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Special on actor Virendra Saxena birthday - Sabguru News
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थिएटर और सिनेमा की दुनिया का वाे है ‘हरफनमौला कलाकार’

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थिएटर और सिनेमा की दुनिया का वाे है ‘हरफनमौला कलाकार’
Special on actor Virendra Saxena birthday
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Special on actor Virendra Saxena birthday

आज हम आपको बॉलीवुड के साथ रंगमंच की दुनिया में लिए चलते हैं। एक ऐसा कलाकार जिसने अपना करियर थिएटर, टेलीविजन धारावाहिक से शुरू किया था। बाद में अपने शानदार अभिनय से हिंदी सिनेमा में भी धाक जमाई। 100 से अधिक फिल्मों में काम कर चुके इस अभिनेता काे आज भी ‘थिएटर’ ही पहली पसंद है। आज हम उस अभिनेता के बारे में आपको बताने जा रहे हैं जिसने छोटे शहर से निकलकर मायानगरी तक का शानदार सफर किया। जी हां हम बात कर रहे हैं थिएटर-टेलीविजन और हिंदी सिनेमा के हरफनमौला अभिनेता वीरेंद्र सक्सेना की।

मथुरा उत्तर प्रदेश में 25 नवंबर 1960 में जन्मे वीरेंद्र सक्सेना आज अपना 59वां जन्मदिन मना रहे हैं। वीरेंद्र सक्सेना अभी कुछ माह पहले ही रितिक रोशन के साथ ‘सुपर 30’ फिल्म में दिखाई पड़े थे। सिनेमा जगत में दमदार अभिनय की वजह से वीरेंद्र सक्सेना भारतीय फिल्म और टेलीविजन उद्योग में एक समीक्षकों द्वारा प्रशंसित अभिनेता भी हैं। वीरेंद्र 30 साल बाद फिल्मों में सक्रिय रहने के बाद रंगमंच की दुनिया में एक बार फिर लौट आए हैं। आइए इन्हीं के बारे में आज जानते हैं इनका कैसा रहा रंगमंच, धारावाहिक और फिल्मी दुनिया का सफर।

वीरेंद्र सक्सेना का पहला सफर मथुरा से दिल्ली हुआ शुरू

अभिनेता वीरेंद्र सक्सेना का जन्म 25 नवंबर 1960 को मथुरा में हुआ था। उन्होंने पढ़ाई लिखाई भी इसी शहर से की।पढ़ाई के दौरान ही इनके जिस्म के अंदर कलाकार का उदय होने लगा था। वीरेंद्र सक्सेना वर्ष 1979 में मथुरा से दिल्ली आ गए। दिल्ली में इनकी मुलाकात अनंत चौधरी से हुई उन्होंने ही वीरेंद्र सक्सेना को नाट्य दुनिया में कदम रखने को प्रेरित किया और एक नाटक में अभिनय का अवसर दिया।

बाद में अनंत ने वीरेंद्र की मुलाकात एमके रैना से कराई। फिर वीरेंद्र और रैना ने थियेटर का ‘प्रयोग’ ग्रुप बनाया और नाट्य संस्कारों का अनुसरण करने के लिए वीरेंद्र 1979 में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय ज्वाइन कर नाट्य अभिनय को समर्पित हो गए।

वीरेंद्र ने दिल्ली छोड़कर मुंबई का सफर शुरू किया

दिल्ली में वीरेंद्र सक्सेना को थिएटर करते करते हैं तीन साल हो चुके थे। इनकी मुंबई जाने की बिल्कुल इच्छा नहीं थी।लेकिन वीरेंद्र को आगे बढ़ने की इच्छा भी हो रही थी। आखिरकार वर्ष 1982 में बड़ा सपना लिए हुए वीरेंद्र सक्सेना मुंबई आ पहुंचे।

उसके बाद वर्ष 1986 में भीष्म साहनी की कहानी पर बने टीवी सीरियल ‘तमस’ में अपने अभिनय से वीरेंन्द्र ने दर्शकों पर एक अलग पहचान छोड़ी। तमस अपने समय में बेहद लोकप्रिय रहा था। लेकिन टेलीविजन सीरियल ‘जस्सी जैसा कोई नहीं’ में किए अभिनय से वीरेंद्र घर-घर में पहचाने लगे। उसके बाद उन्होंने टीवी धारावाहिक राग दरबारी (1988) में काम किया। उसके बाद फिल्मी पर्दे पर कदम रखा।

छोटे पर्दे से निकलकर बड़े पर्दे पर की शुरुआत

वर्ष 1988 में निर्माता-निर्देशक महेश भट्ट फिल्म ‘आशिकी’ बना रहे थे। भट्ट ने वीरेंद्र  को इस फिल्म में एक महत्वपूर्ण रोल दे दिया। उन्हीं पर एक गीत “तू मेरी जिंदगी है” में सड़क गायक के रूप में फिल्माया गया था, जो बहुत ही चर्चित रहा था। इसके बाद वीरेंद्र सक्सेना एक के बाद एक सैकड़ों फिल्मों में अभिनय करते गए।

आशिकी, नरसिम्हा, दिल है कि मानता नहीं, जिद्दी, परदेशी बाबू, बिच्छू, बंटी और बबली, सरकार और अभी हाल ही में आई ‘सुपर 30’ सहित दर्जनों फिल्मों व टीवी धारावाहिकों में वीरेंद्र सक्सेना अपने अभिनय का लोहा मनवा चुके हैं। वे फिल्म सेंसर बोर्ड के सदस्य भी रह चुके हैं। वीरेंद्र सक्सेना ने एक बार कहा था कि न चाहते हुए भी मैं दिल्ली से थियेटर छोड़ मुंबई चला तो गया, लेकिन मेरी एक्टिंग में चाहे टीवी हो या फिल्म हमेशा थियेटर की छाप रही। इसके अलावा उन्होंने भारतीय फिल्मों और कुछ अंग्रेजी भाषा की फिल्मों जैसे व्हाइट रेनबो, कॉटन मैरी और इन कस्टडी में अभिनय किया है।

एक बार फिर थियेटर की दुनिया में लौटे

हरफनमौला अभिनेता वीरेंद्र सक्सेना एक बार फिर 30 साल बाद थियेटर की दुनिया में लौट आए हैं। आजकल वे रंगमंच के रंग में डूबे हैं। वीरेंद्र का कहना है कि रंगमंच की यादें उनको अतीत में ले जाती हैं जहां उन्होंने अपने करिअर की शुरुआत नाटकों में अभिनय से की थी और यही कारण है बॉलीवुड की व्यावसायिक दुनिया में रचने-बसने के बावजूद नाटक की दुनिया में लौटे हैं। पिछले दिनों वीरेंद्र सक्सेना ने पत्नी और टीवी कलाकार समता सागर के साथ नाटक ‘जाना था रोशनपुरा’ का मंचन देश के कई शहरों में किया था।

थिएटर से घर नहीं चलता लेकिन सुकून मिलता है

वीरेंद्र सक्सेना कहते हैं कि थिएटर से घर नहीं चल सकता पर यहां कलाकार को सच्चा संतोष व बहुत कुछ सीखने को मिलता है। उन्होंने कहा कि अच्छा नाटक वही होगा जो समाज से निकलेगा और लोगों की समस्याओं को दृढ़ता के साथ उठाएगा। वीरेंद्र ने बताया कि थियेटर और फिल्म के कलाकार में बहुत अंतर है। फिल्मी कलाकारों का एक जैसा किरदार निभाना मजबूरी है। एक बार जिस तरह के रोल में उस कलाकार की पहचान बन गई फिर उस इमेज को तोड़ने से वह खुद भी डरता है। लेकिन नाटक की दुनिया में ऐसा नहीं है। यहां कलाकार को अभिनय की दुनिया में नए-नए प्रयोग करने का मौका मिलता है। यही कारण है उन्हें रंगमंच की दुनिया में ज्यादा सुकून मिलता है।

थिएटर देखने के लिए दर्शकों का न होना  वीरेंद्र को अफसोस है

थियेटर की दुनिया से गायब होते जा रहे दर्शक से वीरेंद्र सक्सेना को अफसोस है। वीरेंद्र कहते हैं कि दिल्ली के थियेटर का खासकर हिंदी थियेटर का दुर्भाग्य है कि उसके पास दर्शक नहीं है, वहीं आप मुंबई, चेन्नई, कोलकाता को देखिए वहां का थियेटर उतना क्रिएटिव नहीं है, लेकिन वहां दर्शक हैं। दिल्ली में आप नाटक के दम पर सर्वाइव नहीं कर सकते हैं।अभिनेता वीरेंद्र सक्सेना ने फिल्मों में काम करने का सपना देखने वाले युवाओं से कहते हैं कि रंगमंच फिल्मी दुनिया में पहुंचने की सीढ़ी है, नींव है। यदि नींव मजबूत नहीं होगी तो कैसे आगे बढ़ पाएंगे।

शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार