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Special on bollywood actress Nadira birthday - Sabguru News
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हिंदी सिनेमा में उनका बोल्ड और ग्लैमरस किरदार दशकों में छाया रहा

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हिंदी सिनेमा में उनका बोल्ड और ग्लैमरस किरदार दशकों में छाया रहा
Special on bollywood actress Nadira birthday
Special on bollywood actress Nadira birthday
Special on bollywood actress Nadira birthday

हिंदी सिनेमा| 50 के दशक में हिंदी सिनेमा ने मचलना शुरू कर दिया था। अधिकांश अदाकारा अपनी इमेज से बाहर निकलना चाह रही थी लेकिन हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी। उस समय फिल्म अभिनेत्री ज्यादातर सती सावित्री या पतिव्रत नारी जैसे किरदारों को महत्व देती थी, लेकिन उसी दौरान एक अभिनेत्री ने इन सब से बाहर निकलने की हिमाकत की। उन्होंने फिल्मी पर्दे पर अपने बोल्ड किरदारों से एक खास पहचान बनाई। एक के बाद कई सुपरहिट फिल्म देने के बाद इनकी पहचान फिल्म इंडस्ट्रीज में एक अलग किरदार निभाने के रूप में स्थापित हो चुकी थी।

आज हम आपको बता रहे हैं हिंदी सिनेमा की सबसे ग्लैमरस अभिनेत्री नादिरा की जिनका आज जन्मदिन है। नादिरा का जन्म 5 दिसंबर 1932 को हुआ था। आइए जानते हैं नादिरा का फिल्मी सफर कैसा रहा। नादिरा के सर से पिता का साया बहुत पहले ही उठ गया था। मां फौज में पॉयलट थीं, सेकंड वर्ल्ड वॉर में बाकायदा हिस्सा लिया। मगर वॉर खत्म होते ही सब छूट गया था।

1952 में पहली फिल्म ‘आन’ से किया था डेब्यू

नादिरा ने महबूब खान की फिल्म ‘आन’ से हिंदी फिल्मों में डेब्यू किया था। यह फिल्म 1952 में रिलीज हुई थी। महबूब ख़ान को ‘आन’ के हीरो दिलीप कुमार के सामने एक ऐसी तेज तर्रार हंटर वाली टाइप लड़की की तलाश थी, जिसका लुक एंग्लो-इंडियन हो, ताकि इसका इंग्लिश वर्जन भी तैयार किया जा सके। उनकी बेग़म सरदार अख़्तर ने नादिरा को एक पार्टी में स्पॉट किया और वो अफगानी यहूदी लड़की फ्लोरेंस एजेकेल से नादिरा बन गयीं।

आन उस समय सबसे बड़ी सुपरहिट फिल्म साबित हुई थी। इस फिल्म ने नादिरा को रातों-रात हिंदी सिनेमा में पहचान दिला दी थी। पचास और साठ के दशक में नादिरा की शोहरत आसमान पर थी और राजकपूर की ‘श्री चार सौ बीस’ के एक गाने के बाद से तो उन्हें ‘मुड़ मुड़ के न देख गर्ल’ ही कहा जाने लगा था। यह गाना आज भी लोकप्रिय है।

नादिरा ने खलनायकी में भी हाथ आजमाया

आन’ की बेमिसाल कामयाबी से नादिरा की दहलीज़ पर दर्जन भर फिल्मों के ऑफर भले आ गए, मगर किस्मत नहीं चमकी। नगमा, रफ्तार, प्यारा दुश्मन, डाक बाबू, वारिस सब फ्लॉप हो गयीं। उसके बाद नादिरा ने बोल्ड किरदारों के साथ साथ खलनायिकी में भी हाथ आजमाया और अपनी परफॉर्मेंस से सबको हिला दिया। वह हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री की सबसे बेहतरीन और खूबसूरत अभिनेत्रियों में से थीं। नादिरा ने अपने फ़िल्मी करियर में साथ से अधिक फिल्मों में काम किया और इन सभी में अपने बेजोड़ अभिनय से छाप छोड़ी।

वह अपने समय की अभिनेत्रियों से कहीं आगे थीं। देवानंद के साथ नादिरा ने ‘पॉकेटमार’ (1956) की और फिर कई साल बाद ‘इश्क इश्क इश्क’ (1974) में उनकी मां बनीं थी। नादिरा ने ‘दिल अपना और प्रीत पराई’ (1960) में राजकुमार का साथ की थी। इस फिल्म में उनके अभिनय की जमकर प्रशंसा हुई थी। बलराज साहनी को वो बेहतरीन इंसान मानती रहीं। उन्हें उनके साथ ‘आकाश’ (1952) में काम करने का मौका मिला था।

नादिरा आखिरी बार जोश फिल्म में नजर आईं थी

वर्ष 2000 में मंसूर खान निर्देशित फिल्म जोश में नादिरा आखिरी बार नजर आई थी इस फिल्म में शाहरुख खान भी थे। नादिरा ने 63 फ़िल्मों में अभिनय किया, जिनमें आन, श्री चार सौ बीस, दिल अपना और प्रीत पराई, पाकीज़ा, राजा जानी, काला बाजार, सपनों का सौदागर, जूली और सागर, धर्मात्मा, अमर अकबर अंथोनी जैसी फ़िल्में शामिल हैं। नादिरा ने ‘सफर’ (1970) में फ़िरोज खान की मां का छोटा सा पावरफुल किरदार अदा किया था जिसमें वो कोर्ट में क़त्ल के आरोप में कटघरे में खड़ी बहु शर्मीला टैगोर के पक्ष में गवाही देती हैं कि उनकी बहु साइनाइड का इंजेक्शन खुद को दे सकती है मगर पति को नहीं दे सकती।

जूली’ (1975) में उनको एक जवान बेटी की बेहद फ़िक्रमंद एंग्लो-इंडियन मां मार्गरेट के किरदार में बहुत सराहा गया। इसके लिए नादिरा को बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस का फिल्मफेयर अवार्ड भी मिला। नादिरा ने अधिकतर नेगेटिव भूमिकाएं निभाईं लेकिन एक ज़माना था जब दर्शक उनके नाम से फ़िल्म देखने जाते थे। वर्ष 1997 में दर्शकों ने उन्हें पूजा भट्ट की फिल्म ‘तमन्ना’ में बहुत सराहा था।

जिंदगी का आखरी सफर बेहद तन्हाई में बीता

नादिरा का आखिरी समय बेहद कष्ट भरा रहा। आख़िरी कई साल उन्होंने मुंबई के एक अपार्टमेंट में अकेले ही काटे। दोनों भाई विदेश बस गए थे, लेकिन उन्हें हिंदुस्तान ही पसंद आया। अपना जन्मदिन वो अपार्टमेंट में रहने वालों के साथ केक काट कर मनाती थीं। मगर किताबों का साथ उन्होंने कभी नहीं छोड़ा, हर किस्म की किताब, फिक्शन और नॉन-फिक्शन। उन्हीं के साथ और उन्हीं के बीच सोती थीं। शराब और सिगरेट ने उन्हें कई बीमारियां दीं। 9 फरवरी 2006 को वह हमेशा के लिए इस दुनिया को अलविदा कह गईं मगर दर्शकों के दिलों पर वह हमेशा राज करेंगीं।

शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार