सेवागाथा | आज लक्ष्मी को कड़क धूप भी चांदनी सी ठंडक दे रही थी। माथे का पसीना पोंछते हुए उसने बेटी मौनी के धूप से लाल हो रहे चेहरे को चूम लिया। अपने दोनों हाथों में इनाम में मिला कप थामे बहुत प्यारी लग रही थी मौनी। लक्ष्मी भला कैसे भूल सकती थी यही हाथ आज से 3 वर्ष पूर्व गली-गली सड़कों व मंदिरों में लोगों के आगे चंद सिक्कों के लिए फैला करते थे और शायद ताउम्र ऐसे ही भीख मांगते रहते अगर सेवाभारती ने उनकी बस्ती में बच्चों को पढाने का जिम्मा न लिया होता। केवल मौनी ही नहीं अपितु मोहित, विशाल, मीठी आशा के साथ-साथ अनेक नाम हैं जिनका बचपन सेवा भारती के अथक प्रयासों से संवर गया।
उत्तरप्रदेश में कानपुर नगर की कपाड़िया बस्ती को सभी भीख मांगने वालों की बस्ती के रूप में जानते थे। क्या बाप क्या बेटा पूरे परिवार का पेशा ही भीख मांगना था। किंतु तीन बरस पहले कानपुर में सेवाभारती मातृमंडल द्वारा शुरू किए गए बाल संस्कार, सिलाई व साक्षरता केंद्रों ने बस्तीवासियों को शिक्षा व आत्मनिर्भरता का पाठ पढाया। आज इन परिवारों के 52 बच्चे गुरूकुल पब्लिक स्कूल में पढ़ाई कर रहे हैं, जिनकी पढ़ाई का पूरा खर्च विवेकानंद समिति उठा रही है। समिति के संयोजक व संघ के स्वयंसेवक विजय दीक्षित बताते हैं कि इन सभी बच्चों ने भीख मांगना सदा के लिए छोड़ दिया है।
यूं तो कानपुर में पनकी का नाम आते ही संकट मोचन हनुमानजी के मंदिर का दृश्य स्वत: ही आंखों के सामने आ जाता है इसलिए यह पनकी बाबा की नगरी कही जाती है। यही पनकी धाम में चंद किलोमीटर दूरी पर गंगागंज में लगभग सौ परिवारों की एक बस्ती है कपाड़िया बस्ती,जो अन्य बस्तियों से अलग है। भिक्षावृत्ति पर निर्भर रहने वाले यहां लोग आपस में झगड़ते, गाली, गलौज करते, जुआ खेलते, पान मसाला खाते हुए समय गुजारते थे। शायद इनकी आने वाली पीढ़ियां भी इसी ढर्रे पर चलती रहती अगर सेवा भारती के प्रयासों से यहां बालसंस्कार केंद्र न आरंभ हुआ होता।
बस्ती के जिन परिवारों को बच्चों को केंद्र भेजने के लिए मिन्नतें करनी पड़ी थी उन्हीं बहनों की मांग पर वहां दो माह के भीतर ही सिलाई व साक्षरता केंद्र भी खुले। बस्ती में रहने वाली वेदा ने जब साक्षरता केंद्र के लिए अपने घर में जगह दी तो सरलाजी इन बहनों को पढाने के लिए खुशी-खुशी तैयार हो गई। इन तीन सालों में उसके जैसी कई बहनें अब हिंदी में पढ़ना, हस्ताक्षर करना व सामान्य जोड़-घटाव के साथ पहाड़े भी सीख गई है।
यह काम इतना आसान नहीं था शुरूआत में बस्ती के लोग मातृमंडल बहनों को संशय की नजरों से देखते मुंह बिचकाते थे व बात करना पसंद नहीं करते। परंतु तुशमुल मिश्रा, शैलजा, क्षमाजी जैसी बहनों के लगातार प्रयासों से अंततः 22 अक्टूबर 2016 को पहला केंद्र प्रारंभ हुआ। फिर जो कुछ हुआ वो कल्पनातीत था। संस्कारमय शिक्षा पाकर बच्चों ने पहले पान-मसाला खाना फिर धीर-धीरे भीख मांगना ही छोड़ दिया।
हमेशा मैले-कुचैले रहने वाले बच्चे नहा धोकर साफ कपड़े पहनकर केंद्र आने लगे। इस परिवर्तन से चकित बस्ती की महिलाओं ने सेवाभारती के लोगों से महिलाओं को भी पढ़ाने व रोजगार के लिए कुछ सिखाने का आग्रह किया। इस प्रकार आरंभ हुए प्रौढ़ शिक्षा केंद्र व सिलाई केंद्र ने कपड़िया बस्ती के लोगों का जीवन बदल दिया कुछ परिवारों ने भीख मांगना छोड़कर मजदूरी करना शुरू कर दिया। सोनी, शिवानी व साधना जैसी कई सिलाई सीखने वाली महिलाओं ने घर में व बूटिक पर सिलाई का काम शुरू किया है।
सेवाभारती कानपुर नगर की मातृमंडल अध्यक्ष क्षमा मिश्रा बताती है कि बस्ती के बच्चे पढ़ाई के साथ-साथ जलेबी दौड़, लंबी कूद, रिले रेस जैसी स्पर्धाओं में कई पदक जीत चुके हैं। हाल ही संपन्न हुए एक कार्यक्रम में यहां के बच्चों द्वारा प्रस्तुत संपूर्ण वंदेमातरम् ने सबको मोह लिया था। वे बताती है महिलाओं को धर्म से जोड़ने के लिए हर सप्ताह चलने वाली भजन मण्डली ने महिलाओं को एक सूत्र में बांध दिया है व आए दिन के झगड़ों की जगह अब वे साथ मिलकर काम करने की चर्चा करने लगी हैं।