
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आबूरोड(सिरोही)। राजस्थान के सिरोही जिले में आदिवासी बहुल क्षेत्र के कई गांव सड़कों से महरूम हैं, यहां जीवन उबड़-खाबड पगडंडियों में ठोकरे खाता और कांटों की चुभन से कराहता रोज लोहा लेता है।
आबूरोड़ से दूर उपलाखेजड़ा ग्राम पंचायत के निचलाखेजड़ा गांव की दुर्गम मथाराफली की दास्तां भी कुछ ऐसी ही है। आजादी के 70 साल गुजरने के बाद भी इस गांव के वाशिंदों को आने जाने के लिए पक्की सड़क का इंतजार है।
झोली का सहारा
यहां के आदिवासी केशाराम गरासिया के अनुसार मुश्किल तब पहाड सी बन जाती है जब कोई बीमार हो जाए, सांप डस ले, गर्भवतियों को प्रसव पीड़ा होने पर आपातकालीन उपचार की जरूरत की नौबत आन पडे। ऐसे हालात में सड़क ने होने से रोगी को कपड़े की झोली में लेटाकर पैदल ही सफर तय करना मजबूरी बनी हुई है। कई बार बीच पगडंडी में ही दम टूट जाने पर निराश लौटना पड़ा है।
सरकार ने नहीं देखी आबोहवा
मथाराफली के आदिवासी बताते हैं कि हमारी बस्ती में सरकार की कोई योजना नहीं पहुंची है, विकास के दावे और शहरों में दिखाई देने वाले पोस्टरों की बजाय तो यहां दिवास्वप्न ही कहा जा सकता है।