Warning: Constant WP_MEMORY_LIMIT already defined in /www/wwwroot/sabguru/sabguru.com/18-22/wp-config.php on line 46
संतान कामना का सोम प्रदोष व्रत, भोले शंकर को यूं करें प्रसन्न - Sabguru News
होम Latest news संतान कामना का सोम प्रदोष व्रत, भोले शंकर को यूं करें प्रसन्न

संतान कामना का सोम प्रदोष व्रत, भोले शंकर को यूं करें प्रसन्न

0
संतान कामना का सोम प्रदोष व्रत, भोले शंकर को यूं करें प्रसन्न

आज यानी 29 जुलाई को श्रद्धालु विशेषकर स्त्रियां सोम प्रदोष व्रत रखेंगी। प्रदोष का तात्पर्य है रात का शुभारम्भ। इसी बेला में पूजन होने के कारण प्रदोष नाम से विख्यात हैं। प्रत्येक पक्ष की त्रयोदशी को होने वाला यह व्रत संतान कामना प्रधान हैं। इस व्रत के मुख्य देवता आशुतोष भगवान शंकर माने जाते हैं।

व्रत रखने वालों को शाम को शिवजी की पूजा करके अल्प आहार लेना चाहिए। कृष्ण पक्ष का शनि प्रदोष विशेष पुण्यदायी होता है। शंकर भगवान का दिन सोमवार होने के कारण इस दिन पढऩे वाला प्रदोष सोमप्रदोष कहा जाता हैं। सावन मास का प्रत्येक सोम प्रदोष विशेष महत्वपूर्ण माना जाता है।

सोम प्रदोष व्रत कथा

प्राचीनकाल में एक गरीब ब्राह्मणी अपने पति के मर जाने पर विधवा होकर इधर उधर भीख मांग कर अपना निर्वाह करने लगी। उसके एक पुत्र भी था, जिसको वह सवेरे अपने साथ लेकर घर से निकल जाती और सूर्य डूबने पर वापिस घर आती। एक दिन उसकी भेंट विदर्भ के राजकुमार से हुई जो अपने पिता की मृत्यु के कारण मारा मारा फिर रहा था।

ब्राह्मणी को उसकी दशा देखकर उस पर दया आ गई। वह उसे अपने घर ले आई तथा प्रदोषव्रत करने लगी। एक दिन वह ब्राह्मणी दोनों बालकों को लेकर शांडिल्य ऋषि के आश्रम में गई और उनसे भगवान् शंकर के पूजन की विधि जानकर लौट आई तथा प्रदोष व्रत करने लगी। एक दिन बालक वन में घूम रहे थे। वहां उन्होंने गदर्भ कन्याओं को क्रीड़ा करते देखा।

ब्राह्मण राजकुमार तो घर लौट आया किन्तु राजकुमार गंधर्व कन्या से बातें करने लगा। उस कन्या का नाम अंशुमती था। उस दिन राजकुमार देरी से लौटा। दूसरे दिन फिर राजकुमार उस जगह पर पंहुचा जहां अंशुमती अपने पिता के साथ बैठी बातें कर रही थी।

राजकुमार को देखकर अंशुमती के पिता ने कहा कि तुम विदर्भ नगर के राजकुमार हो तथा तुम्हारा नाम धर्मगुप्त है। भगवान् शंकर की आज्ञा से हम अपनी कन्या अंशुमती का विवाह तुम्हारे साथ करेंगे। राजकुमार ने स्वीकृति दे दी और उनका विवाह अंशुमती के साथ हो गया। बाद में राजकुमार ने गदर्भ राजा विद्रविक की विशाल सेना लेकर विदर्भ पर चढ़ाई कर दी। घमासान युद्ध हुआ।

राजकुमार विजयी हुए और स्वयं पत्नी सहित वहां राज्य करने लगे। उसने ब्राह्मणी को पुत्र सहित अपने राजमहल में आदर के साथ रखा, जिससे उनके सारे दु:ख दूर हो गए। एक दिन अंशुमती ने राजकुमार से पूछा कि यह सब कैसे हुआ। तब राजकुमार ने कहा कि यह सब प्रदोषव्रत के पुण्य का फल हैं। उसी दिन से प्रदोष व्रत का महत्व बढ़ गया।

व्रत विधि

प्रदोष काल उस समय को कहते हैं जो सायंकाल अर्थात दिन अस्त होने बाद और रात पड़ने से पहले का समय प्रदोष समय कहलाता हैं इसे गोधूली वेला कहा जाता हैं। सोम प्रदोष व्रत की पूजा शाम 4.30 बजे से लेकर शाम 7.00 बजे के बीच की जाती है। सोम प्रदोष व्रत की पूजा करने वाले भक्त इस समय में ही भगवान् शिव की पूजा अर्चना की जाती हैं। यह पूर्ण रूप से निराहार किया जाता हैं व्रत के दौरान फलाहार भी निषेध हैं।

सुबह स्नान कर भगवान शंकर को बेलपत्र, गंगाजल, अक्षत, धूप, दीप आदि चढ़ाएं और पूजा करें. मन में व्रत रखने का संकल्प लें। शाम को एक बार फिर स्नान कर भोलेनाथ की पूजा करें और दीप जलाएं। शाम को प्रदोष व्रत कथा सुनें।