सबगुरु न्यूज। आत्मा के बिना शरीर मात्र पंच महाभूतों का मात्र एक खिलौना है जो खुद कुछ भी नहीं कर सकता और बिना शरीर के इस आत्मा का जमीनी स्तर पर कोई वजूद नहीं होता। यह दोनों जब मिल जाते हैं तब उन्हे कुदरत की रचना का भान होता है। बस यही से सोच का निर्माण शुरू हो जाता है। यही सोच एक दुनिया का निर्माण कर देती हैं।
इस दुनिया में खेलते हुए आत्मा और शरीर के संगम का साथ शनैः शनैः छूट जाता है और शरीर को छोडकर आत्मा ना जाने कहां चली जाती है। इसके बाद शरीर वापस खिलौने की तरह हो जाता है और शनैः शनैः उसके पंच महाभूत निकल जाते हैं और वह शरीर खिलौने से मिट्टी बन जाता है।
जमीनी हकीकत में शरीर ओर आत्मा की बस यही कहानी होती है जो इस दुनिया में अपनी यादों को छोड़ जाते हैं और उसके बाद मानव के ज्ञान, विज्ञान, आध्यात्मिक और धार्मिक सोच शुरू होती है। विज्ञान शरीर की रचना का अध्ययन करता है और आत्मा को प्राण वायु बताता है।
शरीर को रोग मुक्त बनाकर वो प्राण वायु शरीर में बनाए रखने का प्रयास करता है फिर भी प्राण वायु रुपी ऊर्जा इस विज्ञान को चुनौती देती हुई इस शरीर से निकाल जाती है। अंत में विज्ञान शरीर को मृत घोषित कर देता है, क्योकि वो किसी भी तरह से प्राण वायु रुपी ऊर्जा को वापस नहीं ला सकता केवल जब तक ह्रदय धडक रहा है तब तक ही वो प्रयास कर सकता है।
अध्यात्मिक, ज्ञान, धर्म आदि सभी इस जगत के सत्य को स्वीकार करते हैं पर शरीर और आत्मा का सम्बंध अज्ञात ईश्वरीय शक्ति के साथ जोड़कर अपने ज्ञान को खड़ा करते हैं। शरीर को नश्वर मानकर प्राण वायु रुपी ऊर्जा को अमर मानते हुए इसके पूर्वजन्म व पुनर्जन्म के सिद्धांतों को रचते हैं।
प्राण वायु रुपी ऊर्जा को आत्मा मान उसके कल्याण के लिए संस्कार करते हैं। आत्मा अजर अमर ओर अविनाशी है इस सिद्धांत की रचना करते हैं। शरीर की मृत्यु के बाद श्राद्ध तर्पण आत्मा का मोक्ष आदि सभी कर्म को किए जाने के नियम व निर्देश बताते हैं।
संत जन कहते हैं कि हे मानव प्राण वायु रुपी ऊर्जा जिसे आत्मा कहते हैं उसका महत्व शरीर जीवित होने तक ही होता है। शरीर इस आत्मा से जीवित रह कर मानव सभ्यता और संस्कृति का निर्माण कर उन इतिहासों को लिख जाता है जो सदियों तक आने वाली पीढ़ियों को मार्ग दर्शन करते हैं।
बस यही यादें जमीनी हकीकत में शरीर और आत्मा की रह जाती है और हम श्रद्धा से उन्हें याद करते हैं। आध्यात्मिक और धार्मिक दृष्टिकोण से शरीर की मृत्यु के बाद भी आत्मा को अजर, अमर और अविनाशी मानते हुए इसके मोक्ष के लिए कर्म किए जाते हैं तथा आत्मा के सम्मान में श्राद्ध मना कर याद करते हैं।
इसलिए हे मानव शरीरधारी जो इस दुनिया से जा चुका है उसकी यादों को संजोये रखने के लिए तू श्रद्धा से श्राद्ध मना। भले ही आत्मा का पूर्व जन्म हो या नहीं हो। जाने वाले शरीर और आत्मा की यादों के श्राद्ध तेरे सामाजिक सम्बंधों को मजबूत करेंगे, तुझ में दया, सहयोग और समन्वय रखने की भावना उत्पन्न होगी। तेरे इस कर्म से तेरी आने वालीं पीढ़िया भी तेरे जीवन को यादों मे संजोये रखेगी। जो भूतकाल है उसे सम्मान ही दिया जाता है लेकिन कोसा नहीं जाता।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर