सबगुरु न्यूज। शुक्रवार 30 अक्टूबर को शाम 5:46 के पश्चात ‘शरदपूर्णिमा’ प्रारंभ हो रही है। इस साल अधिक अश्विन मास होने के कारण अश्विनपूर्णिमा को शरद पूर्णिमा (कोजागरी पूर्णिमा) है।
अश्विन पूर्णिमा के विविध नामों का अर्थअश्विन पूर्णिमा को शरद (कोजागरी) पूर्णिमा, नवान्नपूर्णिमा अथवा शरद पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। जिस दिन पूर्णिमा पूर्ण होती है, उस दिन नवान्न पूर्णिमा मनाई जाती है।
अश्विन पूर्णिमा की उत्तररात्रि को लक्ष्मीदेवी ‘को जागरति’ अर्थात कौन जाग रहा है? ऐसा पूछती हैं, इसलिए इस पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा कहते हैं।
किसान अश्विन पूर्णिमा को प्रकृति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए नए अनाज की पूजा कर उसका भोग लगाते हैं, इसलिए इस पूर्णिमा को नवान्न पूर्णिमा कहते हैं।
अश्विन पूर्णिमा शरदऋतु में आती है, इसलिए इस पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा भी कहा जाता है। पूर्णिमा तिथि दो दिन हो तो किस दिन शरद पूर्णिमा (कोजागरी पूर्णिमा) मनानी चाहिए?
ज्योतिषशास्त्रानुसार सूर्योदय के समय जो तिथि होती है उसे ग्राह्य माना जाता है। हिन्दू पंचांगानुसार अश्विन महीने में मध्यरात्रि की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा (कोजागरी पूर्णिमा) मनाई जाती है। इस साल 30 अक्टूबर को सायंकाल 5:46 बजे से 31 अक्टूबर की रात्रि 8:19 बजे तक पूर्णिमा तिथि है। 30 अक्टूबर को मध्यरात्रि पूर्णिमा होने के कारण शरद पूर्णिमा (कोजागरी पूर्णिमा) मनाई जाने वाली है।
शरद (कोजागरी) पूर्णिमा को चंद्रमा देखने का ज्योतिषशास्त्रीय महत्त्व
इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के सर्वाधिक निकट रहता है। इस दिन देवी लक्ष्मी और इंद्रदेवता का पूजन किया जाता है। इस कारण लक्ष्मीजी की कृपा से सुख समृद्धि प्राप्त होती है। रात्रि को दूध में चंद्रमा का दर्शन करने से चंद्रमा की किरणों के माध्यम से अमृत प्राप्ति होती है। अश्विन पूर्णिमा को चंद्रमा अश्विनी नक्षत्र में होता है। अश्विनी नक्षत्र के देवता अश्विनीकुमार हैं। अश्विनी कुमार सर्व देवताओं के चिकित्सक हैं। अश्विनी कुमार की आराधना करने से असाध्य रोग ठीक होते हैं। इसलिए वर्ष की अन्य पूर्णिमाओं की तुलना में अश्विन पूर्णिमा को चंद्रमा के दर्शन से कष्ट नहीं होता।
ज्योतिषशास्त्र में चंद्रमा ग्रह को मन का कारक माना गया है। इसलिए हमारी मानसिक भावनाएं, निराशा और उत्साह चंद्रमा से संबंधित हैं। जिनकी जन्मकुंडली में चंद्रमा बल न्यून होता है, उन्हें पूर्णिमा के आसपास मानसिक कष्ट होने की मात्रा बढती है। जिनकी जन्मकुंडली में चंद्रमा का बल अच्छा है, उनकी प्रतिभा पूर्णिमा के चंद्रमा, चांदनी के वातावरण में जागृत होती है। उन्हें काव्य सूझता है।
उत्सव मनाने की पद्धति (लक्ष्मी तथा इंद्र का पूजा विधि)
इस दिन नवान्न (नए पके हुए अनाज की) रसोई बनाई जाती है। श्रीलक्ष्मी तथा ऐरावत पर आरुढ इंद्र की पूजारात्रि के समय की जाती है। पूजा के उपरांत पोहे तथा नारियल पानी देव तथा पितरों को समर्पित करने के पश्चात् नैवेद्य के रूप में घर के सभी उपस्थित सदस्य ग्रहण करते हैं। शरद ऋतु की पूर्णिमा पर चांद की रोशनी में गाढा दूध बनाकर चंद्र को उसी का नैवेद्य दिखाया जाता है।
उसके पश्चात् नैवेद्य के रूप में वही दूध ग्रहण किया जाता है। इस दूध में स्थूल तथा सूक्ष्म रूप से चंद्र का रूप तथा तत्त्व आकर्षित होता है। चंद्र के प्रकाश में एक प्रकार की आयुर्वेदिक शक्ति रहती है। अतः यह दूध आरोग्य दायी होता है। इस रात्रि को जागरण करते हैं। मनोरंजन हेतु विभिन्न प्रकार के खेल आदि खेले जाते हैं। दूसरे दिन सुबह पूजा का पारणं करते हैं।
जागरण : बीच रात्रि में लक्ष्मी चंद्र मंडल से भूतल पर आती है तथा जो जागृत होगा, उस पर संतुष्ट होकर उसे कृपाशीर्वाद देकर जाती है। अतः कोजागरी की रात्रि जागरण किया जाता है। चंद्रमा मातृकारक ग्रह है, अर्थात कुंडली के चंद्रमा से माता के सुख का अध्ययन करते हैं। अश्विन पूर्णिमा को चंद्रमा को साक्षी मानकर माता कृतज्ञताभाव से अपनी ज्येष्ठ संतान की आरती उतारती है, क्योंकि प्रथम संतान के जन्म के उपरांतस्त्री को मातृत्व का आनंद प्राप्त होता है।
प्राजक्ता जोशी