सबगुरु न्यूज-सिरोही। पिण्डवाड़ा के तहसीलदार के बाद जिस मामले ने राज्य स्तर पर सिरोही की फजीहत करवाई है वो है जिले में पुलिस के सहयोग के शराब तस्करी चलने का मामला सामने आना। राज्यभर में इस मामले में हंगामा मचा हुआ है, लेकिन राज्य सरकार के द्वारा जांच शुरू किए जाने से पहले सत्ताधारी कांग्रेस, विपक्ष में बैठी भाजपा और निर्दलीय किसी ने भी अपना मुंह नहीं खोला।
ये घटना खुलने के पांच दिन तक जिले से लेकर राज्य तक के नेताओं की चुप्पी सिरोहीवासियों को इसमें राजनीतिक संरक्षण का शक पैदा कर रही है। सबगुरु न्यूज द्वारा चलाए जा रहे श्रंखलाबद्ध समाचारों के बाद जिले के कई संभ्रांत व्यक्तियों के फोन इस बात को लेकर आए कि सिरोही विधायक समेत कांग्रेस और भाजपा के शेष नेता इस पर चुप क्यों हैं?
नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल द्वारा अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर मुख्यमंत्री से इस प्रकरण की एसओजी जांच की नहीं कहते तो संभवत: इस प्रकरण की इतनी उच्च स्तरीय जांच भी नहीं होती। बेनीवाल के बयान के दूसरे दिन ही तस्करी के मामले में पुलिस अधीक्षक और सिरोही पुलिस की भूमिका की जांच के लिए उच्च स्तरीय जांच बैठने का राजनीतिक श्रेय हनुमान बेनीवाल के अलावा किसी को नहीं दिया जा सकता। सिरोही सांसद देवजी पटेल की चुप्पी भी लोगों के सवालों के घेरे में है।
-सिरोही विधानसभा
जिले में तीन विधानसभाएं हैं। यहां के विधायक और विधायकी के लिए लड़े कांग्रेस और भाजपा प्रत्याशियों की चुप्पी अब लोगों को खलने लगी है। सबसे ज्यादा खलने वाली है सिरोही विधायक की चुप्पी। सबगुरु न्यूज को आए एक फोन पर सिरोही के एक संभ्रांत व्यक्ति ने ये पूछा कि विपक्ष में सिरोही में नशे का व्यापार फैलने, शराब तस्करी में पुलिस की सहभागिता की बात कहने वाले सिरोही के निर्दलीय विधायक संयम लोढ़ा क्यों चुप हैं?
वहीं उनका ये भी सवाल था कि ये समय सिरोही से भाजपा के प्रत्याशी और पूर्व मंत्री ओटाराम देवासी तो विपक्ष में हैं। आखिर उन्होंने चुप्पी क्यों साध रखी है? एक पाठक का सवाल तो वाकई गौरतलब था। उनका कहना था कि इसी घटना के साथ स्थानीय होटल व्यवसाई के साथ भी कोई घटना हुई। उसके लेकर सिरोही के सभी नेताओं और जनप्रतिनिधियों ने विडियो बयान और पोस्टें डालकर गदर काटा हुआ है। लेकिन, इस मामले में चुप्पी सवालों के घेरे में है।
-पिण्डवाड़ा-आबू विधानसभा
जिस क्षेत्र में शराब का गोदाम मिला और जिस क्षेत्र को इसके लिए उपयोग में लिया जाने का मामला प्रथम दृष्टया सामने आया है वो है पिण्डवाड़ा-आबू विधानसभा। यहां के भाजपा विधायक समाराम गरासिया ने अपने कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के बाद 27 मई को इस ओर इशारा करता एक ट्विट किया। लेकिन, इस ट्विट के बाद वो कुछ पुलिस अधिकारियों के जातीय नेताओं से ऐसे घिर गए कि फिर उन्होंने कोई ट्विट को क्या विरोध भी नहीं किया।
सूत्रों के अनुसार 30 मई को शराब की खेप पकडऩे के बाद उन्हें घेरे नेताओं से आजाद हुए और उन्होंने एक और ट्विट किया। सबगुरु न्यूज ने उनसे सिरोही विधायक की तरह अकेले सांकतिक धरना क्यों नहीं देने की बात पूछी तो वो इसे पांच-सात दिन बाद करने की बात कहते हुए टाल गए। वहां के कांग्रेस प्रत्याशी, जो कि हारने के बाद कांग्रेसराज में प्रोटोकॉल में विधायक है, उनकी चुप्पी भी लोगों का साल रही है।
-रेवदर विधानसभा
यहां पर भाजपा के विधायक जगसीराम कोली हैं। वहीं कांग्रेस के प्रत्याशी नीरज डांगी थे जो फिलहाल राज्यसभा सांसद भी हैं। इस तस्करी को एक्जिट पॉइंट मावल और मंडार दोनों इसी क्षेत्र में आबूरोड इन्हीं की विधानसभा में पड़ता है। इसके बाद भी इन दोनों ने सार्वजनिक रूप से कुछ बयान नहीं दिया।
-जिलाध्यक्षों का मौन व्रत
सिरोही विधायक के बाद यदि इस प्रकरण में दूसरा सबसे बड़ा सवाल किसी की चुप्पी पर उठ रहा है तो वो हैं भाजपा के जिलाध्यक्ष नारायण पुरोहित। वो विपक्ष में हैं। हर छोटे बड़े मामले में प्रेसनोट जारी कर देते हैं धरना दे देते हैं, लेकिन इस प्रकरण में छह दिन बाद वो मुंह में ताला और पेन की स्याही सुखाए बैठे हैं।
जबकि यदि भाजपा कार्यकर्ताओं की पुलिस द्वारा प्रताडऩा की बात है तो सबसे ज्यादा उनकी जवाबदेही बनती है इस मुद्दे को बेहतर तरीके से उठाना।
वहीं कांग्रेस जिलाध्यक्ष जीवाराम आर्य भी सवालों के घेरे से बाहर नहीं है। उनकी जिम्मेदारी जिले में अपनी पार्टी की साख को बचाए रखना है। लेकिन, इस मामले में उनकी चुप्पी देखकर यही लग रहा है कि उनको इस साख से कोई लेना देना नहीं है।
-बोले पर जांच के बाद
इस मामले की जांच के लिए मंगलवार को राज्य सरकार ने उच्च स्तरीय जांच बैठा दी है। बुधवार को दल आ गया। तब जाकर भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया बोले। स्थानीय स्तर पर पूर्व जिला प्रमुख पायल परसरामपुरिया का भी ट्विट आया। लेकिन, ट्विट में पहली लाइन को छोड़कर शेष लाइनों को देखकर यहीं प्रतीत हो रहा है कि वो अपनी ही सरकार द्वारा 2018 में सरकारी कार्मिकों को बचाने और प्रेस पर प्रतिबंध लगाने के काले कानून से अनभिज्ञ हैं।
वो एसीबी की जांच की मांग कर रही हैं, जो कि पूर्ववर्ती वसुंधरा सरकार ने ये विभागीय स्वीकृति के बिना किया जाने पर रोक लगा दी है। इस मामले में पद के दुरुपयोग का ही मामला बनता है जो कि इस उच्च स्तरीय जांच के ही समकक्ष है।