सबगुरु न्यूज-सिरोही। जयश्री राठौड़ की कार्य प्रणाली का ठीकरा संयम लोढ़ा के 2013 के चुनाव में फूटा। ताराराम माली की कार्यप्रणाली का असर ओटाराम देवासी पर पड़ा और 2018 में उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। अपनी अच्छी कार्यप्रणाली के कारण सुमेरपुर के पालिकाध्यक्ष को लोगों ने विधायक बनवा दिया।
मतलब साफ है कि नगर निकायों के प्रमुखों की अच्छी और बुरी कार्यप्रणाली प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से विधानसभा चुनावो को प्रभावित करती है। इसकी प्रमुख वजह है नगर निकाय की तरफ से गवर्नेंस नहीं दे पाना।
गत दो चुनावो के आंकड़े गवाह हैं कि सिरोही शहर ने जिसे जिताया उसके सिर जीत का ताज सजा। किसी भी प्रत्याशी को सबसे ज्यादा जीत हार के लिए एकमुश्त वोटों का सबसे अंतर देने वाला यही शहर है। इसमें नगर परिषद का कुशासन महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
– अहम ब्रह्मास्मि
संयम लोढ़ा ने सभापति के कार्यभार ग्रहण समारोह में जो भाषण दिया था उसमें उन्होंने ये भी कहा था कि 2020 में हम लोग प्रशासन शहरों के संग शिविर लगाया हैं। इसमें स्टेट ग्रांट समेत हर तरह के पट्टे बनेंगे। उन्होंने कहा कि वो सुनिश्चित करेंगे कि शिविर प्रभारियों के माध्यम से ज्यादा से ज्यादा लोगों को राहत मिले।
इस भाषण के बाद यहां विधायक ने ऐसे व्यक्ति को आयुक्त का कार्यभार सम्भलवा दिया जो पुराने अधिकारियो द्वारा अंतिम स्थिति पर पहुंच चुके पट्टों पर भी हस्ताक्षर नहीं कर रहे हैं। न ही इसके लिए किसी भी अनुभवी उच्चधिकारी से मार्ग दर्शन ले रहे हैं। यदि मार्गदर्शन लेते तो कृषि भूमि के कनवर्जन के बाद भूखंडों के पट्टे जारी करने के लिए लोगों को इसलिए नहीं लटकाते कि आपकी भूमि नगर परिषद के नाम पर जमाबंदी नहीं हुई है, इसे तहसील से नमंतरित करवाकर लाइये। ऐसा करके आयुक्त ने स्वयं खुदके नगर निकाय के कानूनों का जानकार होने के दावे की कलई खोल दी है।
-एक साल पहले आ चुके आदेश से नावाकिफ
इस मुद्दे पर सबगुरु न्यूज ने अनुभवी आयुक्तों से बात की। उन्होंने बताया कि प्रशासन शहरों के संग अभियान में इसमें एक साल पहले ही राहत दे दी गई थी। और अपने ही कानूनी अधिकार नहीं जानने वाले नगर परिषद के पार्षदों के सामने आयुक्त की दलील ये रहती है कि वो नियम कायदों बेहतर जानकार हैं। प्रशासन शहरों के संग शिविर की ऑनलाइन पड़ी अब तक जारी 5 गुइडलाइन्स को डाऊनलोड करने पर एक में ये निर्देश मिल गया।प्रशासन शहरों के संग अभियान के 28 सितंबर 2022 को जारी आदेश के बिंदु संख्या 5.7(i) में स्पष्ट लिखा है कि भूमि का नामान्तरण करने का पत्र 7 दिवस के अंदर तहसीलदार को भेजने का प्रावधान है। यदि भूमि नामान्तरित नहीं होती है तब भी पट्टा प्रक्रिया रोकी नहीं जाएगी।
इसी में लिखा है कि 90 बी के तहत जो भूमि नगर निकाय के अधीन हो चुकी हैं उनका नामान्तरण नगर निकाय के पक्ष में नहीं हुआ है तब भी भूमि नामान्तरित मानी जायेगी। ऐसे में नामान्तरित नहीं होने को लेकर भूमि का नियमन रोका नहीं जाएगा। लेकिन, नगर परिषद आयुक्त 8 महीने पहले तहसीलदार को नामान्तरण करने के लिए भेजे गए पत्र के बाद भी नामान्तरण नहीं होने के बावजूद लोगों का पट्टा अटका कर बैठे हैं।
कांग्रेस बोर्ड के कार्यभार ग्रहण करने के समय विधायक संयम लोढ़ा द्वारा दिया गया भाषण का लिंक…