सिरोही। राजस्थान विधानसभा में 1 मार्च 2021 को संयम लोढ़ा द्वारा राजस्थान विधानसभा में माउंट आबू में निर्माण सामग्री के लिए टोकन व्यवस्था खत्म करने के मुद्दे पर शांति धारीवाल ने जवाब दिया था कि ये अधिकार उपखण्ड अधिकारी को मोनिटरिंग कमिटी ने उप समिति का सदस्य बनाया था।
शांति धारीवाल को जिस अधिकारी ने माउंट आबू से ये सूचना भेजी वो गलत भेजी। आश्चर्य की बात ये कि धारीवाल जिस कमिटी द्वारा ये अधिकार देने की बात कर रहे थे उनके सदस्य रहे जालोर सन्सद देवजी पटेल और इसके दूसरे सदस्य भाजपा पार्षद सौरव गांगड़िया ने भी इसका खंडन नहीं किया कि धारीवाल गलत सूचना देकर माउंट आबू के लोगों और वहां के उपखंड अधिकारियों की ऑटोक्रेसी थोप रहे हैं।
सांसद ने और मोनिटरिंग कमिटी के सदस्यों, जो कि तब भाजपा पदाधिकारी थे, ने कभी ये नहीं कहा कि उन्होंने समिति को अधिकार हस्तांतरित किये थे अकेले माउंट आबू उपखण्ड अधिकारी को नहीं। ये बात दीगर है कि सांसद ने हाल में प्रेस कॉन्फ्रेंस में ये दावा किया था कि उन्होंने कुछ पत्राचार किये थे, लेकिन उन्हें सबकुछ सार्वजनिक करने की आदत नहीं है। ये बात अलग है कि उनकी मंत्री नेताओं से मुलाकातों के फोटो और कई दूसरे पत्राचार उनके सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ओर मिल जाते हैं।
माउंट आबू के ईको सेंसेटिव जोन के तहत जारी निटिफिकेशन का अंश जिसमें जोनल मास्टर प्लान लंबित होने तक मोनिटरिंग कमिटी के अनुमति देने का जिक्र है।एकाधिकार देकर की उच्च न्यायालय की अवमानना
शांति धारीवाल मोनिटरिंग कमिटी के जिस निर्णय की बात कर रहे थे, उसकी प्रोसिडिंग की कॉपी सबगुरु न्यूज ने सूचना के अधिकार के तहत निकाली है। इस कमिटी की 28 जून 2016 यानी आज से करीब 6 साल पहले हुई बैठक के प्रथम प्रस्ताव में ही ये निर्णय है। इसमें लिखा है कि केवल आवासीय रिपेयर और रिनिवेशन के लिए उच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार सब कमेटी के माध्यम से माउंट आबू के लोगों को रिपेयर और रिनिवेशन कि अनुमति दी जाए।
बैठक में उप समिति बनाकर उसके निरीक्षण के बाद उपखण्ड अधिकारी के माध्यम से अनुमति जारी करने के अधिकार उन्हें सौंपे गए न कि अकेले उपखण्ड अधिकारी को। ऐसे में उपखण्ड अधिकारी बिना समिति के निर्णय के अकेले माउंट आबू में किसी को भी मरम्मत अनुमति जारी करने को अधिकृत नहीं है।
इस समिति में मोनिटरिंग कमिटी के ही मेम्बर्स को रखा गया था।।लेकिन, अरविंद पोसवाल और सुरेश ओला के बाद इसकी पालना नहीं की गई। फिर कोरोना आ गया इसके बाद जो उपखण्ड अधिकारी आये उन्होंने माउंट आबू में निर्माण अनुमति जारी करने को अपना एकाधिकार मान लिया और ऐसा करके वो जून 2009 के नोटिफिकेशन, मोनिटरिंग कमिटी और मोनिटरिंग कमिटी द्वारा दिये गए हवाले के अनुसार उच्च न्यायालय के निर्णय की अवमानना करते रहे।
लिमबड़ी कोठी पूर्णतः व्यावसायिक निर्माण है ऐसे में उपखण्ड अधिकारी की समिति भी मोनिटरिंग कमिटी में लिए निर्णय के अनुसार इसे अनुमति नहीं दे सकती। प्रोसिडिंग के अनुसार इस बैठक जालोर सांसद देवजी पटेल, वर्तमान भाजपा पार्षद सौरव गंगड़िया भी सदस्य थे। इसी मोनिटरिंग कमिटी की बैठक में ही आदर्श विद्या मंदिर और कैलाश आश्रम भवन की चर्चा हुई थी। यानी भाजपा नेता भी माउंट आबू के लोगों की बजाय अपने सन्गठन के ही हित साधने में ज्यादा रहे। तो एक तरह से इस ‘अपना काम बनता भाड़ में जाये जनता’ का एजेंडे का हिस्सा वर्तमान कांग्रेस से पहले भाजपा भी रही है।
इसी कमिटी की 28 अक्टूबर 2016 की बैठक में आरसीसी को नया निर्माण मानते हुए ही नगर पालिका क्षेत्र की 10 और ओरिया पंचायत की 4 पत्रावलियों में से आरसीसी की अनुमति वाली पत्रवलियों को रिजेक्ट किया गया, जबकि अन्य पत्रावलियों को तो नया निर्माण नहीं करने की शर्त पर मरम्मत अनुमति दी गई। वही इस समिति के अंदर बनी उप समिति के अध्यक्ष उपखण्ड अधिकारी अकेले ही लिमबड़ी कोठी में आरसीसी डालने की अनुमति जारी कर दे रहे हैं।
माउंट आबू एसडीएम कर गए दोहरी चूक
माउंट आबू के लोगों के अधिकार दबाने और माउंट आबू बोर्ड से अदावत के चक्कर में कार्यवाहक आयुक्त के पद पर रहते हुए माउंट आबू के एसडीएम गलती भूल करते रहे। 2009 के ही नोटिफिकेशन में स्पष्ट लिखा है कि जोनल मास्टर प्लान लागू होने तक आवश्यक निर्माण व मरम्मत की अनुमति मोनिटरिंग कमिटी देगी।
लेकिन, उसकी ऊंचाई, प्लिंथ क्षेत्र आदि में कोई परिवर्तन नहीं करेगी। माउंट आबू के एसडीएम को अधिकार मोनिटरिंग कमिटी के प्रस्ताव के अनुसार दिए गए थे। उन्होंने लिमबड़ी कोठी में संरचनात्मक बदलाव भी करवा दिए और ऊंचाई भी बढ़वा दी। इसका अधिकार नोटिफिकेशन के अनुसार मोनिटरिंग कमिटी को भी नहीं था तो उप समिति को कहां से होगा।
नोटिफिकेशन पर ही विचार करने तो जोनल मास्टर प्लान लागू होते ही ये सारे अधिकार नगर पालिका के बोर्ड और निर्माण समिति के पास आ गए थे। क्योंकि नगर निकाय संवैधानिक संस्थान है ऐसे में उसकी भवन निर्माण समिति भी संवैधानिक संस्थान है। फिर, मोनिटरिंग कमिटी भी मई, 2020 को भंग हो गई थी। नई समिति बनाई नहीं थी तो उपखण्ड अधिकारी की कमिटी को अधिकृत करने वाले प्रस्ताव भी रिन्यु नहीं हो पाए थे। ऐसे में एसडीएम को मोनिटरिंग कमिटी के निर्णय के अनुसार काम करने देना ही अवैधानिक है।
जोनल मास्टर प्लान को लागू होने के बाद सारे अधिकार माउंट आबू की बोर्ड और निर्माण समिति के पास आ गए थे। लेकिन, कार्यवाहक आयुक्त रहते हुए उपखण्ड अधिकारी ने बायलॉज को अटकाकर ये समझ लिया कि वो नगर पालिका की निर्माण समिति को भी ओवरटेक कर सकते हैं लेकिन ऐसा था नहीं। वर्तमान उपखण्ड अधिकारी कनिष्क कटारिया तक ये अवैधानिक परम्परा जारी रही।
लिमबड़ी कोठी के अवैध निर्माण की सूचना का काम आयुक्त का
मोनिटरिंग कमिटी की जिस बैठक में उपखण्ड अधिकारी के अध्यक्षता में उप समिति बनाने के निर्णय किया था उसी बैठक में उसी प्रस्ताव के अंत में लिखा था कि मरम्मत की आड़ में नए निर्माण नहीं हो इसका विशेष ध्यान रखा जाना है। इसकी सूचना आयुक्त उपखण्ड अधिकारी को निरन्तर देते रहेंगे।
गौरव सैनी और कनिष्क कटारिया के पास तो कार्यवाहक आयुक्त और उपखण्ड अधिकारी दोनों के चार्ज रहे। इनके समय में ही लिमबड़ी कोठी में मरम्मत की आड़ में एक तल का अतिरिक्त नया निर्माण हो गया, ऊंचाई बढ़ा दी गई, यहां तक कि कई सारे टॉयलेट का नया निर्माण करवा दिया गया लेकिन, इन लोगों ने कोई कार्रवाई नहीं की। जबकि आम आबू वासी पर कई बार बुलडोजर लेकर चढ़ चुके हैं।
इनका कहना है…
मोनिटरिंग कमिटी में उपखण्ड अधिकारी को एकाधिकार नहीं दिया था। उनकी अध्यक्षता में मोनिटरिंग कमिटी के स्थानीय सदस्यों के साथ एक उप समिति बनाई गई थी। कुछ उपखण्ड अधिकारी इसकी पालना करते रहे। अभी तो उपखंड अधिकारी ऑटोक्रेसी, जिसे ब्यूरोक्रेसी कहते आये हैं, उस पर उतर आए हैं। फिर सरकार ने 2020 के बाद मोनिटरिंग कमिटी रिन्यू की ही नही और उप समिति का कार्यकाल बढ़ाने के निर्णय रिन्यू नहीं हुआ तो उप समिति वैसे ही अक्रियाशील हो जाती है। ये बात है कि मोनिटरिंग कमिटी के प्रस्ताव के आधार पर अकेले उपखण्ड अधिकारी को एकाधिकार के सरकार के कदम पर आपत्ति नहीं जताई।
सौरव गांगड़िया
भाजपा पार्षद एवं पूर्व मोनिटरिंग के सदस्य, माउंट आबू।
राजस्थान विधानसभा में संयम लोढ़ा के ध्यानकर्षण प्रस्ताव पर शांति धारीवाल का जवाब का विडियो…