लखनऊ। अंग्रेजी दवाओं के अत्यधिक इस्तेमाल से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव के विपरीत जटिल और असाध्य रोगों के लिये कारगर समरूपता के सिद्धांत पर आधारित होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति के प्रति लोगों का भरोसा हाल के वर्षों में और मजबूत हुआ है।
होम्योपैथी चिकित्सा को बढ़ावा देने के लिये पूरे विश्व में दस अप्रैल “होम्योपैथी दिवस” के रूप में मनाया जाता है। चिकित्सकों के अनुसार करीब दो सदी पुरानी इस चिकित्सा पद्धति से इलाज कराने वाले मरीजों की तादाद पिछले एक दशक के दौरान 20 फीसदी तक बढ़ी है वहीं छात्रों में होम्योपैथी के प्रति बढ़ता क्रेज देश में इस चिकित्सा पद्धति के फलने फूलने का एक शुभ संकेत है। केन्द्रीय होम्योपैथी परिषद की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में हर सातवां मरीज होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति से इलाज करा रहा है।
वरिष्ठ होम्योपैथिक चिकित्सक ए के पांडेय कहते हैं कि कुछ आपात स्थितियों को छोड़कर करीब 80 फीसदी रोगों के इलाज के लिये होम्योपैथी कारगर है। एलोपैथी की तुलना में होम्योपैथी कम खर्चीली, सुलभ, सुरक्षित और प्रमाणिक चिकित्सा पद्धति है। त्वरित आराम देने वाली एलोपैथिक दवाइयाें के साइड इफेक्ट भी कम नहीं हैं जबकि होम्योपैथी लक्षणों पर निर्भर चिकित्सा पद्धति है और दवाइयों के दुष्प्रभाव भी न के बराबर हैं। ऐलोपैथिक दवाओं के प्रयोग से शरीर में अन्य रोगों के उत्पन्न होने की संभावना बढ़ जाती है जबकि होम्योपैथिक में हर मर्ज का इलाज जड़ से किया जाता है।