सबगुरु न्यूज। श्रीरामनवमी के उपलक्ष्य में प्रभू श्रीराम की उपासना सम्बंधित अध्यात्मशास्त्रीय आधार की जानकारी लेकर उसका लाभ लें। यहां हम बता रहे हैं किस प्रकार श्रीराम की उपासना करनी चाहिए और उसके कितने तरीके हो सकते हैं।
तिलक लगाना
श्रीरामजी के पूजन से पूर्व उपासक स्वयं को श्रीविष्णु समान खडी दो रेखाओं का अथवा भरा हुआ खडा तिलक लगाए। यह तिलक उपासक अपनी मध्यमा से लगाए।
रंगोली बनाना
श्रीराम तत्त्व को आकृष्ट करने वाले आकृतिबंध का उपयोग करना, श्रीराम तत्त्व का अधिकाधिक लाभ प्राप्त करने में सहायक है।
चंदन लगाना
श्रीरामजी को अनामिका से चंदन चढाएं।
फूल चढाना
श्रीरामजी को केवडा, चंपा, चमेली एवं जाही के फूल चढा सकते हैं। श्रीरामजी को चार अथवा चार गुणा जाही के फूल चढाएं। फूलों का डंठल देवता की ओर होना चाहिए। फूलों की रचना भरे हुए या रिक्त लंबगोलाकार में भी हो सकती है।
उदबत्ती(अगरबत्ती)
श्रीरामजी की तारक उपासना के लिए चंदन, केवडा, चंपा, चमेली, जाही एवं अंबर इन गंधों में से किसी एक गंध की उदबत्ती/अगरबत्ती जलाएं। श्रीरामजी की मारक उपासना के लिए हीना एवं दरबार यह उदबत्ती जलाएं। उदबत्ती की संख्या दो होनी चाहिए। उदबत्ती को दाएं हाथ की तर्जनी अर्थात अंगूठे के पासवाली उंगली तथा अंगूठे से पकडकर घडी की दिशा में पूर्ण गोलाकार पद्धति से तीन बार घुमाएं।
इत्र
श्रीरामजी को जाही की सुगंधवाला इत्र लगाएं।
परिक्रमा
श्रीरामजी की परिक्रमा लगाते समय कम से कम तीन अथवा तीन गुणा परिक्रमा करें।
तुलसीदल
श्रीरामजी को पूजा में तुलसीदल अर्पित किया जाता है। हम सभी को ज्ञात है, कि तुलसी एक पूजनीय वनस्पति है। इसकी दो जातियां होती हैं श्यामा एवं गौरी। गौरी तुलसी प्रभु श्रीराम को अर्पित करते हैं। जिस प्रकार श्रीगणेशजी को दूर्वा, शिवजी को बेलपत्र अर्पित करने का महत्त्व है ठीक उसी प्रकार प्रभु श्रीरामजी को तुलसी अर्पित करना महत्त्वपूर्ण होता है। किसी भी देवता को विशेष वस्तु अर्पित करने का उद्देश्य यह होता है कि पूजा की जाने वाली मूर्ति में चैतन्य निर्माण हो एवं उसका उपयोग हमारी आध्यात्मिक उन्नति के लिए हो। यह चैतन्य निर्माण करने के लिए देवता को जो विशेष वस्तु अर्पित की जाती है, उस वस्तु में देवतातत्त्व के सूक्ष्मातिसूक्ष्म कण आकृष्ट करने की क्षमता अन्य वस्तुओं की तुलना में अधिक होती है।
उपासना के विविध प्रकार
जैसे पूजा, आरती, भजन इत्यादि करने से उस देवता के तत्त्व का लाभ मिलता है; परंतु इन उपासना-पद्धतियों की अपनी सीमा होती है। अर्थात् हम पूजा, आरती, भजन चौबीसों घंटे या किसी भी स्थिति में नहीं कर सकते। इसलिए लाभ भी उसी के अनुरूप मिलता है। देवता के तत्त्व का निरंतर लाभ मिलता रहे, इस हेतु उनकी उपासना भी निरंतर होनी चाहिए और ऐसी एकमात्र उपासना है नामजप। कलियुग के लिए नामजप ही सरल एवं सर्वोत्तम उपासना है।
प्रभु श्रीरामजी का नामजप
श्रीराम के कुछ प्रचलित नामजप हैं। उनमें से ‘श्रीराम जय राम जय जय राम ’ यह त्रयोदशाक्षरी जप सबसे अधिक प्रचलित है। श्रीराम जय राम जय जय राम। इसमें श्रीराम : यह श्रीराम का आवाहन है। जय राम : यह स्तुतिवाचक है। जय जय राम ‘नमः’ समान यह शरणागति का दर्शक है।
इस प्रकार नामजप करने पर अनेक लोग सच्चे आनंद का अनुभव लेते हैं। एक बार एकाग्रता से नामजप होने लगे तो अनुभूतियां भी होने लगती हैं।
प्रभु श्रीरामजी के स्वामित्व का एवं अपने दास्यत्व का अनुभव करने में जितना आनंद है, उतना अन्य किसी भी बात में नहीं । इस प्रकार नामजप का आनंद आप भी ले सकते हैं।
संदर्भ : सनातन-निर्मित ग्रंथ ‘श्रीविष्णु, श्रीराम एवं श्रीकृष्ण’
श्री आनंद जाखोटिया
हिंदू जनजागृति समिति
7021912805