महाराष्ट्र। कोरोना संकट के बीच आइए मध्य प्रदेश की सियासत की बात कर लेते हैं। हम आपको बताने जा रहे हैं मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की। शिवराज सिंह चौहान ने कांग्रेस की चुनी हुई सरकार और मुख्यमंत्री कमलनाथ से सीएम की कुर्सी अपने कब्जे में करके देश के राजनीतिक पंडितों को बता दिया कि मुझसे बड़ा खिलाड़ी कोई हो ही नहीं सकता है। अब एक बार फिर शिवराज सिंह मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए हैं, उन्होंने सोमवार देर रात आनन-फानन में सीएम पद की शपथ ले ली है।
15 सालों तक सत्ता में रही भाजपा सरकार जब दिसंबर 2018 में चुनाव हार गई, तो उसके बाद शिवराज सिंह चौहान के राजनीतिक करियर पर भी सवाल खड़े होने लगे थे। शिवराज हार के बाद भी प्रदेश में सक्रिय रहे। शिवराज ने इसी साल जनवरी में सिंधिया से मुलाकात भी की थी। इसी के बाद शिवराज सिंह चौहान कमलनाथ की सरकार उखाड़ फेंकने में लगे हुए थे। मध्यप्रदेश के सियासी ड्रामे से सबसे ज्यादा फायदे में शिवराज रहे।
शिवराज के सामने आगे की चुनौती इतनी आसान नहीं होगी
मध्य प्रदेश के राजनीतिक इतिहास में यह पहला मौका होगा जब शिवराज सिंह प्रदेश के चौथी बार मुख्यमंत्री बने हैं। उन्होंने 1 साल 3 माह के अंदर मुख्यमंत्री पद का सिंहासन हासिल कर लिया है। शिवराज के सामने दो चुनौतियां होंगी। पहली फ्लोर टेस्ट की, जिसे वे फिलहाल आसानी से पार कर लेंगे। इसके बाद 6 महीने के भीतर 24 विधानसभा सीटों पर होने वाले उप-चुनाव की। इन 24 सीटों में से शिवराज को अपनी सत्ता कायम रखने के लिए कम से कम 9 सीटें जीतनी होंगी।
पिछले साल महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस के इस्तीफे के बाद शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने विधायकों के समर्थन पत्र राज्यपाल को सौंपकर मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। इसके बाद भी उन्हें विधानसभा में फ्लोर टेस्ट से गुजरना पड़ा, जिसमें वे जीत गए। 24 सीटों पर 6 महीने में चुनाव होंगे विधानसभा में 230 सीटें हैं। 2 विधायकों के निधन के बाद 2 सीटें पहले से खाली हैं। सिंधिया समर्थक कांग्रेस के 22 विधायक बागी हो गए थे। कुल 24 सीटें अब खाली हैं। इन पर 6 महीने में चुनाव होने हैं। अगर निर्दलीयों ने भाजपा का साथ नहीं दिया तो उपचुनाव में पार्टी को कम से कम 9 सीटें जीतनी होंगी।
शिवराज सिंह के सामने कई थे मुख्यमंत्री पद के दावेदार
मुख्यमंत्री कमलनाथ के इस्तीफा देने के बाद मध्य प्रदेश में सीएम पद को लेकर शिवराज सिंह समेत कई बड़े नेता सीएम पद की दावेदारी ठोक रहे थे लेकिन आखिरी मुहर शिवराज सिंह चौहान पर ही लगाई गई। नरोत्तम मिश्रा, नरेंद्र सिंह तोमर यह दो ऐसे नाम है कि मुख्यमंत्री पद की रेस में शामिल थे लेकिन आखिर समय में भाजपा आलाकमान ने शिवराज सिंह चौहान को अनुभव देखते हुए उन्हीं पर भरोसा जताया। सोमवार गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ पार्टी के संगठन महामंत्री बीएल संतोष ने बैठक की और इस फैसले को अंतिम रूप दिया। प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने बताया कि विधायक दल की बैठक के बाद हम राज्यपाल से मिलने जाएंगे।
सोमवार रात 9 बजे 6 मिनट के अंदर शिवराज सिंह ने शपथ ली। चौहान को मुख्यमंत्री की कुर्सी जरूर मिल गई है, लेकिन हाल ही में कांग्रेस छोड़ भाजपा में आए ज्योतिरादित्य सिंधिया समेत भाजपा के कई दिग्गज नेताओं को भी साथ लेकर चलना होगा। क्योंकि इस बार वे जनता के द्वारा चुने गए मुख्यमंत्री नहीं है बल्कि जोड़-तोड़ कर के सीएम की कुर्सी पाने वाले खिलाड़ी के रूप में अपना नाम दर्ज करा चुके हैं।
शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार