जौनपुर । स्मार्टफोन एवं इंटरनेट ने जहां एक ओर लोगों कई तरह की सुविधा उनके अंगुली के इशारे पर दी है वहीं इनके ज्यादा इस्तेमाल से होने वाले खतरों ने भी असर दिखाना शुरू कर दिया है। मानसिक रोग विशेषज्ञों का मानना है कि लोगों की जिंदगी को आसान बनाने वाले स्मार्टफोन और इंटरनेट की लत सोचने की क्षमता को नुकसान पहुंचा रही है।
महादेव न्यूरो साइकेट्री सेंटर के जाने माने मानसिक रोग विशेषज्ञ डा एम एन त्रिपाठी ने बुधवार को “ मानसिक स्वास्थ्य दिवस” पर बदलते परिवेश में व्यस्कों और युवाओं का मानसिक स्वास्थ्य विषय पर यहां यूनीवार्ता से बातचीत में कहा कि स्मार्टफोन और इंटरनेट की लत लोगों की सोचने की क्षमता को नुकसान पहुंचा रहा है। इससे सामाजिक रिश्ते खत्म होते जा रहे हैं। इनका जरूरत से ज्यादा प्रयोग खतरनाक साबित हो रहा है।
उन्होंने कहा कि तनाव ग्रस्त जीवन शैली से लोगों का मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ रहा है। इसके लिए जागरूकता उत्पन्न करना होगा। इससे बचने के उपायों पर विचार करने के उद्देश्य से हर साल दस अक्टूबर को पूरे विश्व में मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है। उन्होंने कहा कि 14 वर्ष की उम्र से मानसिक रोगियों की शुरूआत हो जा रही है लेकिन अधिकांश मामले जानकारी के अभाव में दबे रह जाते हैं।
डा त्रिपाठी ने बताया कि बदलते परिवेश में सोशल मीडिया के फायदे तो बहुत हैं लेकिन जरूरत से ज्यादा इसका प्रयोग खतरनाक भी साबित हो रहा है। मानसिक बीमारियों को बढ़ा रहा है। इससे सामाजिक रिश्ते खत्म हो रहे हैं। 14 से 35 वर्ष आयु वर्ग में आने वाले लोग आसानी से इस लत का शिकार हो जा रहे हैं। बच्चों में मोबाइल की लत के लिए उनके अभिभावकों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। ज्यादातर माँ-बाप फोन या टैबलेट को बच्चों के लिए खिलौनों का विकल्प समझते हैं। अगर बच्चा स्मार्टफोन का इस्तेमाल अपना होमवर्क करने में करता है तब उसका ध्यान फोन में मौजूद कार रेसिंग या ऐसे ही दूसरे खेलों पर पड़ जाता है।
उन्होंने कहा कि आज-कल बच्चों को खाना खिलाते समय भी मोबाइल पर व्यस्त रखना पड़ता है। लम्बे समय तक यह आदतें मस्तिष्क में रासायनिक असंतुलन पैदा करते हैं जिससे मनोरोग में इजाफा होता है। उन्होंने बताया कि आजकल खासकर युवा वर्ग के लोग अपने मोबाइल और लैपटाप पर व्यस्त देखे जा रहे हैं। ऐसे लोगों को परिवार और दोस्तों के साथ समय गुजारना अच्छा नहीं लगता। रिश्ते बोझिल हो जाते हैं। वह सामाजिक कार्यो में हिस्सा भी नहीं लेते। समाज से दूर होने पर लोगों से संबंध टूट जाते हैं और अपने से खुद को अकेला कर लेते हैं।
डॉ़ त्रिपाठी ने कहा कि सोशल साइट पर उनके तो बहुत मित्र होते हैं लेकिन रियल लाइफ में वह अकेले होते हैं। फेसबुक एवं वाट्सएप पर बार-बार स्टेटस चेक करना तथा उसे अपडेट करना यह मानसिक रोग के लक्षण हैं। इंटरनेट नेटवर्क न मिलने से चिड़चिड़ापन होना भी मानसिक बीमारी है। युवा खुद से बीमारी पालकर अपने विकास के रास्ते को रोक दे रहे हैं। बच्चे अब आऊट डोर गेम की बजाय कम्प्यूटर गेम तथा सोशल साइट पर ज्यादा रहने लगे हैं। देर रात तक सोशल साइट का उपयोग करने से पारिवारिक रिश्तों में दरारे पड़ रही है।