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अजमेर में सिन्धुपति महाराजा दाहरसेन 1354वीं जयंती का भव्य समापन - Sabguru News
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अजमेर में सिन्धुपति महाराजा दाहरसेन 1354वीं जयंती का भव्य समापन

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अजमेर में सिन्धुपति महाराजा दाहरसेन 1354वीं जयंती का भव्य समापन

अजमेर। किसी भी राष्ट्र की प्रगति में उसकी मातृभाषा का संरक्षण जरूरी है विश्व के प्रमुख देशों में अंग्रेजी के स्थान पर अपनी अपनी मातृभाषाओं में पढाई कराई जाती है। यह बात महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय के कुलपति रहे प्रो. मोहनलाल छीपा ने शुक्रवार को हरिभाउ उपाध्याय नगर स्थित सिन्धुपति महाराजा दाहरसेन स्मारक पर आयोजित सिन्धुपति महाराजा दाहरसेन 1354वीं जयंती के अवसर पर आयोजित पुरस्कार वितरण समारोह के मुख्य अतितिथ के रूप में बोलते हुए कही।

उन्होंने कहा कि हमारे देश में पाश्चात्य संस्कृति का प्रचार प्रसार हो रहा था जिसे वर्तमान सरकार ने रोकते हुए भारतीय संस्कृति का प्रमुखता प्रदान की है। अपनी भाषाओं को आगे बढाने के लिए जरूरी है कि हम उन्हें उचित स्थान व सम्मान दें। उन्होंने कहा कि राजस्थान धरोहर एवं प्रौन्नति प्राधिकरण के अध्यक्ष रहे ओंकार सिंह लखावत ने प्रदेश में 74 स्मारक बनवाकर हमारी संस्कृति को आने वाली पीढी के लिए संजोया है। ऐसी धरोहर का हमें देश भर में विस्तार करना होगा। संस्कृति की रक्षा की प्रेरणा दाहरसेन के जीवन से मिलती है।

समारोह के अध्यक्षता करते हुए पूर्व राज्यसभा सांसद ओंकार सिंह लखावत ने कहा कि पिछले 27 वर्षों से राष्ट्रभक्ति के साथ महापुरूषों को याद किया जा रहा है। हमें अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए अपनी जडों को मजबूत करना होगा। पृथ्वीराज स्मारक के बाद दाहरसेन स्मारक बनाने का निर्णय आज देश भर में चर्चा का विषय है। उन्होंने कहा कि यदि महाराजा दाहरसेन नहीं होते तो 712 ई. से पूर्व ही हम गुलाम हो जाते। देश की चुनौतियों में आज भी कमी नहीं है लेकिन राष्ट्रभक्ति की प्रेरणा लेकर देश की अक्षुणता बनाए रखने का संकल्प लेना होगा।

समारोह में जयपुर स आए भारतीय सिन्धु सभा के अध्यक्ष मोहनलाल वाधवाणी ने कहा कि संगठन की ओर से राज्यभर में देशभक्ति गायन के साथ विचार गोष्ठियों का आयोजन किया जा रहा है जिससे विद्यार्थियों व युवाओं को प्रेरणा मिल रही है।

इससे पूर्व समारोह के संयोजक कवंलप्रकाश किशनानी ने कहा कि महाराजा दाहरसेन, उसकी पत्नी लाडी बाई, दो पुत्रियों का बलिदान प्रेरणादायी है। स्मारक पर 1857 की क्रांति से 1947 तक स्वतंत्रता संग्राम में बहुत से महापुरूष शहीद हुए जिनमें रूपलो कोल्ही, हेमू कालाणी, राणा रतन सिंह की मूर्तियां स्मारक पर स्थापित हैं। यहां लगातर कार्यक्रमों से युवा पीढी के साथ विद्यार्थियों को जोडकर आयोजन कर रहे हैं और जयंती पर भी सात दिवसीय आयोजन किए गए हैं।

सभा के राष्ट्रीय मंत्री महेन्द्र कुमार तीर्थाणी ने कहा कि महाराजा दाहरसेन के स्मारक बनने के बाद निरंतर अजमेर के साथ देश भर में अलग अलग स्थानों पर ईकाईयों की ओर से देशभक्ति के कार्यक्रम हो रहे हैं और महाराजा दाहरसेन व अन्य सिन्ध के विषयों पर शोध कराने का कार्य जारी है।

सांस्कृतिक कार्यक्रम का शुभारंभ मयंक कोटवाणी के तबला वादन हुआ। कल्पिता कलसी ने सूरज पर करे हम सवारी गीत के साथ वहां उपस्थित अपार जन समूह में जोश भरा। अजमेर संगीत कला केन्द्र के कलाकारों मेरे देश की अजीब कहानी… गीत की प्रस्तुति दी। स्वामी सर्वानन्द विद्यालय, संत कवंरराम विद्यालय के छात्र छात्राओं ने झांसी की रानी पर आधारित नृत्य नाटिका ने समारोह में नई उचाईयां प्रदान की।

ओम योगा स्टूडिया द्वारा योग मुद्राओं ने सभी स्वास्थ्य के प्रति जागृत किया। कार्यक्रम में आदर्श विद्या निकेतन, हरी सुन्दर बालिका विद्यालय, एचकेएच स्कूल की ओर महाराजा दाहरसेन का नाटक मंचन किया गया। राउमा सिन्धी विद्यालय देहली गेट की पेरोडी, मुकेश आर्य, घनश्याम भगत, मोहन कोटवाणी ने देश भक्ति गीतों के अलावा कलाकार राजेश टेकचंदाणी दाहरसेन की वेशभूषा में प्रस्तुति दी। समारोह में रंगभरो प्रतियोगिता, साईकिल रैली, प्रश्नोतरी के विजेताओं को स्मृति चिन्ह व प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया।

इससे पहले कार्यक्रम का शुभारंभ हिंगलाज माता पूजन, जगद्गुरू श्रीचन्द्र भगवान पूजन, महाराजा दाहरसेन व महापुरूषों की मूर्तियों पर श्रृद्धासुमन अर्पण के साथ राष्ट्र रक्षा सूत्र बाधंकर किया गया। मंच का संचालन पुरूषोतम तेजवाणी ने किया। स्वागत भाषण विनीत लोहिया ने किया व आभार मोहन तुलस्यिाणी ने जताया।

इस अवसर पर विधायक वासुदेव देवनाणी, ललित नागराणी, गिरधर तेजवाणी, हरीश झामनाणी, नरेन्द्र बसराणी, नारायण सिंह, लेखराज राजोरिया, शिवप्रसाद गौतम, दुर्गाप्रसाद, शैलेन्द्र सिंह परमार, रामस्वरूप चौधरी, प्रकाश जेठरा, मुकेश आहूजा, रमेश मेंघाणी, कमलेश शर्मा, शुभम नाथ, राजेन्द्र कूढी, योगेश कुमार खत्री, तुलसी सोनी, अमित बजाज, घीसूलाल माथुर मामा, रमेश एच.लालवाणी, अनिल आसनानी, रूकमणी वतवाणी, अंजलि हरवाणी, केशवनाथ, राजा सोनी, महेश मूलचंदाणी सहित अलग अलग संगठनों के कार्यकर्ता उपस्थित थे।