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सडक से महरूम आदिवासियों के लिए खाट बनी पहाड़ी एंबुलेंस! - Sabguru News
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सडक से महरूम आदिवासियों के लिए खाट बनी पहाड़ी एंबुलेंस!

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सडक से महरूम आदिवासियों के लिए खाट बनी पहाड़ी एंबुलेंस!
दुर्घटना के शिकार व्यक्ति को खाट के सहारे थाम कर ले जाते परिजन।
दुर्घटना के शिकार व्यक्ति को खाट के सहारे थाम कर ले जाते परिजन।

आबूरोड/सिरोही। सिरोही जिले की आबूरोड तहसील के उपलाखेजडा ग्राम पंचायत के निचलाखेजड़ा से मथारा फली तक 5 किलोमीटर की दूरी में सड़क की सुविधा नहीं होने से वनवासी पैदल सफर कर घर को पहुंचते हैं। आजादी के बाद इस फली में रहने वाले लोग इस मूलभूत जरूरत को पूरा करने के लिए ग्राम पंचायत से लेकर क्षेत्रीय विधायक तक अपनी आवाज बुलंद कर चुके हैं। लेकिन उनकी हर मांग अनसुनी रही है।

चुनावी वादों तक आश्वासन

जब चुनाव आते हैं तब प्रत्याशी वादे कर जाते हैं और बाद में उनकी मांगों पर कोई ध्यान नहीं देने से 200 घरों की आबादी के ये लोग खासे नाराज हैं।

आम है इस क्षेत्र में ऐसा सफर

क्षेत्र के लिए ऐसा सफर कोई नया नहीं है यह तो रोज का दर्द है। आधुनिकता की चकाचौंध में दुनिया के सफर की तुलना क्षेत्र से करें तो चौकाना जरूरी लेकिन विवशता हकीकत है।

खाट के सफर में कई सांसे उखड चुकी

मथारा फली के आदिवासी बताते हैं कि सालाना 15 से 20 मौतें इलाज या प्रसव के लिए इसी माध्यम से ले जाते समय बीच सफर में दम तोड़ने से हो जाती है। कई बार तो देर हो जाने पर वही खाट रुपी एंबुलेंस मोक्ष रथ बन मुक्तिधाम तक थके कदमों से पहुंचने को विवश हो जाते हैं।

दुर्घटना के शिकार को घर ले जाने तक की आपबीती

शनिवार को मथारा फली के युवा वरदाराम पुत्र नवाजी को आबूरोढ के निकट ट्रक ने चपेट में ले लिया था जिससे उसका एक पैर फैक्चर हो गया। परिजन उसे उपचार के बाद निचला खेजडा ले गए। वहां से खाट में लेटाकर पगडंडियों से 5 किलोमीटर दूर मथारा की और ले जाने में 15 से 20 लोगों की जरूरत पड़ी। चढ़ाई के दौरान अधिकतम 200 मीटर पर विश्राम करते हुए अलग.अलग लोग कंधा बदलते गए और कई विश्राम पश्चात शाम को देर थके हारे उसके घर पहुंचे।