विजयलक्ष्मी सिंह
प्रसिद्ध उद्योगपति घनश्यामदास बिरला आज से 77 वर्ष पहले इस युवक को अपना पर्सनल सेक्रेटरी बनाना चाहते थे। बढ़िया सैलरी के साथ रहना व खाना मुफ्त था। 21 वर्ष के इस युवक ने राजस्थान में फेमस प्लानी के बिड़ला काॅलेज में फुटबाल से लेकर वाद-विवाद व पढ़ाई हर क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा लिया था। फिर भी चण्डिकादास देशमुख ने बिरला के प्रस्ताव को ठुकराकर डॉक्टर हेडगेवारजी से दीक्षा ली व संघ के प्रचारक बन गए।
महाराष्ट्र के परभणी जिले के हिंगोली तालुका के कडोली नामक छोटे से गांव में रहने वाले अमृतराव व राजाबाई देशमुख की पांचवी व सबसे छोटी संतान ने अभावों व अशिक्षा की गोद में जन्म लेकर अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति, कठिन परिश्रम व अतीव राष्ट्रभक्ति के बलबूते पर जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में जय पताका फहराई ।चित्रकूट जैसे पिछड़े इलाके के 500 गांवों में ग्रामविकास की गंगा बहाने वाले व देश के प्रथम ग्रामीण विद्यालय की नींव रखने वाले नानाजी देशमुख का सम्पूर्ण जीवन सेवा के क्षेत्र में काम करने वाले लोगों के लिए रोल मॉडल है।
सेवागाथा – राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सेवाविभाग की नई वेबसाइट
अनपढ़ माता-पिता व घोर अभावों के बीच पले बड़े नानाजी को 11वीं तक स्कूल जाने का मौका भी नहीं मिला। बाद में भी अपनी पढाई जारी रखने के लिए उन्होंने बचपन में सब्जी बेचने से लेकर अख़बार बांटने तक के कई छोटे बड़े काम किए। जिस भूख ने उन्हें कई रात सोने न दिया उसी ने उन्हें दुःख कातर बना दिया। शायद इसलिए 1934 में हेडगेवारजी ने जिन 17 स्वयंसेवकों को संघ की प्रतिज्ञा दी उनमें 18 वर्षीय चण्डिकादास देशमुख भी शामिल थे। प्रचारक बनने के बाद सेवा का पहला मौका आते ही नानाजी ने खुद को झोंक दिया। बात 1944 की है जब नारायणी नदी का प्रकोप छितौली गांव पर टूट पड़ा व पूरा गांव पानी-पानी हो गया, तब नानाजी साथी स्वयंसेवकों के साथ कई दिन तक बाढ़ पीड़ितों की सेवा में लगे रहे।
गाँधी जी की हत्या के बाद जब संघ पर प्रतिबन्ध लगा तो उन्हें 6 माह जेल में रहना पड़ा। बाहर आने के बाद नानाजी ने संघ के आदेश से जनसंघ के निर्माण में पूरी शक्ति लगा दी। समय की मांग को देखते हुए संघ ने 1951 में राष्ट्रवादी दल जनसंघ का गठन किया था व इसे आगे लेकर जाने की जिम्मेदारी नानाजी व दीनदयाल जी को सौंपी थी।
जनसंघ के जन्म से इंदिरा गांधी के पतन तक नानाजी की राजनीतिक भूमिका ने सबको चमत्कृत कर दिया। वे न सिर्फ विभिन्न मत मतांतरों के लोगों को साथ लाने में कामयाब हुए बल्कि जेपी के जिस आंदोलन ने राष्ट्रवादी दलों को विजय दिलाई उसकी व्यूह रचना भी नानाजी ने ही की थी।
1975 में संघ पर लगे प्रतिबन्ध में वे एक बार फिर 17 महीनों के लिए जेल गए। जेल में रहकर नानाजी ने अध्ययन व मनन किया, वे इस निर्णय पर पहुंचे कि इस विकृत राजनीतिक संस्कृति से देश का कल्याण नहीं होगा उसके लिए देश की अर्थव्यवस्था की नींव गांवों का विकास करना होगा। इसीलिए बाहर आकर नानाजी ने राजनीति छोड़कर सेवा की राह चुन ली। राजशक्ति नहीं लोकशक्ति के जरिये देश का पुनर्निर्माण होगा इस विश्वास के साथ नानाजी ने कैबिनेट मंत्री का पद ठुकराकर राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा की। इस काम के लिए उन्होंने सबसे पहले उत्तर प्रदेश के सबसे पिछड़े जिले गोंडा को चुना। हर हाथ को काम वह हर खेत को पानी आइडियोलॉजी पर काम करते हुए उन्होंने गोंडा में परंपरागत साधनों से गांव का विकास किया।
समाज के सबसे गरीब व्यक्ति को इकॉनोमिक रूप से इंडिपेंडेंट बनाकर ही हम देश का विकास कर सकते हैं। नानाजी की इस सोच ने दीनदयाल शोध संस्थान को जन्म दिया। शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वाबलंबन व सदाचार इन चार बिंदुओं को आधार बनाकर संस्थान ने चित्रकूट व आसपास के पिछड़े हुए 500 गांवो में विकास की नींव रखी। परम्परागत उद्योगों के विकास, जैविक खेती, वाटर मैनेजमैंट के द्वारा धीरे -धीरे गांवों की दशा व दिशा बदली। इसके लिए नानाजी के आव्हान पर कई पढ़े लिखे दम्पतियों ने जीवन के कई साल सेवा के लिए इन गांवो में दिए, नाना जी ने न सिर्फ गांव वालों को इंडिपेंडेंट बनाया बल्कि सरकारी योजनाओं का लाभ इन्हें मिले यह भी सुनिश्चित किया।
नानाजी का पूरा जीवन त्याग व निष्काम कर्मयोग का आदर्श उदाहरण है। राज्यसभा का सदस्य बनने के बाद अपनी संसद निधि की एक-एक पाई चित्रकूट में ग्राम विकास के कार्य के लिए लगाने वाले नानाजी ने अपनी देह भी मेडिकल रिसर्च के लिए दान में दे दी।
संपर्क सूत्र : अभय महाजन
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