sabguru news-सिरोही। जिला चिकित्सालय में भर्ती चिकित्सकों द्वारा चिकित्सालय में भर्ती मरीजों को निजी चिकित्सालयों में इलाज, प्रसूति विभाग में चिकित्सकों की राजनीति में मरीजों का पिसना, पीएमओ को बिल्डिंग निर्माण को ही व्यवस्था समझना जैसी अनगिनत अव्यवस्थाओं की जानकारी सार्वजनिक है।
चुनने के छह महीने बाद आखिर सिरोही विधायक संयम लोढा को इन अव्यवस्थाओं की सुध लेने का समय मिल गया, जिसके प्रति लोगों में विधायक के प्रति भी अविष्वास पनपता जा रहा था। वैसे निरीक्षण के दौरान लोढा पीएमओ को यह कहते हुए नजर आए कि आपको मैने छह महीने का समय व्यवस्थाएं सुधारने का दिया था।
लेकिन, इन छह महीनों में जिला चिकित्सालय में अनेक गरीबों ने अव्यवस्थाओं के कारण अमानवीय पीडाएं झेली हैं। अव्यवस्थाओं का आलम यह था कि विधायक को पीएमओ को कहना पडा कि हम आपका सम्मान करते है लेकिन यह नही चल सकता कि सरकारी अस्पताल में भर्ती मरीज को निजी अस्पताल में जाने के लिए बाध्य करे और सरकारी चिकित्सक वहां जाकर उसका ईलाज करे। निरीक्षण के दौरान लोढा के साथ नगर कांग्रेस अध्यक्ष जितेन्द्र ऐरन, सुषील प्रजापत, सुरेन्द्रसिंह सांखला, पार्शद मारूफ हुसैन, जितेन्द्र सिंघी, कांतिलाल खत्री, जावेद खान, बाबू खान, प्रवीणसिंह साथ थे।
-निरीक्षण में मिले निजी चिकित्सालय में आॅपरेशन वाले मरीज
पूर्व विधायक ओटाराम देवासी के समय से ही यह शिकायतें आ रही हैं कि जिला चिकित्सालय में भर्ती गरीब मरीजों को यहां के चिकित्सक निजी चिकित्सालयों में ले जाकर उपचार करवाते हैं। संयम लोढा के निरीक्षण के दौरान यह नजर आया। 1 मरीज उन्हें मिले। इस अनुपात में देखा जाए तो संयम लोढा के छह महीने में के कार्यकाल में ही कम से कम सौ से ज्यादा मरीजों को इस उत्पीडन से गुजरना पडा होगा।
लोढा ट्रोमा सेन्टर में भर्ती लोटीवाडा निवासी उत्तम मिला। पूछताछ में उसने बताया कि उसने दोनों पांवों का आॅपरेषन निजी चिकित्सालय में करवाया है। लोढा ने प्रमुख चिकित्सा अधिकारी से कहा कि अस्पताल की चिकित्सा को पटरी पर लाने के लिए आपको करीब 6 माह का वक्त दिया लेकिन देख रहा हूॅ कि चिकित्सा व्यवस्था का बाजारीकरण हो रहा है।
उन्होने निजी अस्पताल के मालिक को भी चेतावनी दी कि किसी सरकारी डाॅक्टर से अपने अस्पताल में इलाज न करवाये। वरना उन्हे कठोर कदम उठाने पडेंगे। लोढा ने जिला कलेक्टर को सम्पूर्ण प्रकरण की जानकारी दी और आग्रह किया कि किसी भी प्रषासनिक अधिकारी से अस्पताल की नियमित माॅनिटरिंग के लिए लगाये।
लोढा सुबह 8ः15 बजे जब अस्पताल के मुख्य भवन पहुंचे तो मात्र 10 चिकित्सक, 17 नर्सिग स्टाफ, 6 संविदाकर्मी एवं 5 सहायक कर्मचारी उपस्थित मिले। पुरुष व महिला दोनो वार्डो में ष्षौचालय गंदे मिले। वार्ड के पंखे भी बंद पाये गये। सुलभ काॅम्पलेक्स बदहाल स्थिति में मिला। जिस पर नगर परिशद आयुक्त को सुधारने के निर्देष दिये।
बायोवेस्ट के कमरो का आलम यह था कि खडे रहना भी संभव नही था। वार्ड क्षेत्र में बनी प्याऊ भी बंद पडी मिली। जिसमें भामाषाह को चालु करने के लिए एक बार भी सूचना देने का आग्रह किया। लोढा ने ग्रोवर से चिकित्सालय में पदो की भी जानकारी ली इनमें से कुछ पदो पर संविदा से कार्मिक लगाने को कहा। षेश पदो के लिए चिकित्सा मंत्री से बात कर भरवाने का भरोसा दिया। अस्पताल के बाहर बनाये गये कैटिंन को भी चालु करने के लिए कहा।
-चिकित्सक खुद ही ले जाते हैं चाबी
निरीक्षण से वापस लौटते वक्त आउटडोर में करीब 9 बजे डाॅक्टर दिनेष राठौड के कक्ष पर ताला लगा मिला। इसका कारण पूछा तो बताया कि कक्ष की चाबी भी साथ लेकर जाते है और खुद का निजी ताला लगाते हैं। इस पर उन्होंने प्रमुख चिकित्सा अधिकारी को पाबंद किया कि ताला खोलने का काम सहायक कर्मचारी का है और डाॅक्टर का काम ईलाज करने का है। व्यवस्था ठीक करें।
-गायनिक वार्ड फिर छूटा
जिला चिकित्सालय में सबसे ज्यादा प्रताडित अगर कोई है तो वह है प्रसूति के लिए आने वाली महिलाएं। चिकित्सकों की धडेबाजी में वो फुटबाल बनी हुई हैं। आरोप यह लगते रहे हैं कि यदि एक यूनिट की महिला की डिलीवरी हो रही है और दूसरी यूनिट के बैड खाली हैं तो दूसरी यूनिट का वाले उस महिला को इसलिए उस बैड पर नहीं लेटाया जाता है कि वह उस चिकित्सक से इलाज नहंी करवा रही है जिसके यूनिट का वो बेड है।
इन यूनिटों ने सरकारी बैडों को भी अपनी निजी संपत्ति की तरह इस्तेमाल करने का अरोप लगता रहा है। पूर्व विधायक इस अव्यवस्था को नहीं सुधार पाए और छह महीने में सैंकडों प्रसूताओं के यही दर्द झेलने की षिकायतें मिली हैं। समयाभाव के कारण विधायक लोढा जिला चिकित्सालय में चिकित्सकीय धडेबाजी से पीडित महिलाओं के इस वार्ड को नहीं देख पाए।
-नेताओं और कलक्टरों ने अनाथ छोडा चिकित्सालय
जिला चिकित्सालय की बदहाली का सबसे बडा कारण यहां के विधायकों के साथ-साथ जिला कलक्टर भी रहे हैं। बन्नालाल और उनके बाद अभिमन्यु कुमार ने इसकी एकाध बार निरीक्षण करके सुध ली। लेकिन, उनके एक दो निरीक्षण से कुछ नहीं हो सका।
इससे पहले पूर्व एसडीएम प्रहलाद सहाय नागा और तहसीलदार को तत्कालीन कलेक्टर ने बाकायदा जिला चिकित्सालय के साप्ताहिक निरीक्षण पर लगाया हुआ था। बाद में जिला कलक्टरों ने जिला चिकित्सालयों की सुध लेना ही बंद कर दिया जबकि वे स्वयं जिला स्वास्थ्य समिति के अध्यक्ष हैं। इससे पहले विधायक ओटाराम देवासी ने भी चिकित्सालय का निरीक्षण तो कई बार किया, लेकिन व्यवस्थाएं सुधारने में नाकाम रहे।