सबगुरु न्यूज। धार्मिक और ज्योतिष शास्त्र की मान्यताओं में शनि ग्रह को शुभ ग्रह नहीं माना जाता है। इसे विपत्ति, संकट मानते हुए कई तरह के धार्मिक अनुष्ठान ओर कर्मकांड किए जाते हैं।
ज्योतिष शास्त्र की मान्यताओं में आकाशीय ग्रह शनि इस संवत के राजा हैं और आज से वे वक्री होने के लिए अपने स्थान से पीछे की ओर जा रहे हैं। लगभग पांच माह तक शनि इसी चाल से चलते हुए प्रकृति व मौसम को प्रभावित करेंगे। इस दौरान कई नए घटनाक्रम को अंज़ाम दे सकते हैं।
शनि ग्रह मूल रूप से वायु ओर प्रचंड तूफान के कारक ग्रह होने के साथ ही साथ व्यवस्था शासन न्याय सुरक्षा तथा गूढ़ दर्शन के भी कारक माने जाते हैं। शनि ग्रह जब अपनी वक्री गति से भ्रमण करते हैं तो ज्योतिष शास्त्र की मान्यताओं के अनुसार वह अपने क्षेत्रों को काफी प्रभावित कर उसमे नई स्थितियों को उत्पन्न करते हैं और सजगता बरतने के संदेश देते हैं।
उत्तर कालामृत ज्योतिष ग्रंथ की मान्यताओं के अनुसार वक्री ग्रह का बल उसके उच्च होने के बराबर समझना चाहिए। शुभ ग्रहों के विषय में यह माना जाता है कि वे वक्री होने पर शुभ फल देते हैं। शनि ग्रह को शुभ ग्रह ज्योतिष शास्त्र में नहीं माना जाता है इसलिए यह वक्री होने पर अपनी अशुभता को बढाता है।
आकाश में शनि ग्रह के चारों ओर सात प्रकाशमान छल्ले हैं। यह एक राशि में ढाई वर्ष रहता है और सूर्य की एक परिक्रमा में लगभग शनि ग्रह को तीस वर्ष लग जाते हैं। शनि को वायु व विपत्ति का मालिक माना जाता है। दुर्भाग्य हानि अंधकार वायु रोग शारीरिक बल का स्वामी ग्रह ज्योतिष शास्त्र में माना जाता है।
शनि ग्रह तीस अप्रेल 2019 को प्रात:काल से वक्री गति से भ्रमण करने लग जाएंगे और कई तरह की समीकरणों को हर क्षेत्रों में बदलेंगे।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर