पहले 2004 में यहां व 2011 में वाल्पोई में स्पेशल स्कूल की स्थापना की गई।
सेवागाथा – राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सेवाविभाग की नई वेबसाइट
आज इन दोनों स्कूलों में लगभग 160 बच्चे पढ़ रहे हैं। पढ़ाई व खेल के साथ इन बच्चों को राखी बनाना, दिए सजाना, पेपर आर्ट, जैसी कई चीजें सिखाई जाती हैं। ऐसी ही विधाओं में निपुण स्कूल की एक बालिका विभा अजित काणेकर को 2010 में बालश्री पुरस्कार मिला।
केशव सेवा साधना में बरसों से इन बच्चों की फिजियोथैरिपी कर रही डाक्टर लाँरैन सलडाना मानती हैं कि जो इन्हें निःशक्त समझते हैं शायद उन्हें योग्यताओं की परख ही नहीं है। वे कहती हैं ये सभी बच्चे असीम संभावनों से भरे हैं। जरूरत बस इन्हें राह दिखाने की है। यही कार्य केएसएस गोवा कर रही है। ये पंक्तियां इन बच्चों के लिए एकदम उपयुक्त बैठती हैं: “ये कैंचियां हमें उड़ने से रोकेंगी भला क्या कि हम परों से नहीं हौसलों से उड़ते हैं”
संपर्क – लक्ष्मण बहरे (नाना जी)
मोबाइल नंबर -09422443165