आज 13 अप्रैल है। यानी इस दिन देशभर में खास तौर पर पंजाब में बैसाखी की धूम रहती है। हर वर्ष 13 अप्रैल को गेहूं की फसल काटने की खुशी में बैसाखी पर्व धूमधाम के साथ मनाया जाता है, पंजाब में तो इसकी रौनक देखते ही बनती है। सिक्के समाज इस पर्व को बहुत ही उल्लास और उमंग साथ मनाता आया है। बैसाखी आने से 15 दिन पहले ही इस पर्व की खास तैयारी शुरू कर दी जाती है। लेकिन इस बार कोरोना की दहशत की वजह से देशभर में चल रहे लॉकडाउन से यह झूमता हुआ पर्व आज घरों तक ही सिमटकर रह गया है। इस दिन किसान ना भांगड़ा कर पाए न अपनी फसल को काट पा रहे हैं।
आज पंजाब पूरा उदास है क्योंकि वह बैसाखी पर्व को धूमधाम के साथ नहीं बना पा रहा है। हिंदी कैलेंडर के अनुसार इस दिन को हमारे सौर नव वर्ष की शुरुआत के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन लोग अनाज की पूजा करते हैं और फसल के कटकर घर आ जाने की खुशी में भगवान और प्रकृति को धन्यवाद करते हैं। देश के अलग-अलग जगहों पर इसे अलग नामों से मनाया जाता है-जैसे असम में बिहू, बंगाल में नबा वर्षा, केरल में पूरम विशु के नाम से लोग इसे मनाते हैं। हालांकि इस बार लॉकडाउन की वजह से लोग अपने-अपने घरों में ही रहकर बैसाखी मना रहे हैं।
फसल काटने की खुशी में किसान इस पर्व को उत्सव के रूप में मनाता है
बैसाखी पर्व को देशभर का किसान फसल काटने की खुशी में मनाता है। सूर्य की स्थिति परिवर्तन के कारण इस दिन के बाद धूप तेज होने लगती है और गर्मी शुरू हो जाती है । इन गर्म किरणों से रबी की फसल पक जाती है। इसलिए किसानों के लिए ये एक उत्सव की तरह है। इसके साथ ही यह दिन मौसम में बदलाव का प्रतीक माना जाता है। अप्रैल के महीने में सर्दी पूरी तरह से खत्म हो जाती है और गर्मी का मौसम शुरू हो जाता है, मौसम के कुदरती बदलाव के कारण भी इस त्योहार को मनाया जाता है।
बैसाखी त्यौहार अप्रैल माह में तब मनाया जाता है, जब सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है, यह घटना हर साल 13 या 14 अप्रैल को ही होती है। बैसाखी के समय आकाश में विशाखा नक्षत्र होता है। विशाखा नक्षत्र पूर्णिमा में होने के कारण इस माह को बैसाखी कहते हैं। कुल मिलाकर, वैशाख माह के पहले दिन को बैसाखी कहा गया है, इस दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है, इसलिए इसे मेष संक्रांति भी कहा जाता है।
सिख धर्म की स्थापना के प्रतीक के रूप में मनाई जाती है बैसाखी
बैसाखी सिख धर्म की स्थापना और फसल पकने के प्रतीक के रूप में मनाई जाती है। इस महीने रबी फसल पूरी तरह से पक कर तैयार हो जाती है और पकी हुई फसल को काटने की शुरुआत भी हो जाती है। ऐसे में किसान खरीफ की फसल पकने की खुशी में यह त्योहार मनाते हैं। 13 अप्रैल 1699 के दिन सिख पंथ के 10वें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी, इसके साथ ही इस दिन को मनाना शुरू किया गया था।
आज ही के दिन पंजाबी नए साल की शुरुआत भी होती है। गोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। इसी दिन गुरु गोबिंद सिंह ने गुरुओं की वंशावली को समाप्त कर दिया। इसके बाद सिख धर्म के लोगों ने गुरु ग्रंथ साहिब को अपना मार्गदर्शक बनाया। बैसाखी पंजाब और भारत ही नहीं विश्व के कई देशों में धूमधाम के साथ मनाई जाती है जहां सिख समाज मौजूद है।
शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार