अजमेर। भारतीय सनातन संस्कृति संस्कारों की जननी है, इन्हीं संस्कारों के कारण आज विश्व की सभी संस्कृतियों में हमारी संस्कृति सर्वश्रेष्ठ है। संस्कारों के कारण ही हमारी सभ्यता को विश्व ने अपनाया है। दुर्भाग्य कि हम इससे दूर होते जा रहे हैं। रामायण ग्रंथ में हर पात्र अपने संस्कारों के कारण सर्वश्रेष्ठ है जो हमें प्रेरित करता है।
यह बात संत उत्तराम शास्त्री ने लोहाखान स्थित मारोठ भैरव मंदिर में आयोजित श्री राम कथा यज्ञ के दौरान श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कही। महाराज ने रामायण कथा के दौरान श्रीराम सुग्रीव मिलन, बाली वध, सीता की खोज, हनुमान जी का लंका प्रस्थान, माता सीता से अशोक वाटिका में मिलन, लंका दहन आदि प्रसंगों का भजनों के साथ वर्णन किया।
महाराज ने कहा कि नवरात्र साधना का समय है इस दौरान सभी को अपने अपने आराध्य देव का नाम जाप करना चाहिए तभी आप का कल्याण होगा। उन्होंने कहा कि भगवान कभी जात पांत, उंच नीच, कुल आदि नहीं बल्कि भक्ति देखते हैं। महाराज ने सभी श्रद्धालुओं से अपील की कि अधिक से अधिक संख्या में पधार कर आयोजित कथा धर्म लाभ उठाएं। कथा के पश्चात बुजुर्गों का सम्मान किया गया और आरती के बाद प्रसाद वितरण हुआ।
मित्रता हो तो राम और सुग्रीव जैसी
राम और सुग्रीव की मित्रता का उदाहरण देते हुए महाराज ने कहा कि परस्पर दुख और सुख बांटना ही असल मित्रता की निशानी है। जो मित्र को दुख देख दुखी ना हो, जरूरत पडने पर छिप जाए तो ऐसी मित्रता का कोई औचित्य नही है। मित्र गलत रास्ते पर चल रहा हो, उसमें कोई अवगुण हो तो उसे सही मार्ग पर लाए, यही मित्र का फर्ज है। स्वार्थयुक्त मित्रता को सच्ची मित्रता नहीं माना जाता।