![संभवत: पूरे भारत में अब तक नहीं बना होगा सिरोही जैसा रावण संभवत: पूरे भारत में अब तक नहीं बना होगा सिरोही जैसा रावण](https://www.sabguru.com/18-22/wp-content/uploads/2019/10/12345.jpg)
![राजस्थान के सिरोही जिला मुख्यालय पर नगर परिषद द्वारा आयोजित रावण दहन कार्यक्रम में जाने-अनजाने दशानन की जगह बना द्वादशानन।](https://www.sabguru.com/18-22/wp-content/uploads/2019/10/·ê´ð¤ÚÔUæâ´â´.jpg)
-परीक्षित मिश्रा
सबगुरु न्यूज-सिरोही। इस बार सिरोही का रावण कुछ विशेष था, विशेष इसलिये कि इस बार जो प्रयोग या गलती रावण के साथ सिरोही मे हुई शायद कही हुई हो। इस बार यहा रावण के दस की जगह बारह सिर थे। यहां दशानन नहीं द्वादशानन को जलाया गया। धर्मशास्त्र में रावण के दस सिर दस बुराइयों का प्रतीक बताया गया हैं। तो सिरोही में रावण के बारह सिर होना एक परम्परा को तोडऩे जैसा है।
लेकिन, इन अतिरिक्त सिरों से सवाल ये उठ गया है कि ये दो सिर किस बुराई के थे, जिसने सिरोही में सिर उठा लिया था। क्या, इससे पहले भी यह दो बुराइयां थी? तो क्या इन दो बुराइयों को इस बार अंत हो चुका है? यूं देखा जाए तो सिरोही की सबसे बड़ी दो बुराइयां हैं सत्ता मद में चूर नेता और पार्टी कार्यकर्ता तथा ताकत के अहंकार में जनहित को दरकिनार कर देने वाले अधिकारी। तो क्या इस बार दो अतिरिक्त सिरों के रूप में ये दो बुराइयां भी जल गई। ये समय बताएगा।
आखिर ये बुराई नहीं तो क्या है कि अधिकारी अपने घर के बाहर नगर पालिका के मद से दस लाख का फुटपाथ तो बनवा लेते हैं, लेकिन उन्हें पैलेस रोड पर टूटे हुए फुटपाथ नजर नहीं आते। उन्हें अपने घरों के बागीचों को रोशन करने के लिए जनता के पैसों से जलने वाली बिजली के बल्बों के रोशन होने का तो ध्यान होता है, लेकिन नगर परिषद क्षेत्र की अंधेरे में डूबी सडक़े नहीं दिखती।
![राजस्थान के सिरोही जिला मुख्यालय पर नगर परिषद द्वारा आयोजित रावण दहन कार्यक्रम में जाने-अनजाने दशानन की जगह बना द्वादशानन।](https://www.sabguru.com/18-22/wp-content/uploads/2019/10/12345.jpg)
उन्हें अपने घरों के सूखते गुलाब के पौधे तो नजर आते हैं, लेकिन बाल उद्यान की सूखी हुई घास पर दया नहीं आती। उन्हें अपने घर पर अपनी तनख्वाहों से ज्यादा तनख्वाह के कार्मिकों को घरेलू नौकर के रूप में इस्तेमाल करना तो ध्यान रहता है, लेकिन कार्यालयों में इन कार्मिकों के अभाव में धक्के खाती जनता का दर्द नहीं सालता।
बात अहंकार में डूबे नेताओं की करें तो उन्हें भी अपने राजनीतिक हितों के लिए पीडब्ल्यूडी कार्यालय की जनता की करोड़ों की जमीन औने-पौने दामों में अपने हित में इस्तेमाल करना तो ध्यान आता है, लेकिन अतिक्रमण करके करोड़ों की जनता की जमीन लूटने के गोरखधंधे पर नजर नहीं जाती।
उन्हें निडोरा तालाब में बनें गरीबों के अतिक्रमण तो दिखते हैं, लेकिन हाउसिंग बोर्ड के सामने अपने ही करीबी नेता के रिश्तेदार का स्वच्छ भारत के नाम पर हाइवे पर किया अतिक्रमण नजरअंदाज हो जाते हैं। उन्हें शहर में सामान्य नागरिक के बिल्डिंग लाइन से बाहर बनी सीढिय़ां तो सडक़ पर दाग लगती है, लेकिन अपनी पार्टी पदाधिकारियों के सडक़ पर अतिक्रमण शहर की सुंदरता का प्रतीक लगती हैं।
उन्हें लोक सेवा गारंटी और सुनवाई की गारंटी के अधिकार जनता तक पहुंचाने में दिक्कत आती है, लेकिन इन कानूनों के तहत दी गई सुविधाओं की अर्जियां लेकर उनकी ड्योडी पर इन नेताओं की नजरे इनायत पाने के लिए खड़े जन सामान्य की दिक्कतें सम्मान के साफे लगते हैं।
इन्हें खून के अभाव में गर्भ में ही दम तोड़ देने वाले बच्चे की मौत पर हंगामा आसान लगता है, लेकिन अपने राजनीतिक कार्यकर्ताओं को सत्ता का लाभ लेकर सरकारी विभागों में ठेकेदारी करने की बजाय सेवा करके इन बच्चों को मरने से बचाने का प्रयास करना मुश्किल लगता है।
इन्हें शिक्षा के मंदिरों से विपरीत राजनीतिक विचारधारा वाले कार्मिकों को हटाना आसान लगता है, लेकिन सत्ता के दौरान इन कार्मिकों को अपने कर्तव्यों की जनहित में पालना के लिए राजी करना मुश्किल लगता है। देश, राज्य और जिले के नेताओं को यहां के पर्यटन स्थल माउण्ट आबू में रात्रि विश्राम का आनंद लेना प्राथमिकता लगता है, लेकिन देश के सौ पिछड़े जिलों में शुमार इस जिले के अंतिम गांव में दिन का एक घंटा गुजारना हेय लगता है।
अगर राजनीतिक और प्रशासनिक बुराइयों के रावण के ऐसे सिर अगले दशहरे तक नहीं नजर आते तो निस्संदेह ये दशहरा सिरोहीवासियों के लिए खुशी देने वाला है। अगर अगले साल रावण के दस सिर दिखने के बाद भी यदि यह दो बुराइयां कायम रहती है तो समझिये कि किन्ही दो दूसरी बुराइयों का अंत हो चुका है, लेकिन उक्त दो बुराइयां रावण के स्थाई दस सिरों का हिस्सा बन चुकी है जो जलेगी तो हर साल, लेकिन इनका अंत कभी नहीं होगा।