नयी दिल्ली । भारत में विश्व बैंक के निदेशक जुनैद अहमद ने लघु ऋण कंपनियों (एमएफसी) के लिए नियमों में सुधार की वकालत करते हुये आज कहा कि नियामक बाधाएँ दूर करने से छोटे तथा मंझोले उद्योग देश के निर्यात विनिर्माण की रीढ़ की हड्डी बन सकते हैं।
अहमद ने सिड्बी द्वारा यहाँ लघु ऋण पर आयोजित राष्ट्रीय कांग्रेस के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुये कहा “भारत में छोटे तथा मध्यम उद्योगों का आकार काफी छोटा है। यहाँ एसएमई का कारोबार सीमित रह जाता है जबकि दक्षिण कोरिया में चार-पाँच साल में एक एसएमई मूल कारोबार की तुलना में औसतन आठ गुणा बड़ा हो जाता है। यदि इन्हें बढ़ने का अवसर दिया जाये तो ये देश के निर्यात विनिर्माण की रीढ़ बन सकते हैं।”
उन्होंने कहा कि एसएमई के विकास में सिड्बी (भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक) की भूमिका महत्त्वपूर्ण है। जाने-माने बंगलादेशी अर्थशास्त्री श्री अहमद ने कहा कि देश की सात प्रतिशत विकास दर में एसएमई का बड़ा योगदान है और इसे आठ प्रतिशत पर ले जाने में उनकी भूमिका और बड़ी होगी।
उन्होंने सिड्बी से लघु ऋण के क्षेत्र में प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल तथा बाजार तक पहुँच को बढ़ावा देने की अपील की। साथ ही कहा कि नियमों में सुधार की जरूरत है क्योंकि अब भी देश में नीतियों और नियमन के स्तर पर एसएमई के लिए कुछ बाधाएँ मौजूद हैं।