भारत के सबसे महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शहीद भगत सिंह भारत देश की महान विभूति हैं। मात्र 23 साल की उम्र में ही उन्होंने अपने देश के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे। भारत की आजादी के समय भगत सिंह सभी नौजवानों के लिए आदर्श थे। भगतसिंह अपने आस-पड़ोस के लोगों पर अंग्रेजों द्वारा अत्याचार करते हुए देखा था। जिसकी वजह से उसके मन में कम उम्र में ही देश के लिए कुछ कर बैठने की चाह उमड़ती रहती थी। उनका विचार था कि देश का नौजवान ही देश की काया पलट सकता है। इसलिए उन्होंने नौजवानों को एक नई दिशा दिखाने की कोशिश की है।
भगतसिंह का पूरा जीवन संघर्ष से भरा रहा। उनके जीवन से आज भी नौजवान प्रेरणा ग्रहण करते हैं। भगतसिंह का पूरा नाम शहीद भगत सिंह थे। इनके माता विद्यावती पिता सरदार किशनसिंह सन्दूक थे। वे बचपन से ही अपने घर वालों में देशभक्ति देखी थी। उन्होंने महात्मा गांधी के द्वारा चलाए गए असहयोग आंदोलन का खुलकर समर्थन भी किया था । वे अंग्रेजों को ललकार कर उनके किताबों को जलाया करते थे। यहां तक कि देश प्रेम में कॉलेज की पढ़ाई छोड़कर आजादी के लड़ाई में भी कूद पड़ी। देशप्रेम से परिपूर्ण नाटक भी करते थे। वे अपने नाटकों के जरिए अंग्रेजों को नीचा दिखाया करते थे। लिखने का भी शौक था, अच्छे लेखक थे। पंजाबी उर्दू पत्रिका के लिए लिखा करते थे ।
भगतसिंह कहा करते थे –
” अंग्रेज बहरे हो गए हैं। उन्हें ऊंचे सुनाई देते हैं।इसके लिए बड़ा धमाका जरूरी है ।”
वे अपने फांसी के पहले तक इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाते रहते थे। उन्हें जेल में भी बहुत कष्ट सहने पड़े। क्योंकि उस समय भारत वासियों के साथ जेल में अच्छा व्यवहार नहीं किया जाता था। जेल वासियों की सुरक्षा के लिए वह जेल के अंदर भी आंदोलन शुरू कर दिया था। अंग्रेजी पुलिस उन्हें बहुत तंग करते थे ।वे सब कुछ सहन किया मगर हार नहीं मानी। सन् 1931 में मध्य रात्रि में उन्हें फांसी पर चढ़ा दी।