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सिंधी साहित्य में श्रृंगार रस संगोष्ठी में दो दिन चला विचार मंथन

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सिंधी साहित्य में श्रृंगार रस संगोष्ठी में दो दिन चला विचार मंथन

अजमेर। राष्ट्रीय सिंधी भाषा विकास परिषद् नई दिल्ली के सौजन्य से सिंधी साहित्य में श्रृंगार रस पर आयोजित दो दिवसीय विचार गोष्ठी का रविवार शाम समापन हुआ।

संगोष्ठी के विचार मंथन पर विस्तृत जानकारी देते हुए परिषद् के सदस्य एवं कार्यक्रम संयोजक डा. सुरेश बबलाणी ने बताया कि उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता राजस्थान सिंधी अकादमी के पूर्व अध्यक्ष एवं जाने माने सिंधी हिन्दी के साहित्यकार भगवान अटलाणी ने की एवं मुख्य वक्ता हनुमानसिंह थे।

बीज वक्तव्य जोधपुर के दिनेश सिंदल ने प्रस्तुत करते हुए साहित्य की काव्य विधा में श्रृंगार रस पर अपने विचार व्यक्त करते हुए बताया कि श्रृंगार सयोग ओर वियोग दोनों का चित्रण करता है हमारे साहित्य में इन दोनों पर लेखकों ने अपने विचार व्यक्त किए हैं आपने अपनी काव्य रचनाओं के विस्तृत उदाहरण प्रस्तुत कर उपस्थित श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया।

संगोष्ठी के मुख्यवक्त शिक्षाविद् हनुमानसिंह राठौड़ ने कहा कि साहित्य में श्रृंगार के नाम पर साहित्यकार अधिकतर अश्लीलता को परोसते हैं जो कि भारतीय साहित्य की मूल विचारधारा के विपरीत हैं। मां दुर्गा के दुर्गास्त्रोतम के उदाहरणों से स्पष्ट किया कि मां आराधना करते हुए माता के शरीर के विभिन्न अंगों का सुन्दर चित्रण किया गया है जिसमें अश्लीलता कहीं भी नहीं झलकती है।

शब्दों के रचनाकार को पहले साधना करनी चाहिए तदोपरान्त शब्द रचना की ओर अग्रसर होना चाहिए। रचित साहित्य हमारे मन ओर मस्तिष्क पर पूरा प्रभाव डालता है, इसलिए हमें ऐसे साहित्य की रचना करनी चाहिए जो सद्गुण उत्पन्न करे न कि दुर्गण उत्पन्न करें तभी एक सुन्दर समाज की रचना हो सकती है।

उदघाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए भगवान अटलाणी ने सिंधी साहित्य के श्रृंगार रस पर अपनी विवचेना प्रस्तुत की एवं दो दिनों में होने वाली चर्चाओं में सार्थक परिणाम प्राप्त होने की संभावना व्यक्त की। सत्र का संचालन डॉ. सुरेश बबलाणी ने किया।

प्रथम सत्र में सिंधी कविता में श्रृंगार रस पर कोटा के किशन रतनानी का पत्र जयपुर के हरीश कर्मचन्दानी के द्वारा प्रस्तुत किया गया। उन्होंने कहा कि कोई भी शब्द रूप तभी प्राप्त करती है जब मन में कोई भाव उत्पन्न होता है। भावों की अभिव्यक्ति से ही रस उत्पन्न होता है। जिसका आनन्द हमें प्राप्त होता हैं।

आपने सिंधी कविता में विभिन्न रचनाकारों के द्वारा प्रस्तुत की गई रचनओं में प्रकृति, प्रेमी प्रेमिका, देश प्रेम इत्यादि के उदाहरण प्रस्तुत कर श्रृंगार रस का रस्सास्वादन उपस्थित श्रोताओें को कराया। उनके पत्र पर मुम्बई के राधाकिशन भागिया, द्वारा विचार व्यक्त किए गए जब कि अध्यक्षता विख्यात साहित्यकार ढोलण राही ने प्रस्तुत किए। सत्र संचालन भोपाल के मनोज बुधवणी ने किया।

इस सत्र में अजमेर उत्तर के विधायक वासुदेव देवनानी उपस्थित रहे। उन्होंने अपने राजनीति अनुभवों को साझा करने के साथ गोष्ठी उपस्थित होकर अपने ज्ञान में वृद्धि पर आयोजकों का धन्यवाद ज्ञापित किया तथा श्रृंगार रस और अश्लीलता के मध्य उपस्थित झीने अन्तर को भी रेखांकित किया।

द्वितीय सत्र सिंधी नाटक पर आधारित था, जिसमें आदीपुर के महेश खिलनाणी ने पत्र वाचन किया आपने सिंधी रंगमंच परम्परा में लेखन एवं मंचन में समय समय पर प्रस्तुत श्रृंगार रस को रेखांकित किया। उन्होंने विचार प्रस्तुुत करते हुए लिखा कि प्रेम केवल मनुष्य के शरीर तक सीमित नहीं है। इसमें प्रकृति, पशु पक्षियों से प्रेम भी सम्मिलित है। जयपुर के सुरेश सिंधू, बीकानेर के सुरेश हिन्दुस्तानी ने अपनी टीका प्रस्तुत की। अजमेर के डा. जितेन्द्र थधानी ने सत्र की अध्यक्षता करते हुए अपने विचार प्रस्तुत किए। सत्र संचालन ललित शिवनानी ने किया।

तृतीय सत्र सिंधी बाल साहित्य पर आधारित था, अहमदाबाद के डा. रोशन गोलाणी ने अपना पत्र वाचन किया आपका कहना था कि इन्सान में नौ तत्व देखने को मिलते हैं जैसे प्रेम, हास्य, करूणा, आश्चर्य, वीरता, दहशत, नफरत, हैरानी और शान्ति। इन्हीं पर नौ रस आधारित हैं।

उन्होंने पत्र में सिंधी बाल साहित्य में चित्रित श्रृंगार रस के विभिन्न उदाहरण को प्रस्तुत किया। आपके पत्र पर ग्वालियर के गुलाब लधाणी ने टिप्पणी प्रस्तुत की जबकि अध्यक्ष्ता डॉ. जेठो लालवाणी ने की। सत्र का संचालन अशोक मंगलानी ने किया।

देर शाम शास्त्रीय गायन के लिए प्रसिद्ध मोहन सागर ने सिंधी गजल, गीत ओर कलामों की महफिल सजाई जिसका उपस्थित श्रोताओं ने भरपुर आनन्द लिया।

दूसरे दिन का शुभारंभ ईश वन्दना के साथ हुआ। चतुर्थ सत्र सिंधी उपन्यास के नाम रहा जिसमें होशंगाबाद से आए अशोक जमनानी ने पत्र किया। टिप्पणीकार डा. प्रताप पिंजानी, भगवान अटलाणी थे। सत्राध्यक्ष डा. हासो दादलाणी रहे। सत्र का संचालन कान्ता मथुराणी ने किया। इस अवसर पर परिषद् के नवनियुक्त निदेशक डा. प्रताप पिंजानी का अभिनन्दन किया गया।

गोष्ठी का पंचम सत्र सिंधी कहानी के नाम रहा जिसमेें अहमदाबाद की रोशनी रोहड़ा का पत्र डा.जेठो लालवाणी ने प्रस्तुत किया जिस पर ब्यावर के अर्जन कृपलाणी एवं अजमेर की कमला बुटाणी ने टीका प्रस्तुत की। अध्यक्षता सलूम्बर के नन्दलाल परसरामाणी ने की,सत्र को कुन्ती परलाणी ने संचालित किया।

गोष्ठी का अन्तिम एवं सातवां सत्र लोक गीतों पर आधारित रहा, जिसमें मुम्बई की डा. संध्या कुंदनाणी का पत्र रोशन गोलानी ने प्रस्तुत किया। पत्र में सिंधी लोक गीत में छिते श्रृंगार रस का आस्वाद श्रोताओं को कराया। टीका करने वाले अजमेर के सुन्दर मटाई ओर जोधपुर के हरीश देवनाणी थे। सत्र की कार्यवाही लता शर्मा ने चलाई।

दो दिनों के विचार मंथन का सार संक्षेप भगवान अटलाणी ने प्रस्तुत किा। अध्यक्षता हरीश वर्यानी ने की तथा सत्र संचालन डा. सुरेश बबलाणी ने किया। संगोष्ठी में अजमेर की कई जानी मानी हस्तियों ने अपनी उपस्थित दी जिसमें अशोक रंगनानी, मुकेश सुखीजा, लछमण चैनानी, पुरूषोतम तेजवानी, नरेश नाजकानी, गोवर्धन सोनी, गोपाल लख्याणी, भवानदास शाहाणी, रमेश चेलान, घनश्याम भारानी, भरत गोकलाणी आदि उपस्थित थे।