7 मार्च को रांदा पोवा
शीतला सप्तमी 8 मार्च को
पृथ्वी लोक में नहीं रहेंगी भद्रा
वृश्चिक राशि के चन्द्रमा में
सबगुरु न्यूज। शीतला सप्तमी की पूजा सर्वत्र भारत में की जाती है और एक पहले बने दिन भोजन का भोग शीतला माता के अर्पण किया जाता है। आद्या शक्ति के रूपों में जगत का कल्याण करने वाली तथा सभी प्राणियों की रोगों से रक्षा करनें वाली इस दैवी शक्ति की आराधना चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की की सप्तमी के दिन की जाती है इसलिए इसे “शीतला सप्तमी” के नाम से ही जाना जाता है और कहीं पर शीतला अष्टमी के दिन भी इसकी पूजा उपासना की जाती है।
जल और शीतलता की प्रतीक इस दैवी को शुद्ध जल और दही से ही स्नान कराया जाता है। ज्वार की राबडी नैवेध व नाना प्रकार के भोग जो एक दिन पूर्व बने हुए हों उनका भोग अर्पण किया जाता है। शीतला अष्टमी के दिन शीतला के दूसरे रूप “बोदरी माता”के रूप में आम-जन द्वारा पूजा जाता है।
कई स्थानों पर सात दिन के मेले लगते हैं और सात दिन ही सातों शक्तियों के रूप में इन्हें पूजा जाता है। विशेष रूप से सोमवार, बुधवार, गुरूवार और शुक्रवार के दिन भी पूजा जाता है।एक दिन पूर्व बना भोग ही शीतला माता के अर्पण किया जाता है इस कारण इसे बांसोडा भी कहा जाता है।
शीतला माता को विशेष कर रोगों से मुक्ति हेतु पूजा जाता है। माता शीतला को चैचक, टाइफायड, मोतीझरा, आंखों की बीमारी घुटनों के रोग आदि की देवी शक्ति माना जाता है और इसको पूजने से सदा इन रोगों से मुक्ति मिलती हैं ऐसी धार्मिक आस्था व श्रद्धा है। तथा शीतला सप्तमी को प्रेम के परिवार साथ बैठ कर भोजन करना चाहिए।
शीतला माता की स्तुति की जानकारी स्कन्ध पुराण में मिलती है तथा इस शक्ति के स्वरूप का वर्णन मिलता है। दैवी का वाहन गधा माना गया है, इसके हाथ में जल कलश, झाडू, नीम की पत्तियां व सूप ( छजला) बताया गया है। झाडू स्वच्छता और जल कलश शीतलता व समृद्धि का प्रतीक है नीम की पत्तियां आरोग्य तथा सूप गुण कारी चीजों को रखकर खराब चीजों को हटाने का संदेश देता है।
चैत्र मास की गर्मी बढ़ने से शरीर को साफ़ सुथरा रखें ओर शरीर में लगातार जल की मात्रा में वृद्धि रखें ताकि शरीर की गर्मी रोगों को उत्पन्न न कर सके। गुणकारी वस्तुओं का सेवन करें तथा अनावश्यक चीजों का सेवन न कर शरीर को हल्का रखें ताकि कार्य करने में आलस्य न आए तथा शरीर की ऊर्जा पाचन तंत्र को सुचारू रूप से हर प्रकार से चला सके। गधा संयमी पशु होता है अत संयम बनाए रखें, क्रोध ना करें ताकि गरमी में रक्त का संचार सुचारू रूप से चलता रहे।
यही देवी के रूप से संदेश मिलता है। विज्ञान भले ही इन मान्यताओं को न माने लेकिन आस्था श्रद्धा ओर धार्मिक मान्यताओं में यह आज भी विधमान है। ज्योतिष शास्त्र केवल ग्रह नक्षत्रों के रश्मियों के प्रभावों की अच्छा आकलन व अध्ययन करता है और केवल सूर्य की बढ़ती गरमी में अपनें अंदर की गर्मी को संतुलित करने का संकेत देता है तथा कर्म काण्ड व मुहूर्त शास्त्र धार्मिक मान्यताएं हैं।
धार्मिक मान्यताओं में इस पूजा उपासना से आरोग्यता से रहा जा सकता है लेकिन देश और दुनिया में जहां यह मान्यताएं नहीं है वहां पर भी व्यक्ति प्रकृति के गुण धर्म को अपनाकर ही सुखी और समृद्ध रहता है वह भी एक अप्रत्यक्ष रूप से शीतला सप्तमी की पूजा ही है इसमे कोई संशय नहीं है।
सौजन्य : भंवरलाल